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जब झुग्गी पर चला बुलडोजर तो उम्मुल ने ठान लिया कि अब बनना है आईएएस

Published - Tue 16, Apr 2019

अपराजिता गर्व

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दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में उम्मुल ने अपनी आंखों के सामने अपने झुग्गीनुमा घर पर बुल्डोजर चलते देखा। घर पर चल रहे बुल्डोजर से परिवार तो गमजदा था ही खुद उम्मुल के सपने भी बुल्डोजर के नीचे कुचले जा रहे थे। आशियाने पर आई आफत देखकर उम्मुल ने ठान लिया कि अब आईएएस बनना है।

उम्मुल के संघर्ष की कहानी आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। वो युवा पीढ़ी, जो जरा की परेशानी से हार मान लेती है। उम्मुल का जन्म राजस्थान के पाली मारवाड़ में हुआ। वह उस समाज से ताल्लुक रखती हैं, जहां शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता। उम्मुल जब  मात्र दस महीने की थीं, तो उनके पिता उनकी मां और उम्मुल को छोड़कर दिल्ली आ गए। उम्मुल की देखभाल के लिए उनकी मां ने एक स्कूल में काम करना शुरू किया, लेकिन गंभीर बीमारी के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी। मां ने आर्थिक परेशानी के कारण उम्मुल को दिल्ली भेज दिया। यहां वह हजरत निजामुद्दीन के पास झुग्गियों में रहने लगीं। 2001 में निजामुद्दीन की झुग्गियां तोड़ दी गई, तो उनका परिवार त्रिलोकपुरी इलाके में किराये के मकान में चला गया। उम्मुल की मां की मौत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली। सौतेली मां से भी उन्हें ज्यादा प्यार नहीं मिला। पढ़ाई के प्रति जूनूनी उम्मुल को सातवीं कक्षा तक घर से भी सपोर्ट मिला। उन्हें सुनने को मिलता रहा कि आगे ज्यादा पढ़ाई करने की क्या जरूरत है। परिवार का यह ख्याल था कि अगर लड़की बाहर जाएगी तो बदनामी होगी। लेकिन उम्मुल अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी।

ट्यूशन पढ़ाकर किया अपना गुजारा
उम्मुल
का परिवार उनकी पढ़ाई पर पैसा नहीं खर्च करना चाहता था। इस वजह से अपना खर्चा उठाने के लिए उम्मुल ने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। एक बच्चे को पढ़ाने से 50 से 60 रुपया मिलता था। घर की समस्या और पिता के पास नौकरी न होने की वजह से उम्मुल की पढ़ाई को लेकर घर में रोज झगड़ा होने लगा। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उम्मुल अपने घर से अलग हो गई तब वो नवीं क्लास में थी। त्रिलोकपुरी में एक छोटा सा कमरा किराया पर लिया। एक नवीं क्लास की लड़की को त्रिलोकपुरी इलाके में अकेले किराए पर रहना आसान नहीं था। उम्मुल को बहुत समस्या का सामना करना पड़ा। उम्मुल रोज आठ-आठ घंटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी।

विकलांग बच्चों के स्कूल में की पढ़ाई
उम्मुल
को पांचवीं क्लास तक दिल्ली के आईटीओ में विकलांग बच्चों की स्कूल में पढ़ाई करनी पड़ी। फिर आठवीं तक कड़कड़डूमा के अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढाई की। यहां फ्री में पढ़ाई होती थी। आठवीं क्लास में उम्मुल स्कूल की टॉपर थी फिर स्‍कॉलरशिप के जरिये दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में हुआ। यहां उम्मुल ने 12वीं तक पढ़ाई की। दसवीं में उम्मुल के 91 प्रतिशत मार्क्‍स थे।12वीं क्लास में उम्मुल के 90 प्रतिशत मार्क्‍स थे। तब भी उम्मुल अकेले रहती थी, ट्यूशन पढ़ाती थीं। 12वीं के बाद उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन किया। उम्मुल जब गार्गी कॉलेज में थी तब अलग-अलग देशों में दिव्यांग लोगों के कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2011 में उम्मुल सबसे पहले ऐसे कार्यक्रम के तहत दक्षिण कोरिया गई। दिल्ली यूनिवर्सिटी में जब उम्मुल पढ़ाई करती थी तब भी बहुत सारे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। उम्मुल तीन बजे से लेकर रात को ग्यारह बजे तक ट्यूशन पढ़ाती थी। अगर उम्मुल ट्यूशन नहीं पढ़ाती तो घर का किराया और खाने-पीने का खर्चा नहीं निकाल पाती। ग्रेजुएशन के बाद उम्मुल को साइकोलॉजी विषय छोड़ना पड़ा। दरअसल साइकॉलॉजी में इंटर्नशिप होती थी। उम्मुल अगर इंटरशिप करती तो ट्यूशन नहीं पढ़ा पाती। फिर उम्मुल का जेएनयू में मास्टर ऑफ आर्ट्स के लिए एडमिशन हुआ। उम्मुल ने साइकोलॉजी की जगह इंटरनेशनल रिलेशंस चुना।

