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असफल रहीं पर हार नहीं मानी, चानू ने दिलाया देश को पहला गोल्ड

Published - Tue 12, Mar 2019

अपराजिता मैदान की महारथी

aparajita maidaan ki maharathi Saikhom Mirabai Chanu

24 साल की भारतीय वेटलिफ्टर साईखोम मीराबाई चानू मणिपुर के नॉनपोक काकचिंग में जन्मी। वेटलिफ्टिंग को अपना खेल बनाया और 22 वर्ष की उम्र में रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया। यहां वे पूरी तरह असफल रहीं, लेकिन हार नहीं मानी। अगले ही वर्ष 2017  वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप के 48 किलोग्राम वर्ग में उन्होंने कुल 194 किलोग्राम वजन उठाकर गोल्ड मेडल जीता। और 2018 में वे कॉमनवेल्थ खेलों में भी देश को पहला गोल्ड मेडल दिलाने में सफल रहीं। अपनी उपलब्धियों के लिए चानू को देश का सबसे बड़ा खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न दिया गया है।

परिवार साथ है तो रुकने की नहीं बात
लड़कियों के लिए राहें इतनी भी आसान आज तक नहीं हुई है कि वे बिना किसी बाधा आगे बढ़ सकें। सबसे पहली चुनौती घर से आती है जो सामाजिक अपेक्षाओं के आगे बेटियों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को सीमित करने लगता है। अगर भारतीय लड़कियां इन हालात से जूझते हुए आगे बढऩा सीख लें, या परिवार से उन्हें पूरा सहयोग मिलने लगे, तो यकीन मानिए उन्हें आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता।

'आगे बढ़ते जाइए, परख विपरीत हालात में ही होती है। यदि लक्ष्य से पहले रुक गए तो फिर सपने अधूरे ही रह जाएंगे।'
साईखोम मीरा चानू, वेटलिफ्टिंग