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पैरा एथलेटिक्स कंचन लखानी का रेल दुघर्टना में आधा शरीर हो गया था लकवाग्रस्त, बुलंद हौसलों से खुद
को डिगने नहीं दिया, अध्यापक से बनी पैरा एथलेटिक्स खिलाड़ी
फरीदाबाद। दिल में कुछ कर गुजरने की जज्बा हो तो कोई कोई काम मुश्किल नहीं होता। फिर चाहे आप दिव्यांग ही क्यों न हो। ऐसा साबित कर दिखाया फरीदाबाद की बेटी कंचन लखानी ने। दस साल पहले हुई एक रेल दुघर्टना ने कंचन लखानी की जिंदगी ही बदल कर रख दी। दुघर्टना में कंचन का आधा शरीर लकवाग्रस्त हो गया। वह व्हीलचेयर पर आ गईं। मगर उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। खुद के हौसले को टूटने नहीं दिया और पैरा एथलेटिक्स की बेहतरीन खिलाड़ी बन राष्ट्रीय स्तर पर कई स्वर्ण पदक अपने नाम किए। जवाहर कॉलोनी निवासी कंचन लखानी का सपना था कि वह अध्यापक बने और शिक्षा सुधार में अपना योगदान दे सकें। मगर उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। कंचन ने बताया कि साल 2008 से पहले वह पूरी तरह स्वस्थ्य थी। रावल स्कूल में पढ़ाती थी। साल 2018 में जब वह दिल्ली से घर आ रही थी तो रेल दुघर्टना ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी। उस समय उनकी उम्र 25 साल थी। दो भाई के बीच वह अकेली बहन थी। अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान डॉक्टरों ने कहा कि उसके बाएं हाथ में सेप्टिक बन गया है। अगर इसे काटा नहीं गया तो जहर पूरे शरीर में फैल जाएगा। ऑपरेशन के बाद कंचन का बायां हाथ कंधे से काट दिया गया। इसके अलावा स्पाइनल इंजरी होने की वजह से पेट से नीचे का पूरा हिस्सा शिथिल पड़ गया। इस दौरान उन्हें माता पिता व भाइयों का पूरा सहयोग मिला। उन्होंने कंचन को हमेशा हौसला दिया। कंचन ने हार नहीं मानी। एक नया सपना देखा। उसे पूरा करने में जुट गई। राजा नाहर सिंह स्टेडियम में उन्होंने कोचिंग लेनी शुरू की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बच्चों को मुफ्त कोचिंग देनी शुरू की
कंचन ने कहा कि वह शिक्षा के क्षेत्र अपना भविष्य तलाश रही थी। दुघर्टना के बाद वह पूरी तरह टूट गई थी, मगर मन को कभी हारने नहीं दिया। उन्होंने बच्चों को मुफ्त कोचिंग देनी शुरू कर दी। इस दौरान कोच नरसी राम सिंह की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने उनसे खेल में आने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि उन्हें खेल के विषय में कोई जानकारी नहीं है। इस दौरान उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि अगर खेल में हिस्सा लेती है तो वह स्टेडियम तक कैसे पहुंचेंगी। कोच नरसी राम के कहने पर उन्होंने वर्ष 2016 से ट्रेनिंग शुरू कर दी। बड़े भाई रोज अपनी गाड़ी से उन्हें स्टेडियम लाने ले जाने लगे। दो साल में कंचन पैरालंपिक खेल की बेहतरीन खिलाड़ी बन सामने आई। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कई स्वर्ण पदक जीत कर प्रदेश का नाम देश में रोशन किया। कंचन ने बताया कि पिछले साल वह पेरिस में संपन्न हुई शॉटपुट थ्रो में खेल कर आई।
जीते स्वर्ण पदक
कंचन ने लगातार राष्ट्रीय पैरालंपिक प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया है। पिछले साल भी कंचन ने शॉटपुट थ्रो, डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक जीते थे। कंचन के बुलंद हौंसले व उनके प्रयासों की सराहना करते हुए उन्हें पिछले साल मदर टेरेसा गौरव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.