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विपत्तियों में बेटी बनीं मधुमिता का हौसला

Published - Sun 10, Mar 2019

अपराजिता नारी की सफलता

aparajita nari ki safalta dr madhumita bhattacharya varanasi

वाराणसी। संगीत शिक्षक के रूप में पहचानी जाने वाली कैवल्य धाम की डॉ. मधुमिता भट्टाचार्या की कहानी सबसे अलग है। कई विपत्तियों से सामना हुआ, लेकिन इन सबको भूल उन्होंने जो ठाना, उस मुकाम को हासिल किया। आर्य महिला पीजी कॉलेज से मानदेय पर शिक्षक बनीं। इसके बाद यहीं स्थायी शिक्षक बनीं और अब बीएचयू में वरिष्ठ असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। डी.लिट करने के दौरान 2018 में शादी के बारह साल बाद पति की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। एक तरफ पति को खोने का दुख था, दूसरी तरफ तीन साल की बेटी को पालने की जिम्मेदारी। ऐसे में वे निराश हुईं तो बेटी की मासूमियत ने हौसला दिया। लगन के साथ वह फिर आगे बढ़ीं और नवंबर 2018 में दीक्षांत समारोह में उन्हें डी.लिट की उपाधि दी गई। बीएचयू के संगीत और मंच कला संकाय की वह पहली ऐसी शिक्षक है, जिन्हें संगीत में डी.लिट की उपाधि हासिल है। आज वे अपनी प्रतिभा के बल पर युवा कलाकारों की पौध को सींचने में जी-जान से जुटी हैं।