अपराजिता चेंजमेकर्स बेटियां
मैनपुरी। सपना तो पिता ने देखा था। सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने का। लेकिन, पूरा नहीं हो सका। पता मुझे भी था लेकिन उसकी शिद्दत का एहसास न था। डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान ही पिता के दिल में दबी हसरत की शिद्दत का एहसास हुआ। ठान लिया कि मैं वर्दी पहनकर देश सेवा करूंगी। दोस्तों और जानने वालों को पता लगा तो सबने तरह-तरह की बातें की। मेडिकल कॅरिअर से इतर सेना में भर्ती होने का इरादा उन्हें अजीब लगा होगा, लेकिन मैंने इसके लिए तैयारी की। बीएसएफ ज्वाइन की, वह भी मेडिकल कोर में। यानी डॉक्टरी की पढ़ाई जाया नहीं होने दी और पिता का देशसेवा का सपना भी वर्दी पहन कर पूरा किया। पहली बार वर्दी में पापा के सामने गई तो वे काफी देर तक निहारते ही रहे। मुझे लगा मेरे पापा ने अपना आसमान पा लिया हो।
इस तरह बदली जीवन की धारा
डॉ. शिवानी जन्म मैनपुरी के गांव भोगांव में डॉ. मनोज दीक्षित और उपमा दीक्षित के घर में दो मई 1992 हुआ। घर में शुरू से ही पढ़ाई की माहौल था। उनका भी रुझान इसी ओर हुआ। हाईस्कूल भोगांव के जेएस मेमोरियल स्कूल से पास किया। इसके बाद इंटरमीडिएट की परीक्षा नेशनल इंटर कॉलेज भोगांव से पास की। राजस्थान के कोटा से कोचिंग करने के बाद राममूर्ति मेडिकल कॉलेज बरेली से एमबीबीएस किया। एमबीबीएस करने के बाद वर्ष 2018 में मेडिकल कोर के तहत बीएसएफ में असिस्टेंड कमांडेंट के रूप में ज्वाइन किया। फिलहाल तैनाती 104 बटालियन अनूपगढ़ बीकानेर सेक्टर में है।
पापा चाहते थे अपने तन पर वर्दी
डॉ. शिवानी बताती हैं कि, मेरे पापा डॉ. मनोज दीक्षित सेना में भर्ती होकर अपने शरीर पर वर्दी देखना चाहते थे। सेना की वर्दी देख उनकी आंखों में चमक आ जाती थी। मुझे पता था उनकी इस ख्वाहिश के बारे में। यह उनका एक सपना था जो किस कारण से पूरा नहीं हुआ, मैं नहीं जानती। जब मुझे एहसास हुआ कि उनमें वर्दी पहनने की हसरत कितनी गहरी थी तो मैंने ठान लिया कि उनके अंश के रूप में मैं वर्दी पहनकर उन्हें उनके सपने सच होने का अहसास दिलाऊंगी।
लोगों के सवालों को पीछे छोड़ा
मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही मानसिक और शारीरिक तौर पर मैंने खुद को तैयार करना शुरू कर दिया। बीएसएफ में मेडिकल कोर का ऑप्शन मिला तो मेरी बांछें खिल उठीं। मैं जी-जान से तैयारी में जुट गई। लोगों ने सवाल किए, मैं ऐसा क्यों कर रही हूं? कैसे बताती मेरा लक्ष्य अब पिता की आंखों की नमी में झलकते सपने को सच करने की है। लोगों ने कॅरिअर और पैसे की चमक दिखाकर मुझे डिगाने की कोशिश भी की। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। आखिरकार परीक्षा का नतीजा आया और मैंने बीएसएफ के मेडिकल कोर में बतौर असिस्टेंट कमांडेंट ज्वाइन किया।
बेटियों के प्रति बदली लोगों की राय
डॉ. शिवानी आज घर से दूर रहकर देश सेवा कर रही हैं। उनका कहना है कि अगर सच्चे मन से देश सेवा करनी है तो, सेना ही एक मात्र माध्यम है। आज वही लोग अपनी बेटियों को शिवानी की मिसाल देते हैं जो कभी मेरे फैसले के खिलाफ थे।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.