राजस्थान की रहने वाली अवनि लखेरा ने पैरालंपिक में दो पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। ऐसा करने वाली वह पहली महिला विजेता भी बन गई हैं। पीएम मोदी ने उनकी शानदार जीत पर बधाई दी है। देशभर में उनकी जीत का डंका बज रहा है। हर कोई उनके जज्बे को सलाम कर रहा है।
नई दिल्ली। अपने पहले ही पैरालंपिक में अवनी लखेरा छा गई हैं। उन्होंने अपने पहले ही ओलंपिक में पहले गोल्ड और अब ब्रॉन्ज जीतकर इतिहास रच दिया। वह यह मेडल जीतकर भारत की पहली महिला पैरा ओलंपिक विजेता भी बन गई हैं। एक सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद अवनी दिव्यांग हो गई थीं लेकिन उन्होंने जीवन में कभी हिम्मत नहीं हारी।
एक सड़क हादसे के बाद नहीं रहीं चलने के कारण
अवनी और उनके पिता जयपुर से धौलपुर जा रही थे, तो एक सड़क दुर्घटना में दोनों घायल हो गए, उस दुर्घटना के बाद उनके पिता तो कुछ समय बाद ठीक हो गए, लेकिन अवनी स्वस्थ नहीं हो पाई। लगभग 3 महीने अस्पताल में बिताने के बाद रीड की हड्डी में चोट के कारण वह हमेशा के लिए चलने में असमर्थ हो गईं।
अभिनव बिंद्रा की जीवनी पढ़ लौटा आत्मविश्वास
बतौर अवनी इस दुर्घटना के बाद उन्होंने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था और डिप्रेशन में चली गईं थीं। उनका आत्मविश्वास माता-पिता की बातों और अभिनव बिंद्रा की जीवनी पढ़कर लौटा। उन्होंने से सीख लेकर निशानेबाजी शुरू की और आज वह देश की टॉप क्लास की निशानेबाज बन चुकी हैं।
पीएम मोदी ने दी बधाई
राजस्थान के जयपुर की रहने वाली 20 साल की पैरा शूटर अवनि ने महिलाओं की 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन SH1 में 445.9 पॉइंट्स के साथ ब्रॉन्ज मेडल जीता। इस तरह एक ही पैरालिंपिक में यह उनका दूसरा मेडल है। इससे पहले उन्होंने 10 मीटर राफाइनल में गोल्ड मेडल हासिल किया था। यह भारत का 12वां मेडल है। पीएम मोदी ने उन्हें बधाई दी। फिलहाल भारत 2 गोल्ड, 6 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल जीत चुका है। यह पैरालिंपिक इतिहास में टीम इंडिया का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.