व्हीलचेयर के सहारे चलने के बावजूद भाविना ने कभी भी अपने जज्बे को कम नहीं होने दिया। भाविनाबेन का कहना है कि वह खुद को दिव्यांग नहीं मानती और टोक्यो खेलों में उनके प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है।
भाविनाबेन पटेल ने टोक्यो पैरालंपिक टेबल टेनिस में क्लास 4 स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। भारत की ओर से पैरालंपिक टेबल टेनिस में पदक जीतने वाली वह पहली खिलाड़ी हैं। महज एक साल की उम्र में पोलियो का शिकार हो चुकी भाविना ने लिए यह सफल बेहद मुश्किलों भरा रहा है।
गुजरात के मेहसाणा की रहने वाली भाविना का जन्म 6 नवंबर 1986 को मेहसाणा जिले में वडगर के एक छोटे से गांव में हुआ था। जब वह एक साल की हुईं तभी उनको पोलियो हो गया। पोलियो होने के बाद वह विकलांग हो गई। इसके बाद उन्हें चलने के लिए व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा। व्हीलचेयर से चलने के बावजूद उन्होंने अपने जज्बे को कभी कम नहीं होने दिया। गांव से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भाविना कंप्यूटर साइंस से आईटीआई करने के लिए अहमदाबाद आ गई। बचपन से ही टेबल टेनिस से काफी लगाव था। लेकिन पढ़ाई के साथ खेलना संभव नहीं हो पाता था। लेकिन शहर आने के बाद उन्होंने इसकी प्रैक्टिस शुरू की। प्रैक्टिस के लिए जाना भी उनके लिए आसान नहीं था। आपने ट्रेनिंग सेंटर तक पहुंचने के लिए उन्हें रोज अपनी बैसाखियों के सहारे दो बस बदलनी पड़ती थी फिर ऑटो और उसके बाद कुछ दूर पैदल चलना पड़ता था। उनकी यह मेहनत आज रंग लाई है और पूरा देश उनकी इस जीत का जश्न मना रहा है।
खुद को दिव्यांग नहीं मानतीं भाविना
भाविनाबेन का कहना है कि वह खुद को दिव्यांग नहीं मानती और टोक्यो खेलों में उनके प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मैं खुद को दिव्यांग नहीं मानती। मुझे हमेशा से यकीन था कि मैं कुछ भी कर सकती हूं और मैंने साबित कर दिया कि हम किसी से कम नहीं है और पैरा टेबल टेनिस भी दूसरे खेलों से पीछे नहीं है।'
ध्यान और योग से मानसिक मजबूती
भाविना ने कहा,‘मेरा दिन सुबह चार बजे शुरू हो जाता है और मैं ध्यान तथा योग के जरिये मानसिक एकाग्रता लाने का प्रयास करती हूं। मैचों के दौरान कई बार हम जल्दबाजी में गलतियां करते हैं और अंक गंवा देते हैं लेकिन मैंने अपने विचारों पर नियंत्रण रखा।’ उन्होंने कहा , ‘मैं अपने प्रशिक्षकों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मुझे तकनीक सिखाई। उनकी वजह से ही मैं यहां तक पहुंच सकी। भारतीय खेल प्राधिकरण, टॉप्स, पीसीआई, सरकार, ओजीक्यू, नेत्रहीन जन संघ, मेरे परिवार को भी मै धन्यवाद देती हूं ।’
भाविना ने 13 साल पहले अहमदाबाद के वस्त्रापुर इलाके में नेत्रहीन संघ में खेलना शुरू किया जहां वह दिव्यांगों के लिए आईटीआई की छात्रा थी। बाद में उन्होंने दृष्टिदोष वाले बच्चों को टेबल टेनिस खेलते देखा और इसी खेल को अपनाने का फैसला किया। उन्होंने अहमदाबाद में रोटरी क्लब के लिए पहला पदक जीता।
दुनिया की दूसरे नंबर की खिलाड़ी भी बनीं
उनका विवाह निकुल पटेल से हुआ जो गुजरात के लिए जूनियर क्रिकेट खेल चुके हैं। पटेल 2011 में दुनिया की दूसरे नंबर की खिलाड़ी भी बनीं जब उन्होंने पीटीटी थाईलैंड टेबल टेनिस चैंपियनशिप में भारत के लिए रजत पदक जीता था। अक्तूबर 2013 में उन्होंने बीजिंग में एशियाई पैरा टेनिस चैंपियनशिप में रजत पदक जीता था।
