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हादसे ने छीना मानसी का एक पांव, लेकिन जज्बा नहीं छीन सका

Published - Thu 28, Mar 2019

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मानसी जोशी, पैरालंपिक, बेडमिंटन

सड़क हादसे ने भले ही मानसी जोशी का एक पांव छीन लिया, लेकिन उनके जज्बे, जोश और जुनून को नहीं छीन सका। मानसी के लिए यह दुर्घटना अब नई नहीं रही। वह जब बेडमिंटन कोर्ट में उतरती हैं तो उनकी फुर्ती और खेल देखकर हर कोई चकित हो जाता है। हाल ही में मानसी ने थाईलैंड पैरा बैडमिंटन इंटरनेशनल चैंपियनशिप 2018 में कांस्य पदक जीतकर सबका दिल जीत लिया। मानसी ने जीवन में कठिन हालातों के बावजूद अपने सपने का पीछा करना नहीं छोड़ा। वह पदक जीतने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही हैं। मुंबई में जन्मी इस खिलाड़ी ने पी गोपीचंद अकादमी में प्रशिक्षण लिया। मानसी ने दिसंबर 2011 में एक पांव गंवा दिया था, लेकिन खेलना जारी रखा। उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘मैं बचपन से बैडमिंटन खेल रही हूं और विकलांग होने के बाद भी मैंने फिर से यह खेल खेलना शुरू कर दिया।’ मानसी कृत्रिम पांव के सहारे खेलती है तथा अब तक कई बैडमिंटन टूर्नामेंट में हिस्सा ले चुकी। वह 2015 से भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और पदक भी जीत चुकी हैं। मानसी ने बताया कि उन पर कृत्रिम पांव मुंबई में रिहैबिलिटेशन क्लिनिक में लगाया गया। वह जिस कृत्रिम पांव का उपयोग करती हैं उसमें सेंसर लगे हुए हैं। मानसी ने कहा कि वह जिस कृत्रिम पांव का उपयोग करती है, वह काफी महंगा है और उन्हें उम्मीद है कि सरकार इसमें छूट देकर मदद करेगी। उन्होंने बताया कि कृत्रिम अंगों में हाल में पांच प्रतिशत का जीएसटी जोड़ा गया। मानसी ने कहा, ‘कृत्रिम पांव की कीमत 20 लाख रूपये है और प्रत्येक पांच साल में इसे बदलना पड़ता है तथा यह निश्चित तौर पर एक बोझ है भले ही आप कितने भी धनी हों।’

हादसा...नहीं थमा सफर

सॉफ्टवेयर इंजीनियर मानसी जोशी को एक ट्रक वाले ने टक्कर मार दी थी और एक पैर बुरी तरह से खत्म हो गया था। एक बार तो मानसी को ऐसा लगा कि ​ जिंदगी खत्म सी हो गई है। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। हौसलों की बुलंद मानसी जोशी का सफर यहां खत्म नहीं हुआ। उन्होंने आगे अपने लिए एक ऐसा रास्ता चुना, जिसे करना तो दूर लोग सोच भी नहीं पाते हैं। खुद मानसी के अनुसार, 'मैं जब अपने दोपहिया वाहन पर ऑफिस जा रही थी, तभी एक ट्रक ने धक्का मार दिया। ट्रक का पहिया मेरे पैर पर से निकल गया। यह उस ट्रक ड्राइवर की गलती नहीं थी। दरअसल, एक पिलर की वजह से वह मुझे देख ही नहीं पाया। डॉक्टरों ने मेरा पांव बचाने के बहुत प्रयास किए, लेकिन संक्रमण होने से मेरा यह पांव काटना पड़ा।' डॉक्टर ने जब पूछा तो मेरा यही जवाब था कि 'यह तो मुझे हादसे के समय ही पता लग गया था कि ऐसा कुछ जरूर होगा।'

दो रास्ते, किया कठिन चुनाव
मानसी बताती हैं कि जब कभी हॉस्पिटल में उनसे कोई मिलने आता तो वह उससे हंसी-मजाक करतीं, चुटकुले सुनातीं,  क्योंकि वह नहीं चाहती थीं कि उनकी वजह से कोई रोए। लेकिन मुझे एक डर था कि मैं अपना पसंदीदा खेल बेडमिंटन खेल पाऊंगी या नहीं। कहा, मेरे पास दो रास्ते थे, पहला कि इसे दुर्भाग्य मानकर मैं घर पर बैठकर रोऊं या फिर दूसरे रास्ते को चुनते हुए इस स्थिति को मन से अपना लूं और आगे बढ़ने के प्रयासों में जुट जाऊं। फिजियोथेरेपी और अपने नकली पैर की मदद से चलने का अभ्यास करने लगी और धीरे-धीरे बेडमिंटन भी खेलना शुरू कर दिया।

आपको रोक कौन रहा है...
दुर्घटना से उबरने के बाद उन्होंने अगस्त 2012 में अपना पहला मैच खेला और महिलाओं के सिंगल्स में पहला स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मानसी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अब तक न जाने कितने मेडल्स मानसी ने अपने नाम किए। मानसी बताती हैं कि लोग जब उनसे यह सवाल पूछते हैं कि वह इतना सबकुछ कैसे कर लेती हैं तो, उनका सीधा सा जवाब होता है कि आपको कुछ करने से कौन रोक रहा है।