अपराजिता गर्व
किसान की एक ऐसी बेटी, जिसने हर समय संघर्ष किया लेकिन हिम्मत नहीं हारी। लगातार आगे बढ़ती रही और साबित कर दिखाया कि अगर मन ठान लिया जाए तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। मुरादाबाद के कुंदरकी गांव की इस बेटी का नाम है इल्मा अफरोज।
इल्मा अफरोज का बचपन बड़ी ही मुसीबतों भरा रहा, लेकिन वह उनका सामना करती रही। खुद इल्मा के अनुसार जब वह 14 साल की थी, तब उनके अब्बू दुनिया छोड़कर चले गए। वहीं उस समय नौंवीं कक्षा में पढ़तीं थीं। तब उनका भाई 12 साल का था। इल्मा बताती हैं कि अब्बू उनके बालों में कंघी किया करते थे, लेकिन उन्होंने अब्बू के जाने के बाद बाल ही कटवा लिया। पढ़ाई करना भी मुश्किल था लेकिन स्कॉलरशिप के जरिए वो पढ़ती रहीं। स्कॉलरशिप से ही वह दिल्ली के स्टीफन कॉलेज और इसके बाद पेरिस, न्यूयॉक, ऑक्सफोर्ड में पढ़ी। पढ़ाई तो होती रही लेकिन खुद का खर्चा उठाना भी काफी परेशानी भरा काम था। उन्होंने बताया कि वे अपना खर्च निकालने के लिए घरों में झाडू पोछा और बर्तन तक साफ करतीं थीं। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू कर दिया। भाई ने उन्हें सिविल परीक्षा देने को प्रेरित किया। मैं भी आईएएस बनना चाहती थी, लेकिन मुझे लगा कि आईपीएस बनना मेरे लिए ज्यादा जरूरी है।
लोग कहते... लड़की क्या कर लेगी?
इल्मा बताती हैं कि मैं तैयारी कर रही थी, लेकिन लोगों का कहना था कि लड़की है, क्या कर लेगी। लेकिन मैंने उन्हें कभी जवाब नहीं दिया, बस चेहरे पर मुस्कान ले आती। आईपीएस बनना भी आसान नहीं था। इल्मा ने इस दौरान खेत में पानी चलाने, गेहूं काटने और जानवरों के चारा बनाने जैसे काम भी किए और लगातार पढ़ती भी रही।
रंग लाई मेहनत
यह मेहनत का ही परिणाम था कि इल्मा ने यूपीएससी परीक्षा में 217वीं रैंक हासिल की। अब से पहले भले ही कोई इन्हें पूछने वाला न हो, मगर इल्मा के आईपीएस बनने की खबर सुनते ही घर में रिश्तेदारों का जमघट लग गया। इल्मा की मां सुहेला अफरोज काफी खुश हैं। वे कहती हैं कि उनकी बेटी ने बहुत मेहनत की और रब ने उसकी सुन ली, उसका रब खुश हो गया है। अद्भुत प्रतिभा की धनी इल्मा हिम्मत न हारने की मिसाल हैं। वह अपने जीवन के संघर्षों को बताते हुए बिल्कुल हिचकती नहीं हैं।
गांव देश के लिए छोड़ा विदेश
इल्मा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की। उसके बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। विदेश में पढ़ते हुए भी उनका सपना देश के लिए कुछ करने का था। उन्होंने बताया ऑक्सफोर्ड में पढ़ने के दौरान न्यूयॉर्क में रहती थी और वहां पर काफी चकाचौंध थी। लेकिन मैं ऐसी जगह से गई थी, जहां मोमबत्ती में भी पढ़ाई की है। मां चूल्हे पर रोटी बनाया करती थीं। उन्होंने कहा फ्लाइट के पैसे भी खेती-बाड़ी से ही निकाले। तब मैंने सोचा विदेश में पढ़ाई करके अगर मैं विदेश के लोगों की सेवा करूं तो इससे मेरे गांव और परिवार वालों को कोई फायदा नहीं होगा, जिन्होंने मुझ पर इतनी मेहनत की है। इसके बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
सफलता की राह आसान नहीं होती
उन्होंने बताया सफलता की राह आसान नहीं होती है। कई बार ऐसा हुआ है जब असफलता हाथ लगी। मैं वकील बनना चाहती थी, लेकिन स्कॉलरशिप न मिलने पर कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एडमिशन नहीं हो पाया। वहीं, जब मेहनत शुरू की तो राह खुलने लगी। वह बताती हैं कि सबसे ज्यादा शुक्रगुजार मैं अपने मुल्क का करती हूं, जिन्होंने मुझे स्कॉलरशिप दी, जिस वजह से मेरी पढ़ाई बाहर विदेश में हुई।
उप राष्ट्रपति ने किया सम्मानित
दिल्ली में सिविल सर्विसेज में चयनित प्रतिभागी अभिनंदन समारोह-2018 में मुख्य अतिथि एवं देश के उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू की उपस्थिति में चयनित आईपीएस इल्मा अफरोज को सम्मानित किया गया। साथ ही उप राष्ट्रपति के साथ यादगार ग्रुप फोटो भी खिंचवाया गया। कार्यक्रम में केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इल्मा अफरोज की मां सुहैला अफरोज को भी सम्मानित किया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.