अपराजिता नारी की सफलता
वाराणसी। संसदीय हिंदी परिषद द्वारा राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान से सम्मानित अन्नपूर्णा नगर कॉलोनी की साहित्यकार डॉ. मुक्ता पढ़ाई में अव्वल रहीं। माता पिता की इच्छा थी कि वे डॉक्टर बने, लेकिन उनकी रुचि साहित्य और कला में थी। इसी वजह से पढ़ाई के साथ संगीत एवं नृत्य की भी शिक्षा ली। कक्षा पांच से उन्होंने तुकबंदियां लिखनी शुरू कर दी थीं। डॉ. मुक्ता की पहली कहानी ‘कैक्टस भरी जिंदगी’ प्रकाशित हुई। इसके बाद कहानी संग्रह पलास वन के घुंघरू, आधा कोष, इस घर उस घर, सीढ़ियों का बाजार का प्रकाशन हुआ। डीडी भारती पर प्रसारित विद्यानिवास मिश्र के जीवन पर आधारित वृत्तचित्र ‘चितवन की छांह’ का निर्देशन भी किया। उन्हें संसदीय हिंदी परिषद से राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान, भारतेंदु प्रभा सम्मान, प्रेमचंद सम्मान, श्यामा देवी बेरी सम्मान, गायत्री साहित्य संस्थान, साहित्य शिरोमणि सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन उनकी राह इतनी आसान नहीं थी। दिल्ली के राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज में शिक्षिका बनीं, लेकिन पति का स्थानांतरण करनाल हो गया। पारिवारिक समस्याओं के चलते नौकरी छोड़कर करनाल जाना पड़ा। कुछ करने के जज्बे ने उन्हें घर में नहीं बैठने दिया। कामता महराज से कथक की शिक्षा ले चुकीं डॉ. मुक्ता ने करनाल में ही युवाओं को नृत्य का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया और अपनी अलग पहचान बनाई। डॉ. मुक्ता अब भी साहित्य की साधना में लगी है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.