रोबोट ने कराई पैरालंपिक की तैयारी
सभी की तरह भावीना के लिए कोरोना काल का लॉकडाउन संकट का समय था, लेकिन इस दौरान एक इंसान ने नहीं बल्कि रोबोट ने भाविना का ऐसा साथ निभाया जिसने उन्हें पैरालंपिक के इतिहास के पन्नों में दर्ज करा दिया। यह सच्चाई है कि भाविना को पैरालंपिक की तैयारियां इंसानी साथियों ने कम बल्कि टेबल टेनिस के रोबोट ने ज्यादा कराई हैं। भाविना के पति निकुल पटेल टोक्यो से अमर उजाला से खुलासा करते हैं कि लॉकडाउन ही नहीं पैरालंपिक से छह माह पहले से भाविना लगातार टेबल टेनिस रोबोट के साथ प्रैक्टिस कर रही थीं। निकुल यहां तक कहते हैं कि यह रोबोट ही उनकी पत्नी के लिए वरदान बन गया। निकुल के मुताबिक पैरा टेबल टेनिस में प्रैक्टिस के लिए साथी कम मिलते हैं। अहमदाबाद की अकादमी में दो साथी थे इनके साथ तैयारियों को ऊचाईयों तक नहीं ले जाया जा सकता था। इसके बाद लॉकडाउन लग गया तो कोच लल्लन दोषी के पास पुराना टेबल टेनिस रोबोट था। उन्होंने इस दौरान घर में ही टेबल लगाई और रोबोट के साथ तैयारी शुरू कर दी। निकुल बताते हैं कि इस दौरान सभी की तैयारी बंद रही लेकिन भाविना रोबोट के साथ लगातार प्रैक्टिस करती रहीं। छह माह पहले दो लाख 80 हजार में साई ने भाविना को नया रोबोट मंगवाकर दिया इसी के साथ तैयारियां टोक्यो पैरालंपिक में रंग लाई हैं।
एक मिनट में 120 बॉल फेंकता है रोबोट
टेबल टेनिस रोबोट ठीक उसी तरह का यंत्र जिस तरह क्रिकेट में गेंदबाजी करने वाली मशीन होती है। टेबल टेनिस रोबोट को टेबल के दूसरे सिरे पर लगाया जाता है और वह लगातार बॉल फेंकता रहता है। निकुल के मुताबिक रोबोट एक मिनट में 120 बॉल फेंकता है। बॉल में तेजी और स्पिन भी अलग होती है जिससे तैयारियां अच्छी होती हैं।
मैच के बीच में अंपायर से पति का बंद कराया बोलना
निकुल के मुताबिक भाविना मैच के दौरान पूरी तरह आत्मकेंद्रित हो जाती हैं। उन्हें कोच की जरूरत नहीं रहती। वह मैच में सारे फैसले चाहें सही हो या गलत खुद लेती हैं और खुद रणनीति बनाती हैं। निकुल खुलासा करते हैं कि चीन की पूर्व पैरालंपिक चैंपियन झांग मियाओ के खिलाफ पहले गेम में जब वह 3-0 की बढ़त पर थीं और उसके बाद चीनी पैडलर ने पहला अंक झटका तो उन्होंने कोच की कुर्सी पर बैठे होने के नाते उनका जोर-जोर से उत्साह बढ़ाना शुरू कर दिया, लेकिन उनकी पत्नी को यह अच्छा नहीं लगा उन्होंने अंपायर से शिकायत की कि कोच (पति) की ओर से किया जा रहा प्रोत्साहन बंद करा दिया जाए इससे उन्हें परेशानी हो रही है। इसके बाद उन्होंने तालियां बजाना और बोलना बंद कर दिया।
पीएम मोदी और भाविना का संघर्ष क्षेत्र एक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जीवन की संघर्ष यात्रा गुजरात के वडनगर क्षेत्र से की थी। भाविना भी इसी क्षेत्र से हैं। उनका गांव सुंधिया वडनगर से चार किलोमीटर दूर है। निकुल कहते हैं कि भाविना ने भी वडनगर से अपना संघर्ष शुरू किया। वह सिर्फ 2010 में एक बार गुजरात के मोदी से मिली हैं, लेकिन सेमाफाइनल में पहुंचने पर पीएम ने भाविना के लिए जो ट्वीट किया उससे उन्हें आत्मबल मिला।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.