अपराजिता चेंजमेकर्स बेटियां
महज 40 दिन की उम्र में पैर गंवाने के बाद व्हील चेयर पर ही अपनी जिंदगी को रफ्तार दे रही पूजा आज आसमान की सैर कर रही हैं। यह बात पूजा खुद कहती हैं कि वह पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती लेकिन आसमान में उड़ रही हैं। हालांकि उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। अपनी खुद की कमजोरी के साथ उन लोगों को भी जवाब देना था, जो पूजा को निशक्तजन समझते थे। पूजा ने अपने हौसलों को इतना मजबूत रखा कि आज सिर्फ देश ही नहीं, पूरा विश्व उन्हें जानने लगा है।
पूजा बताती हैं, 'मैं सिर्फ 40 दिन की थी जब मेरे पैरों को बचाने के लिए ऑपरेशन किया गया था। लेकिन तंत्रिका कोशिकाएं खराब हो गई थीं, इसीलिए डॉक्टरों ने पापा-मम्मी से कहा कि वे अब कुछ नहीं कर सकते।' पूजा के कई सपने थे, जिन्हें वो पूरा करना चाहती थी, वह अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थीं, कानून की पढ़ाई करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने सिंबोयसिस कॉलेज पुणे में एडमिशन लिया। कॉलेज में निशक्तजनों के अनुरूप इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं था। इसलिए पूजा के जाने के बाद कॉलेज ने उनके लिए रैंप बनवाया। लेकिन यह रैंप ढालदार था और पूजा चढ़ने व उतरने में परेशानी होती थी। उन्होंने कॉलेज प्रशासन से रैंप को सही करवाने के लिए बोला लेकिन उन्हें कहा गया कि जो रैंप उन्हें मिला है, उसी से काम चलाएं। पूजा कॉलेज प्रशासन से काफी लड़ी, लेकिन अंत में उन्हें यह बोल दिया गया कि वे किसी और कॉलेज में एडमिशन ले लें। यह पूजा के लिए किसी बुरी खबर से कम नहीं था। लेकिन यहां पूजा के हौसले ने उन्हें टूटने नहीं दिया। उन्होंने दूसरा कॉलेज चुना और पढ़ाई पूरी की।
नौकरी में काबिलियत नहीं, अक्षमता की होती थी बात
पढ़ाई पूरी होने के बाद भी मुश्किलों ने पूजा का पीछा नहीं छोड़ा। सबसे बड़ी चुनौती थी नौकरी हासिल करने की। पूजा नौकरी के लिए कई इंटरव्यू में शामिल हुईं। लेकिन इंटरव्यू लेने वाले लोग सिर्फ उनकी अक्षमता के बारे में बात करते थे। उनकी काबिलियत की बात नहीं की जाती थी। पूजा बताती हैं कि काफी दुख होता था जब उनकी योग्यता को जाने बगैर सिर्फ बाहरी व्यक्तित्व को देखकर रिजेक्ट कर दिया जाता था। हालांकि उन्हें नौकरी तो मिल गई, लेकिन आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं था। नौकरी खोजना कठिन काम था, लेकिन पूजा ने नौकरी हासिल कर ही ली। वह एक अच्छी कंपनी में नौकरी कर रही हैं। कई मुश्किलों और चुनौतियों के बाद पिछले साल पूजा ने मिस इंडिया व्हीलचेयर का खिताब जीता।
'मेरी जिंदगी में तमाम चुनौतियां हैं, लेकिन वे कभी मुझे परिभाषित नहीं करेंगी। आप यह सोचने के लिए स्वतंत्र हैं कि मैं अक्षम हूं, लेकिन मुझे पता है कि मैं क्या हूं। अधिकतर लोग पहले मेरी व्हीलचेयर को देखते हैं फिर मुझसे मुखातिब होते हैं। कुछ मिनट बिताने के बाद वे कहते हैं कि मैं तो आकर्षक हूं। लेकिन मैंने कभी चुनौतिसयों को खुद पर हावी नहीं होने दिया बल्कि उस पर विजय हासिल की।'
पूजा
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.