अपराजिता फेस ऑफ कल्चर
लखनऊ। एक तरफ लोग ग्लैमर के पीछे भाग रहे हैं। एक -दो नाटक किए और निकल पड़ते हैं टेलीविजन या फिल्मी दुनिया में संघर्ष करने। पर राजधानी में हुसैनगंज निवासी रंगकर्मी अचला बोस ही नहीं, उनकी दोनों बेटियां दीपिका और श्रद्धा रंगमंच की होकर रह गई हैं। अचला बताती हैं कि वह 1985 में आकांक्षा थियेटर के जरिए रंगमंच से जुड़ीं। रंगमंच से उनके जुड़ाव के कारण ही उन्हें 2007 के लिए 2016 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। बेटियों के थियेटर से जुड़ने के बाबत कहती हैं कि दोनों ने खुद ही तय किया कि उन्हें रंगमंच से ही जुड़ना है। 200 से अधिक नाटक कर चुकीं दीपिका बताती हैं, पहला नाटक पांच साल की उम्र में किया था। भातखंडे से कथक सीखा, लेकिन नृत्य से ज्यादा मन थियेटर में लगा। टेलीविजन में काम के बारे में कहती हैं कि थियेटर में स्ट्रगल जरूर है, लेकिन यह वास्तविकता के करीब है। टेलीविजन में वह बात नहीं। वहीं पिछले 14 साल से नाटक करती आ रहीं श्रद्धा कहती हैं कि भातखंडे से क्लासिक वोकल सीखा, लेकिन घर में थियेटर का माहौल था, इसलिए इसमें अपने आप इंटरेस्ट आने लगा। अब तो यही हमारा पैशन है।
सिर्फ नाटक नहीं, एक संदेश भी
‘अहसास’ जैसे नाटक करके अपनीपहचान बनाने वाली अचला बोस कहती हैं कि रंगकर्म हमारे लिए समाज सेवा की तरह है। इसकेजरिए हम अक्सर एक गंभीर मुद्दे को उठाते हैं। जैसे ‘अहसास’ एक दिव्यांग बच्चे की कहानी है, इसी तरह नाटक के जरिए हमने महिला मुद्दों को उठाने की कोशिश की है। दीपिका कहती हैं, यह सच है कि रंगकर्म एक वर्ग विशेष तक सीमित होकर रह गया है, लेकिन युवाओं के इससे जुड़ने के कारण यह नई पीढ़ी की पसंद बनता जा रहा है।
मां अचला बोस, बेटियां दीपिका और श्रद्धा
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.