Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

आईएएस बनीं छह बेटियों की कहानी

Published - Mon 08, Apr 2019

अपराजिता गर्व

aparajita garv ias toppr surshti jayant deshmukh

समाज में बदलाव आ रहा है, लोगों की सोच बदलने लगी है और बेटियां अब आगे बढ़ने लगी हैं। बेटियां अब पढ़ लिख रही हैं। वे अब अफसर बि​टिया बन रहीं हैं। कुछ ऐसा ही बेटियों ने साबित करके भी दिखा दिया। यूपीएससी 2019 के परीक्षा परिणाम में कई बेटियां आईएएस बनीं हैं। इनमें से कई ने तो इस मुकाम तक पहुंचने के लिए संघर्ष भी किया। आइए जानते हैं आएएएस बनने वाली बेटियों के बारे में...

अंकिता चौधरी : चार साल पहले मां की मौत, नहीं हारी हिम्मत

यूपीएससी परीक्षा में महम वार्ड एक में रहने वाली ढेर पाना की बेटी अंकिता चौधरी ने 14वां स्थान पाया है। इससे परिजनों में खुशी का माहौल है। अंकिता ने दसवीं व बारहवीं की परीक्षा इंडस स्कूल रोहतक से पास की थी। उसके बाद हिंदू कॉलेज दिल्ली से बीएससी पास की। फिर उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही कैमेस्ट्री ऑनर्स में डिग्री की। अंकिता के पिता महम शुगर मिल में अकाउंटेंट हैं। उनकी माता अंजू जेबीटी अध्यापिका थी, जिनकी चार साल पहले सड़क हादसे में मौत हो गई थी। इसके बाद भी अंकिता ने हिम्मत नहीं हारी और लक्ष्य पाने के लिए लगातार मेहनत करतीं रहीं।

---
 

डॉ. अपराजिता : बचपन से था आईएएस बनने का सपना


यूपीएससी परीक्षा में 82वीं रैंक पाने वाली 25 वर्षीय डॉ. अपराजिता की बचपन से ही इच्छा थी वह बड़ी होकर आईएएस अधिकारी बनें और उन्होंने अपना सबसे बड़ा सपना सच कर दिखाया। डॉ. अपराजिता ने बताया कि उन्होंने 2016 में पीजीआईएमएस रोहतक से एमबीबीएस किया था। इसके बाद एक जनवरी 2017 से यूपीएससी की तैयारी करना शुरू की और परिणाम सामने है। राजस्थान में पिता डॉ. अमर सिंह सिमसिमवार व माता डॉ. नीपन नारा अपनी सेवाएं दे रहे हैं और एक भाई एमबीबीएस कर चुका है। दूसरा भाई अभी एमबीबीएस कर रहा है। वो 29 दिन की थीं तभी नाना-नानी के पास रोहतक आ गई थीं और यहीं रह रही हैं। कमल कॉलोनी में नाना सहजराम नारा सेवानिवृत्त लेक्चरर व नानी राजदुलारी भी सेवानिवृत्त टीचर के साथ मौसा डॉ. सतीश दलाल तथा मौसी डॉ. नित्यासा का उनकी कामयाबी में खासा सहयोग है। कामयाबी की सूचना मिलने पर राजस्थान से पापा-मम्मी का फोन आया और वह सुबह रोहतक आ रहे हैं। डीपीएस से अपनी स्कूली शिक्षा के बाद पीजीआईएमएस से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। डॉ. अपराजिता ने बताया कि वह महिला सशक्तीकरण व बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगी। उन्होंने बताया कि परीक्षा के लिए रोजाना आठ घंटे और परीक्षा के कुछ दिन पहले रोजाना 11 घंटे पढ़ना शुरू किया। कहीं से कोचिंग नहीं ली। बल्कि दिल्ली से अपनी किताबें लाकर घर पर ही पढ़ाई की। एमबीबीएस का चयन उन्होंने अपने कॅरिअर को स्टेबल बनाए रखने के लिए किया था, जबकि लक्ष्य आईएएस अधिकारी बनना था।

----

नुपुर गोयल : चार साल की मेहनत रंग लाई

पंजाब के गिद्दड़बाहा में रहने वाली नुपुर गोयल की ऑल इंडिया रैंक 246वीं हैं। उनके पिता होलसेल किराने की दुकान चलाते हैं। नुपुर ने बताया कि यूपीएससी की तैयारी किसी मामले में आसान नहीं कही जा सकती। पिछले 4 सालों से वह तैयारी में जुटी रहीं। रोजाना 7 से 8 घंटे की पढ़ाई की, तब जाकर 246वीं रैंक हासिल हुई है।
----

ईशमीत कौर : बैंक मैनेजर की बेटी ने हासिल की 505वीं रैंक
पंजाब
नेशनल बैंक के सीनियर मैनेजर की बेटी ईशमीत कौर की ऑल इंडिया रैंक 505वीं है। मोहाली में रहने वालीं ईशमीत फिलहाल ईपीएफओ में बतौर अकाउंट्स ऑफिसर तैनात हैं। उन्होंने बताया कि यूआईटी से इंजीनियरिंग करने के बाद यूपीएससी में बैठने का फैसला लिया। काम के साथ-साथ पढ़ाई मुश्किल थी, लेकिन फिर भी किसी तरह से मैनेज किया।

---

 

अमृतपाल कौर : रेलवे अफसर ने हासिल की 44वीं रैंक


पंजाब के गुरदासपुर निवासी बिजली विभाग से सेवानिवृत्त एसडीओ जोगिंदर सिंह की बेटी अमृतपाल कौर ने चौथे मौके में 44वीं रैंक हासिल की। वे वर्तमान में रेलवे में अधिकारी हैं लेकिन अवकाश लेकर तैयारी कर रही थीं। राजनीति विज्ञान व इंटरनेशनल रिलेशन उनके पसंदीदा विषय रहे हैं। वे कहती हैं कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान कोचिंग ली थी। इसके बाद सेल्फ स्टडी ने सफलता दिलाई। परिवार का पूरा साथ मिला। ऑनलाइन पेपर भी दिल्ली के एक केंद्र के जरिए दे रही थीं।

----
प्रीति यादव : हेड कांस्टेबल की बेटी की चमक


चंडीगढ़ के सेक्टर 19 की रहने वाली प्रीति यादव ने 466वीं रैंक हासिल की है। वे चंडीगढ़ पुलिस में हेड कांस्टेबल मुकेश यादव की पुत्री हैं। पिता का सपना था कि बेटी नाम रोशन करे। प्रीति ने भूगोल विषय से पढ़ाई की थी। कोचिंग भी आईएएस स्टडी सर्किल से हासिल की। जीसीजी सेक्टर 11 में पढ़ीं प्रीति कहती हैं कि उन्हें पूरे परिवार का सहयोग मिला। उन्हें दूसरी बार में यह सफलता मिली। बोलीं कि वे इस रैंक से संतुष्ट हैं। इसका श्रेय परिवार के अलावा दोस्तों और शिक्षकों को जाता है।