अपराजिता चेंजमेकर्स
देहरादून। हमें हमेशा एक जिम्मेदारी समझा जाता है। पहले पिता की फिर पति और फिर बेटे की। हमें इस सोच को बदलना था। हम किसी की जिम्मेदारी नहीं हैं। हम खुद जिम्मेदार हैं और अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठा सकते हैं। बुलंद हौसलों के साथ महिलाओं ने एक सुर में महिला शक्ति का अहसास कराया। महिलाओं ने कहा कि हमें यह चुनाव करना होता है कि हम किस पर निर्भर रहें या खुद जिम्मेदार बनें। महिला होने से नाते हमें एक अलग पेशा चुनना काफी चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन यही वो अवसर होता है, जब हम समाज को अपनी शक्ति का अहसास कराते हैं।
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राधा देवी : तानों को अनसुना किया, तीन बार बनीं प्रधान
60 साल की राधा देवी ने समाज को बता दिया कि यदि जज्बा हो तो किसी भी उम्र में व्यक्ति कोई भी काम कर सकता है। प्रेमनगर मिट्ठीबेड़ी निवासी राधा देवी उस दौरान ग्राम प्रधान बनीं जब महिलाओं में इतनी जागरूकता नहीं थी। वे तीन बार ग्राम प्रधान बनीं। बतौर राधा देवी, जब मैं चुनाव के लिए उठीं तो लोग कई तरह के ताने मारते थे और पुरुषों के लिए यह बात हजम करना बहुत मुश्किल था, लेकिन जब मैं तीसरी बार भी प्रधान चुनी गईं तो, उन्हें महिला शक्ति का अहसास हो गया। मैंने अपने काम से ही उन्हें जवाब दिया। वे बताती हैं कि 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी, लेकिन उन्हें पढ़ने का शौक था। यह ललक ही थी कि उन्होंने सालों बाद अपनी बेटी के साथ दसवीं की परीक्षा दी और उसमें पास हुई। राधा देवी आज महिलाओं को स्वरोजगार (बेकरी आदि का प्रशिक्षण) के लिए प्रेरित करने का काम कर रही हैं। महिला उद्यमी के रूप में पहचान बना चुकी राधा देवी कहती हैं कि सफर कठिन था, लेकिन मेरे इरादों के सामने मुश्किलों को तो झुकना ही था।
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दिव्या रावत : आत्मनिर्भर बनकर बदल रहीं महिलाओं की सोच
मशरूम लेडी के नाम से अपनी धाक जमाने वाली दिव्या रावत ने छात्राओं को जोश के साथ कहा कि, हर दिन की शुरुआत यह सोचकर करो कि ‘किसी में इतना दम नहीं जो हमें रोक सके।’ आज अपनी दो-दो कंपनियां चलाने वाली दिव्या की राह में भी चुनौतियां तो थीं, लेकिन वह हर मुश्किल को पार कर गईं। दिल्ली से अपनी उच्चशिक्षा पूरी करने के बाद दिव्या ने पहाड़ का रुख किया और मशरूम उत्पादन पर काम शुरू किया। दिव्या मानती हैं कि हर महिला का आत्मनिर्भर होना सबसे ज्यादा जरूरी है।
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पारुल : 23 की उम्र में फिल्म मेकर बन सबके मुंह बंद किए
जो काम लड़के कर सकते हैं वो लड़कियां नहीं कर सकतीं, ऐसी सोच रखने वाले लोगों का पारुल ने मुंह बंद कर दिया। एक अलग पेशा चुनना और इस तेजी के साथ बढ़ना। पारुल ने साबित कर दिया लड़कियां किसी भी तरह से कमजोर नहीं हैं। पारूल ने बताया कि शूट करने के दौरान कई तरह की समस्याएं आती हैं। इसलिए यह सोच रहती है कि लड़कियां इसे नहीं कर सकती हैं, लेकिन आज ऐसा नहीं है। लड़कियां भी हर तरह का चैलेंज ले सकती हैं। पारुल का यह जज्बा ही था कि महज 23 साल की उम्र में उनकी खुद की कंपनी है। वह कहती हैं कि जब भी महिला सशक्तीकरण शब्द सुनती है तो उन्हें अटपटा लगता है। क्योंकि महिला को सशक्त करने की जरूरत नहीं है। वह पहले से ही सशक्त है और यह हम अपनी मां को देखकर कह सकते हैं। पारुल बताती हैं कि मेरे लिए पढ़ाई और रोजगार दोनों जरूरी था और मैंने दोनों को अच्छे से निभाया। मैं हर लड़की से यहीं कहना चाहूंगी कि हमसे ज्यादा पावरफुल कोई नहीं है।
