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विरोध झेलकर गरिमा ने की पढ़ाई, बनीं अफसर बिटिया

Published - Fri 15, Mar 2019

अपराजिता चेंजमेकर्स बेटियां

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एटा। पांच दशक पूर्व बेटी पढ़ाओ-बेटी बढ़ाओ का संकल्प लेने वाली गरिमा यादव आज बेटियों की लिए मिसाल बन गई हैं। ग्रामीण अंचल से पीसीएस बनने वाली जिले की पहली बेटी के सम्मान को पा चुकी गरिमा आज बेटियों की प्रेरणास्रोत हैं। गांवों में बेटियों की उपेक्षा से आहत रही गरिमा का कहना है कि चार दशक पूर्व बेटियों को शिक्षा केवल साक्षर बनाने के लिए दी जाती थी। जिले के निधौली कलां के गांव लहरा में किसान परिवार में जन्मी गरिमा बताती हैं कि पीएचडी के लिए परिवार के बुजुर्गों ने यह कहकर विरोध किया कि अधिक पढ़ाई से शादी में बाधा होगी। तभी गरिमा ने ठान लिया कि वह यह साबित करके ही रहेंगी कि पढ़ाई किसी में बाधा नहीं है। इसी दौरान 1998 में प्रदेश प्रशासनिक सेवा में चयन पाकर मिसाल ही नहीं बनाई, वरन जिले की प्रगतिशील बेटियों की आईकॉन भी बन गई। इनके पति भी इनके बैचमेट अधिकारी हैं। राज्य महिला आयोग में सदस्य सचिव के पद पर तैनात गरिमा ने प्रशासनिक अधिकारी के रूप में भी महिला संवर्धन के लिए खासे प्रयास किए। इसके चलते अलग पहचान भी बनाई। अपनी दो बेटियों को भी पढ़ाई से लेकर खेल में आगे बढ़ा रही हैं।

'पढ़ें बेटियां, बढ़ें बेटियां' को बनाया लक्ष्य
प्रधानमंत्री
मोदी के सपने पढ़ें बेटियां-बढ़ें बेटियां को इन्होंने आत्मसात किया है। बेटी गरिमा यादव बेटियों को पढ़ाने और उन्हें आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रही हैं। वह गांव समाज की बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। 

क्या है आगे का इरादा?
दो बेटियों
की मां गरिमा कहती हैं कि बेटियों को प्रोत्साहन और न्याय अब उनका लक्ष्य बन गया है। राज्य महिला आयोग में प्रतिदिन आने वाली ढाई सौ से अधिक शिकायतों में वे इनके न्याय के लिए प्रयासरत हैं।