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सब्जी मंडी में बीता बचपन, 12 साल की उम्र में शादी, आज कोलाज आर्टिस्ट हैं शकीला

Published - Fri 05, Apr 2019

अपराजिता चेंजमेकर्स

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जब कोई सपना देखो तो उसे पूरा करने की भी ठान लो। जब तक सपना पूरा न हो चैन से न बैठो, चाहते कितनी भी रुकावटें क्यों न आए। ऐसी ही सोच के साथ शकीला शेख ने अपनी जिंदगी को भी रफ्तार दी और आज देश ही नहीं, विदेशों तक में उनके हुनर को पहचान मिली है। शकीला शेख कागज के टुकड़ों, अखबार के पन्नों और कार्ड बोर्ड से खेलती हैं। बिना कैंची वो कागजों को आकार, रंग-रूप देती है। शकीला शेख का बचपन कोलकाता की सड़कों पर गुमनामी में ही बीत जाता, लेकिन किसी भले आदमी ने उसे बेटी मान हाथ थामा और औ शकीला ने अपने अंदर कैद कलाकार को आजाद कर दिया। आज शकीला की कला जर्मनी, फ्रांस, नॉर्वे और अमेरिका तक पहुंच चुकी है।

गरीबी को नहीं बनने दिया मजबूरी
कभी
सब्जी मंडी में बचपन बिताने वाली शकीला शेख आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर जानी मानी कोलाज आर्टिस्ट हैं। पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के नूरग्राम गांव में रहने वाली शकीला कहती हैं, 'जब मैं बहुत छोटी थी, तब अब्बा छोड़कर चले गए। छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं। घर की पूरी जिम्मेदारी मां पर आ गई। मां घर से 40 किलोमीटर दूर कोलकाता के तालतला मार्केट सब्जी बेचने जाया करती थी. मैं भी मां के साथ जाती लेकिन मैं सब्जी नहीं बेचती थी। मैं सड़क पर चलने वाले लोगों, गाड़ियों, बस और ट्राम को देखती रहती थी।

' शकीला का बचपन कई अभावों और परेशानियों से भरे हालातों में बीत रहा था, कि एक शख्स ने उनका हाथ थाम लिया और जिंदगी बदलने लगी। जहां पर शकीला की मां सब्जी बेचा करती थी वहां सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी बलदेव राज पनेसर सब्जी लेने आया करते थे। वे बच्चों को पेंसिल, किताब आदि चीजें मुफ्त में बांटते थे। उन्होंने शकीला की मां को तैयार कि वे अपनी बेटी को स्कूल भेजे। इसके बाद शकीला का तालतला के एक स्कूल में एडमिशन करवाया गया। शकीला ज्यादा नहीं पढ़ सकी और 12 साल की उम्र में उसकी शादी कर दी गई। शकीला बताती हैं, "मैंने गरीबी को कभी मजबूरी नहीं बनाई। पनेसर बाबा ने जो मुझे शिक्षा दी उसी को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। बाबा ने ही मुझे कलाकार बनने के लिए प्रेरित किया। मेरे परिवार ने जो बुरे दिन देखे हैं वैसे दिन खुदा किसी को ना दिखाए।” छोटी उम्र में शादी से ऐसा लगा जैसे शकीला के सपने टूटने लगे हैं। शकीला का पति भी सब्जी बेचता था, लेकिन उस कमाई से घर चलाना मुश्किल था। इस बीच शकीला ने बलदेव राज बात की तो उन्होंने कागज के थैले बनाकर बेचने की सलाह दी। शकीला ने यह काम शुरू किया। थैले बनाते बनाते  शकीला ने एक कोलाज बनाया। बलदेव राज को दिखाने पर उन्होंने ऐसे ही और कोलाज बनाने की सलाह दी, इसके बाद शकीला रुकी नहीं और अलग-अलग कोलाज बनाने लगी।

धर्म को नहीं बनने दिया बाधा
शकीला
कहती हैं कि उन दिनों हमें बलदेव बाबा ने कभी एहसास नहीं होने दिया कि वे सिख हैं और हम मुसलमान। शकीला के मुताबिक, 'असल में बाबा तो इंसानियत में यकीन करते थे। मैंने उन्हें बहुत कम उम्र में देखा और जब भी देखा एक दयालु इंसान के रूप में देखा। बाबा ने भी मुझे जाति और धर्म के चक्कर में नहीं पड़ने की सलाह दी। उन्हीं की सलाह की वजह से मैंने ली, दुर्गा और अन्य भगवानों का कोलाज बनाया, जिसकी लोगों ने खूब सराहना की।' सन 1990 में शकीला ने अपनी पहली प्रदर्शनी लगाई और उनकी कला की तारीफ भी हुई और उसकी अच्छी कीमत भी लगी। वक्त के साथ शकीला के कोलाज आर्ट विदेशों तक पहुंच गए। आज आर्ट गैलरी के जरिए शकीला अपने कोलाज दुनिया भर में बेच रही हैं।

"कलकत्ता की सड़कों पर मैं भूखे पेट सोई, भीषण गरीबी देखी लेकिन मैंने कभी बड़ा बनने का सपना नहीं छोड़ा। जिंदगी में हालात कैसे भी आए, हमें खुद पर भरोसा रखना चाहिए और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।”

- शकीला शेख