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तोतन गुरुंग : खुद को बनाया मजबूत, एक बेटी को दी नई जिंदगी
बेहद गरीबी से जूझ चुकीं तोतन गुरुंग आज एक मेकअप आर्टिस्ट हैं। जिस दौरान तोतन संघर्ष कर रही थीं, उसी दौरान उनकी नजर एक नौ साल की बच्ची पड़ी, जो बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझ रही थी, तोतन ने उसे गोद लिया और आज वह 18 साल की हो चुकी है। तोतन ने लोन लेकर एक कपड़े की दुकान से शुरूआत की, लेकिन कुछ समय बाद उनका यह काम ठप हो गया, लेकिन तोतन ने हिम्मत नहीं हारी। उनके ऊपर अब एक बेटी की भी जिम्मेदारी थी। उन्होंने मेकअप आर्टिस्ट का काम सीखा। धीरे-धीरे उनका काम सभी को पसंद आया और आज वह किसी की मोहताज नहीं हैं। बताती हैं कि जल्द ही वह दुबई में अपना काम शुरू करेंगी। वे कहती हैं कि आत्मनिर्भर बनने के लिए पढ़ा-लिखा होना ही जरूरी नहीं है। बस कुछ करने की चाह होनी चाहिए।
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नेहा नेगी : खुद से पूछिए, मेरी पहचान क्या है?
मेरा बस एक ही सपना था कि मुझे अपनी पहचान बनानी है। मैं दिल्ली में नौकरी कर रही थी। कुछ समय बाद मैंने नौकरी छोड़ दी और उत्तराखंड आ गई। खुद का काम शुरू करने की सोची। एक रिस्क था, लेकिन मैं उठाने से पीछे नहीं हटी। काम शुरू किया और आज अच्छी पहचान भी मिली। नेहा ऑनलाइन डिमांड के अनुरूप हैंडीक्राफ्ट का सामान तैयार करवाती हैं। युवा महिला उद्यमी के रूप में पहचान बना रही नेहा नेगी आज अपने साथ कई महिलाओं को भी रोजगार के लिए प्रेरित कर रही है। साथ ही वे महिलाओं को काम भी दे रही हैं। वे कहती हैं कि हर महिला को यह सोचना चाहिए और पूछना चाहिए कि उसकी पहचान क्या है। कहती हैं कि महिला जितना सशक्त कोई नहीं है, लेकिन वह अपनी शक्ति को भूल जाती है।
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गरिमा : कुछ नया करने की ललक है तो अपनी शर्तों पर जीयो
युवा महिला उद्यमी गरिमा ने एक सड़क हादसे में अपने पिता को खोने के बाद उन्हीं के नाम से कंपनी शुरू की। जब कंपनी शुरू की तो परिवार में किसी को नहीं बताया। इससे पहले वह दिल्ली में एक कंपनी में एचआर की नौकरी कर रहीं थीं। बतौर गरिमा, कंपनी शुरू करने के लिए पांच लाख का लोन लिया, लेकिन यह लोन मुझे बड़ी मुश्किल से मिला और इसके बाद मैंने बॉस को अपने इस्तीफे के साथ ही अपना विजिटिंग कार्ड भी दिया। मेरा उद्देश्य यह भी था कि मुझे सिर्फ अपने लिए नहीं करना है। मैं चाहती थी कि अपनी शर्तों में जीने का जो अहसास मुझे होता है, वह हर महिला को हो। और मैं मानती हूं कि आत्मनिर्भरता आपको वह आत्मविश्वास देती है।
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शोभा : समाज क्या कहेगा, इसकी परवाह नहीं करें
कोई भी काम शुरू करने से पहले हम यह सोचना शुरू कर देते हैं कि समाज क्या कहेगा? आधी परेशानी यही होती है। मैं ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं, लेकिन मुझे आत्मनिर्भर बनना था। इसलिए मैंने ब्यूटीशियन का काम सीखा और कुछ टाइम बाद अपना ही पार्लर का काम शुरू किया। साथ ही महिलाओं के साथ छोटी-छोटी बचत करने पर जोर दिया। आज कई महिलाएं इस ग्रुप में अपनी छोटी-छोटी बचत करती हैं और अन्य महिलाओं को भी बचत के लिए प्रेरित कर रही हैं। बतौर शोभा, यदि महिलाओं को आगे बढ़ना है तो जागरूकता और आत्मनिर्भरता बेहद जरूरी है और हर महिला को अपनी बेटी को भी स्वावलंबी बनने का पाठ पढ़ाना चाहिए।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.