अपराजिता गर्व
बड़गाम/जम्मू-कश्मीर। रूबीना तबस्सुम... सफलता का ऐसा नाम, जिन्होंने अपनी जिद, मेहनत और लगन से लोगों की बोलती बंद कर दी। ताने सुन-सुनकर इंसान एक समय बाद हार मान लेता है, लेकिन रूबीना ने उन्हीं तानों को अपनी ताकत बनाया और बिना रुके, बिना थके आगे बढ़ती रही। ... तो रूबीना की सक्सेस स्टोरी कुछ इस तरह है।
कश्मीर से करीब 15 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र बड़गाम की रहने वाली रूबीना तबस्सुम का सपना डॉक्टर बनने का था, लेकिन कम उम्र में उसकी शादी हो गई। उस समय रूबीना 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी। शादी के बाद मानों रूबीना के पंख कतर से गए हों। घर ही उसके लिए सब कुछ हो गया, लेकिन कुछ करने की चाह रूबीना को रोक नहीं सकी। वह बताती हैं कि एक दिन उन्होंने रेडियो पर 'मंज़िलें और भी हैं' कार्यक्रम सुना। इस दौरान उनकी जानकारी में आया कि एक संस्था 'ईडीआई' उद्यमियों को ट्रेनिंग देती है। रूबीना भी वहां पहुंच गई और फूलों से जुड़े कट फ्लावर बिजनेस के बारे में उन्होंने जाना और सीखा। वे बताती हैं कि कट फ्लावर की बागवानी के लिए उन्हें कई तकनीकी बारीकियां सीखनी और समझनी पड़ी - जैसे मिट्टी की किस्में, विशेष ढांचे, इन फूलों के लिए नियंत्रित तापमान और आर्द्रता बनाए रखने के लिए पॉलीग्रीन हाउस और अल्ट्रा वायलट रेस(यूवी) विकिरणों की अधिकता से बचाने के लिए यूवी फिल्म्स के बारे में जाना। यह कट फ्लावर कई दिनों तक तरोताजा रहते हैं और गुलदस्तों में सजावट में काम आते हैं।
संघर्ष और सफलता
कट फ्लावर बिजनेस की ट्रेनिंग तो ले ली, लेकिन रूबीना की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हो गई। यह बिजनेस शुरू करने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी, लेकिन कहीं से उन्हें मदद नहीं मिल पा रही थी। मैं एक महिला कारोबारी थी, इसलिए कोई जमीन देने को कोई तैयार नहीं था। बैंक ने भी मेरी कर्ज की अर्जी ठुकरा दी। थक हारकर रूबीना के पति को कंज्यूमर लोन लेना पड़ा। इसके बाद घर और बिजनेस की दोहरी जिम्मेदारी। एक समय ऐसा आया कि पति ने भी बोल दिया, छोड़ दो, नहीं कर पाओगी, लेकिन रूबीना ने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद रूबीना आगे बढ़ती रही। एक साल बाद ही रूबीना की सफलता नए आयाम छूने लगी। रूबीना बताती हैं कि जिस बैंक ने मुझे कर्ज देने से इनकार किया था, उसी ने मुझे वर्ष 2006 में 'बेस्ट आंत्रपेन्योर अवार्ड' दिया। यही नहीं, जो लोग किराए पर जमीन देने से कतराते थे, वे अब खुद मेरे पास जमीन का प्रस्ताव लेकर आते हैं।
जो ताने देते थे, अब देते हैं मिसाल
रूबीना बताती हैं कि एक समय ऐसा था जब लोग मुझे खूब ताने दिया करते थे। बड़गाम का सामाजिक ढांचा किसी महिला कारोबारी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। जब मैंने शुरुआत की तो लोग कहने लगे यह औरत है, कारोबार कैसे कर पाएगी? ऐसी क्या मजबूरी हो गई कि बच्चों को घर में अकेला छोड़कर बाहर काम करने जाना पड़ रहा है। घर का काम क्यों नहीं करती? रूबीना बताती हैं कि यह ऐसे सवाल और ताने थे, जो बहुत चुभते थे। इसके बाद मैंने सोच लिया कि मैं गृहस्थी संभालने के साथ-साथ व्यापार भी करुंगी। इसी सोच के साथ आगे बढ़ी और सफलता हासिल की। मैं खुश हूं कि खुद का बिजनेस संभालने के साथ-साथ कई बेरोजगार युवाओं को भी नौकरी दी। जो लोग ताने देते थे, अब वही लोग मेरी मिसाल देते हैं, कहते हैं... देखो एक मां, एक बहू ने कैसे कारोबार सीखा और सफल रही।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.