अपराजिता चेंजमेकर्स बेटियां
असम की महिला आईपीएस संजुक्ता पाराशर ऐसी जांबाज अफसर हैं कि उनके नाम से ही आतंकी घबराते हैं। संजुक्ता बोडो उग्रवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वर्ष 2015 में उनके नेतृत्व में चले ऑपरेशन में 16 आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया था, जबकि 64 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया था। संजुक्ता की कार्रवाई यही नहीं रुकी। उनकी टीम ने वर्ष 2014 में 175 व 2013 में 172 आतंकियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया।
संजुक्ता ने राजनीति विज्ञान से दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से ग्रेजुएट किया। इसके बाद जेएनयू से इंटरनेशनल रिलेशन में पीजी और यूएस फॉरेन पॉलिसी में एमफिल व पीएचडी किया है। वर्ष 2006 बैच की आईपीएस संजुक्ता ने यूपीएससी की परीक्षा में 85वीं रैंक हासिल की थी। असम उनका गृह राज्य है और उन्होंने मेघालय-असम कैडर को चुना। अगर संजुक्ता चाहती तो उसे बिना किसी मशक्कत के डेस्क जॉब मिल सकती थी, लेकिन उन्होंने आईपीएस जैसा कठिन रास्ता चुना।
वर्ष 2008 में उनकी पहली पोस्टिंग माकूम में असिस्टेंट कमांडेंट के तौर पर हुई। उसके बाद उदालगिरी में बोडो और बांग्लादेशियों के बीच हुई हिंसा को काबू करने के लिए भेज दिया गया। वे सोनितपुर के जंगलों में आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन चलाने को लेकर काफी चर्चा में रहीं। उनके इस ऑपरेशन की फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थी। इस फोटो में वो अपनी पूरी टीम के साथ हाथों में एके-47 राइफल लिए दिखाईं दी थीं। पढ़ने-लिखने की शौकीन संजुक्ता का मानना है कि सिर्फ गुनाहगारों को उनसे डर लगना चाहिए। काम से ब्रेक मिलने पर वे अपना ज्यादातर वक्त रिलीफ कैंप में लोगों की मदद करने में लगाती हैं। उग्रवादी ऑर्गेनाइजेशन की ओर से उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियां भी मिल चुकी हैं, लेकिन उन्होंने इन धमकियों की कभी परवाह नहीं की। आज भी आतंकी उनके नाम से घबराते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.