साल 2003 की बात है वह कोचिंग जा रही थी, तभी रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया। उनकी रीड़ की हड्डी में गंभीर चोट आई। इसके बाद वह पैरालाइज हो गईं। ऐसा लगा मानो जिंदगी ठहर गई। इस दौरान वह 9 महीने तक अस्पताल में रहीं और उनकी तीन सर्जरी हुईं। इतना सब होने के बावजूद एकता ने जिंदगी में हार नहीं मानी। आज कामयाबी उनके कदमों में है।
हिसार की रहने वाली एशियाई स्वर्ण पदक विजेता एकता भयान पैरालंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधितव करने के लिए तैयार हैं। वह क्लब थ्रो और भाला फेंक में देश का नेतृतव करेंगी। एकता का टोक्यो पैरालंपिक तक पहुंचने का सफर बहुत संघर्ष भरा रहा है। एकता पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं। बात 2003 की है वह कोचिंग जा रही थी, तभी रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया। यहां से उनकी जिंदगी में सब कुछ बदल गया। उनकी रीड़ की हड्डी में गंभीर चोट आई। इसके बाद वह पैरालाइज हो गईं। ऐसा लगा मानो जिंदगी ठहर गई। इस दौरान वह 9 महीने तक अस्पताल में रहीं और उनकी तीन सर्जरी हुईं। इतना सब होने के बावजूद एकता ने जिंदगी में हार नहीं मानी। आज कामयाबी उनके कदमों में है।
एकता ने अपनी पढ़ाई कभी भी बंद नहीं की। हिसार से बीए, एमए, बीएड किया। साल 2011 में फूड सप्लाई ऑफिस में ऑडिटर की नौकरी मिल गई। उनका कहना है, 'पढ़ाई ने उनके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण रोल निभाया है। एक समय था जब मुझे खुद नहीं पता था कि मैं जीवन में क्या करूंगी। लेकिन मैं खुद पैसे कमाना चाहती थी। इसके लिए मैंने पढ़ाई में और मेहनत की।' जिसका नतीजा 2013 में मिला। जब हरियाणा सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास की। इस परीक्षा को पास करने के बाद उनकी जिंदगी में कॉन्फिडेंस वापस आया। समाज में भी बड़ा बदलाव देखने को मिला। जो समाज उन्हें एक विकलांग की तरह देख कर तरस खाता था वह भी अब सम्मान देने लगा। बाद में वह सहायक रोजगार अधिकारी के पद पर तैनात हो गईं। एक नॉर्मल व्यक्ति भी इतनी सफलता के बाद संतुष्ट हो जाता है। लेकिन एकता को हमेशा लगता था कि अभी कुछ अधूरा है। जिंदगी में अभी भी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है।
उनकी सफलता के किस्से अब अखबारों में छपने लगे थे। उनकी ऐसी ही प्रेरणा दायक स्टोरी अर्जुन पुरस्कार विजेता पैरालिंपियन अमित कुमार सरोहा ने अखबार में पढ़ी। इसके बाद उन्होंने एकता से सम्पर्क किया और खेलों की तरफ आने के लिए प्रेरित किया। कुछ और हासिल करने की जो उनकी तमन्ना थी वह खेलों से पूरी होने वाली थी। हालांकि उन्होंने इससे पहले कभी भी कोई खेल नहीं खेला था। लेकिन कोच के मोटिवेशन के बाद जब खुलना शुरू किया तो पूरी तरह से मन लग गया। इसका परिणाम भी जल्द ही मिला। साल 2016 के बाद से पैरालिंपिक में हिस्सा लेकर अंतरराष्ट्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उन्होंने कई पदक जीते।
अपनी विकलांगता को लेकर एकता का कहना है, 'हम विकलांग हैं, लेकिन उससे पहले हम इंसान हैं और बाद में विकलांग हैं। लेकिन समाज में लोगों हमारी विकलांगता पर पहले ध्यान देते है। ऐसे में हमारी उपलब्धियां दरकिनार हो जाती हैं जो ठीक नहीं है।'
उनका मानना है कि हमारा देश विकलांगों की मदद करने में दूसरे देश की अपेक्षा अभी भी पीछे है। खेल में क्षेत्र में बहुत कम विकलांग महिलाएं हैं जो देश का नेतृत्व करें। पेराएथलीटों को दिया जाने वाला बुनियादी ढांचा और मजबूत होना चाहिए। अगर बात कोच करें तो कुछ गिने चुने कोच ही देश में हैं जो विकलांग एथलीटों की जरूरतों को समझते हैं। वह कहती हैं एक और समस्या यह है कि बहुत से लोग पैरा स्पोर्ट्स के बारे में जानते ही नहीं हैं। क्योंकि पैरालिंपिक का बहुत कम कवरेज किया जाता है।
भारत ने पैरालंपिक खेलों में 12 पदक जीते हैं - चार स्वर्ण और इतने ही रजत और कांस्य। दीपा मलिक सूची में एकमात्र महिला हैं, जिन्होंने रियो में 2016 पैरालिंपिक में रजत पदक जीता है।
2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में आयोजित एशियाई खेलों मे एकता ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए क्लब थ्रो प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। लगातार दूसरी बार वर्ल्ड पारा एथलेटिक्स चैंपियनशिप (लंदन 2017 और दुबई 2019) में शामिल होकर उन्होंने 2021 टोक्यो पैरालम्पिक्स के लिए क्वालिफाइ किया। एकता ने बर्लिन 2016, दुबई 2017 और ट्यूनिशिया 2018 में आयोजित आईपीजी ग्रां प्री में भी कई पदक जीते हैं। भयान ने 2016, 2017, 2018 में राष्ट्रीय पैराएथलीट खेलों में स्वर्ण पदक जीते हैं। भयान को 2018 में विकलांग व्यक्ति सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और हरियाणा के राज्यपाल से महिला दिवस 2019 पर राज्य स्तरीय पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका हैं। उन्हें पैरा चैंपियंस कार्यक्रम के तहत गोस्पोर्ट्स फाउंडेशन से भी सहयोग मिला है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.