जेएनयू में उम्मुल को हॉस्टल मिल गया। जेएनयू के हॉस्टल का कम चार्ज था, अब उम्मुल को ज्यादा ट्यूशन पढ़ाने की जरुरत नहीं पड़ी। एमए पूरा करने के बाद उम्मुल जेएनयू में एमफिल में एडमिन ले लिया। 2014 में उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयन हुआ। 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन भारतीय इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हो पाए थे और उम्मुल ऐसी चौथी भारतीय थीं, जो इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हुई थीं। फिर उम्मुल एक साल छुट्टी लेकर इस प्रोग्राम के लिए जापान चली गई। इस प्रोग्राम के जरिये उम्मुल दिव्‍यांग लोगों को यह सिखाती थी कि कैसे एक इज्‍जत की जिंदगी जी जाए। एक साल ट्रेनिंग प्रोग्राम के बाद उम्मुल भारत वापस आई और अपनी एमफिल की पढ़ाई पूरी की।एमफिल पूरी करने के साथ-साथ उम्मुल ने जेआरफ भी क्लियर कर ली। अब उम्मुल को पैसे मिलने लगे। अब उम्मुल के पास पैसे की समस्या लगभग खत्म हो गई। एमफिल पूरा करने के बाद उम्मुल ने जेएनयू में पीएचडी में दाखिला लिया। जनवरी 2016 में उम्मुल ने आईएएस के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर उम्मुल ने 420वीं रैंक हासिल की है।

 
अपना माता-पिता को हर सुविधाएं देना चाहती हैं उम्मुल
उम्मुल का कहना है कि उनके परिवार के लोगों ने उनके साथ जो भी किया वह उनकी गलती थी। उम्मुल का कहना है कि शायद उनके पिता ने लड़कियों को ज्यादा पढ़ते हुए नहीं देखा था इसीलिए वह उम्मुल को नहीं पढ़ाना चाहते थे। उम्मुल का कहना है कि उसने अपने परिवार को माफ कर दिया है। अब परिवार के साथ उसके अच्‍छे संबंध हैं। वह अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करती है और अब वह उन्हें हर तरह का आराम देना चाहती है जो‍कि उनका हक है। उम्मुल कहती हैं कि जब आप बड़े सपने देखते हैं, तो ऐसे सपनों को पूरा करने के लिए ज्यादा हिम्मत भी चाहिए होती है। कहां से सहयोग मिल रहा है या नहीं, कई बार ये बहुत ज्यादा बेईमानी हो जाता था। जब आप अपने हौसले को बहुत बड़ा कर लेते हैं तो आपको समर्थन मिल रहा या नहीं, ये ज्यादा मायने नहीं रखता है।

16 फैक्चर और 8 ऑपरेशन नहीं दे पाए प्रतिभा को मात
उम्मुल जैसी लड़की को जितनी बार सलाम किया जाए, उतना ही कम है। एक ऐसी लड़की जो विकलांग पैदा हुई और इस विकलांगता को अपनी ताकत बनाते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ती चली गई। उम्मुल अजैले बोन डिसऑर्डर बीमारी के साथ पैदा हुई थी, एक ऐसा बॉन डिसऑर्डर जो बच्‍चे की हड्डियां कमजोर कर देता है। हड्डियां कमजोर हो जाने की वजह से जब बच्चा गिर जाता है तो फ्रैक्चर होने की ज्यादा संभावना रहती है। इस वजह से 28 साल की उम्र में उम्मुल को 16  से भी ज्यादा बार फ्रैक्चर का सामना करना पड़ा है। उम्मुल ने अब तक 16 फ्रैक्चर हो चुके हैं और 8 बार उनकी सर्जरी हो चुकी है। बावजूद वह हार नहीं मानती और खुद को साबित कर दिया कि जूनुन के आगे ही जिंदगी है।