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बैंकों ने लोन देने से मना किया, चेतना ने खुद बैंक खोल लिया

Published - Mon 11, Mar 2019

अपराजिता साइलेंट चेंजमेकर्स

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एक बैंकर, सामाजिक कार्यकर्ता और माइक्रो फाइनेंस कंपनी माण देशी महिला सहकारी बैंक की अध्यक्ष चेतना सिन्हा का जन्म मुंबई के गुजराती परिवार में हुआ था। जेपी आंदोलन की सक्रिय सदस्य रहीं चेतना का दिल सतारा में ग्रामीण महिलाओं को पत्थर तोड़ते देख पसीज गया। बस यहीं से बदलाव की शुरुआत हुई। महिलाओं को जोड़ा, समूह बनाया, पर समस्या थी कि मजदूरी से उनकी कमाई इतनी नहीं होती थी कि वह कुछ जोड़ सकें। चेतना सिन्हा इसका भी हल ढूंढ लाईं और सहकारी बैंक की योजना बनाई। महिलाएं पढ़ी लिखी नहीं थीं, इसलिए बैंक ने लाइसेंस देने से इनकार कर दिया। चेतना तो ठान चुकी थीं, उन्होंने छह महीने तक ग्रामीण महिलाओं को पहले पढ़ाया। इसके बाद 1997 में भारत के पहले महिला सहकारी बैंक की नींव रखी। आज इस बैंक की महिला सदस्यों की संख्या 40 हजार से अधिक है। ग्रामीण महिला उद्यमियों को समर्थन देने के लिए वीमेंस चैंबर ऑफ कॉमर्स व कौशल प्रशिक्षण के लिए बिजनेस स्कूल भी खोला है।

ऐसे मिली प्रेरणा, बदली ग्रामीण भारत की तस्वीर
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महिला उनसे मदद मांगने आई, उन्होंने उसे लोन लेने की सलाह दी। बैंक ने लोन देने से मना कर दिया, क्योंकि वे पढ़ी लिखी नहीं थीं। चेतना सिन्हा ने महिलाओं के समूह को शिक्षित किया फिर खुद पहला महिला सहकारी बैंक खोल लिया।

'महिलाओं को मजबूत बनाना है तो पहले उनके हाथ में पैसे की ताकत दीजिए। उन्हें अपने पैर पर खड़ा कीजिए, उनके पास बचत की ताकत होना जरूरी है।'

चेतना सिन्हा
बैंकर, सामाजिक कार्यकर्ता, मुंबई