रंजना ने जब मोती की खेती करने का फैसले किया तो परिवार ने इसे घाटे का व्यापार बताते हुए मदद करने से साफ इनकार कर दिया। परिवार को मनाने के लिए रंजना ने सबसे पहले अपने घर में ही बाथटब में मोती की खेती करने का फैसला किया। एक साल की मेहनत के बाद उन्होंने वह कर दिखाया, जिसका उन्होंने सपना देखा था। बाथटब जैसी छोटी जगह पर ही उन्होंने मोती की खेती कर 80 हजार रुपये की आमदनी की तो परिवार को भी उनके हौसले पर भरोसा हो गया।
नई दिल्ली। 'हर बड़े सफर कर शुरुआत छोटे कदम से होती है।' यह कहावत तो आप लोगों ने कई बार सुनी होगी, लेकिन आगरा की रंजना यादव पर यह एकदम सटीक बैठती है। रंजना ने अपने लिए एक ऐसा व्यवसाय चुना, जिसके बारे में उनके आसपास के लोग न तो जानते थे, न ही इसे मुनाफे का कारोबार मानते थे। परिवार भी रंजना के साथ नहीं खड़ा था। इन तमाम बाधाओं के बावजूद रंजना पीछे नहीं हटीं और मोती की खेती करने के अपने फैसले पर अडिग रहीं। परिवार को मनाने के लिए उन्होंने सबसे पहले अपने घर में ही बाथटब में मोती की खेती करने का फैसला किया। एक साल की मेहनत के बाद उन्होंने वह कर दिखाया, जिसका उन्होंने सपना देखा था। बाथटब जैसी छोटी जगह पर ही उन्होंने मोती की खेती कर 80 हजार रुपये की आमदनी की तो परिवार को भी उनके हौसले पर भरोसा हो गया। आज रंजना अपने पैतृक गांव में एक छोटे तालाब में पहले से वृहद स्तर पर मोती की खेती कर रही हैं। इतना ही नहीं वह दूसरों को भी इस खेती के बारे में जानकारी दे रही हैं।
विधिवानी पर्ल फार्मिंग के नाम से शुरू किया स्टार्ट-अप
आगरा की 27 वर्षीय रंजना यादव ने तीन साल पहले ही फॉरेस्ट्री में एमएससी की पढ़ाई पूरी की है। पढ़ाई के दौरान ही वह पर्ल फार्मिंग (मोती की खेती) की तरफ आकर्षित हुईं। उन्होंने इसे ही अपना व्यवसाय बनाने का फैसला किया, लेकिन परिवार का साथ नहीं मिलने के कारण रुपयों की समस्या सामने आ खड़ी हुई। इसी बीच उनकी किसी सहेली ने उन्हें केंद्र की मोदी सरकार के स्टर्ट-अप की जानकारी दी तो उनका हौसला और बुलंद हो गया। लेकिन समस्या अब भी वही था की परिवार को कैसे राजी किया जाए। इसके लिए उन्होंने प्रयोग के तौर पर बाथटब को चुना। यह आइडिया काम कर गया और रंजना को आगे बढ़ने की राह मिल गई। अब रंजना ने विधिवानी पर्ल फार्मिंग के नाम से स्टार्ट-अप भी शुरू कर दिया है। इस बारे में रंजना बताती हैं कि 'सीप के भीतर मोती बनने की प्रक्रिया मुझे काफी हैरान करती थी। इस पूरी प्रकिया को जानने की मेरी अंदर काफी जिज्ञासा थी। इसी ने मुझे इस ओर काफी आकर्षित किया।
ससुराल में की शुरुआत
रंजना ने जनवरी 2018 में पर्ल फार्मिंग की शुरुआत अपनी ससुराल से की। उन्होंने वहां एक पुराने बाथटब में एक छोटा सा कृत्रिम खेत बनाया। सबसे पहले उन्होंने इसमें 20 मोती के सीप लगाए। इसके बाद वह इनकी देखभाल में जी-जान से जुट गईं। तकरीब 12 महीन की मेहनत का अच्छा परिणाम भी देखने को मिला। सभी सीप में 2 से मोती आ गए थे। यह देख उनका परिवार भी काफी खुश था। रंजना के लिए अब एक दूसरी चुनौती थी इन मोतियों के लिए अच्छा बाजार तलाशना। इसके लिए उन्होंने तकनीकी का सहारा लिया। इंटरनेट पर सर्च करने पर उन्हें हैदराबाद के एक ज्वैलरी के बाजार का पता चला। यहां पर एक मोती की कीमत 350 से 450 रुपये मिल रही थी। रंजना ने यहां पर मोतियों को बेच दिया। इसके एवज में उन्हें अच्छी कमाई हुई। इस कामयाबी से रंजना काफी खुश थीं। उन्होंने इस बारे में और जानकारी जुटाने के लिए 2019 में भुवनेश्वर के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर में मोती की खेती पर चल रहे एक सप्ताह के क्रैश कोर्स में दाखिला ले लिया।
भुवनेश्वर से लौटने के बाद बदला तरीका
भुवनेश्वर से लौटने के बाद रंजना ने खेती करने के तरीके में अमूल-चूल बदलाव किए। इसके लिए उन्होंने अपने पैतृक घर के आंगन को चुना। यहां पर उन्होंने पर्ल फार्मिंग शुरू की। अब उनके पिता भी इसमें उनका सहयोग कर रहे हैं। पिता सुरेश चंद्र यादव ने बेटी की लगन को देखते हुए तकरीबन 14 फीट लंबा और इतना ही चौड़ा एक कृत्रिम तालाब बनवा दिया है। अब रंजना इसी में पर्ल फार्मिंग कर रही हैं। तालाब के लिए रंजना ने अहमदाबाद से एक लाख रुपये में 2000 सीप खरीदे हैं।
मोती तैयार होने में लगता ही एक साल का वक्त
जुड़वा बच्चों की मां रंजना मोतियों की देखभाल अपने बच्चों की तरह ही करती हैं। इसके लिए वह रोजाना 3 से 4 घंटे का समय देती हैं। इस काम के लिए उन्हें रोजना अपनी ससुराल से पैतृक गांव तक का सफर भी करना पड़ता है। सीप लगाने से मोती तैयार होने के दौरान करीब एक साल का समय लगता है। रंजना बताती हैं कि सीप मिलने के बाद उन्हें एक दिन के लिए ऐसे ही छोड़ा जाता है। इसके बाद, अगले 7 दिनों के लिए क्षार उपचारित पानी में डुबो दिया जाता है। इस दौरान रोजाना सीपों को हरे शैवाल का चारा देना होता है। तकरीबन एक हफ्ते बाद जब कवच और मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं तो सर्जरी कर सीप के अंदर सांचा डाल दिया जाता है। इसके बाद बड़ी सावधानी से नायलॉन नेट और रस्सियां टांगी जाती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि सीप को सहारा मिल सके और सालभर उन्हें कोई परेशानी न हो। इस पूरी प्रकिया के दौरान पानी के तापमान की जांच करना, तालाब की सफाई और सीपों को लगातार ठीक ढंग से चारा मिलता रहे इसका खास ख्याल रखना होता है। सही ढंग से देखभाल न होने पर 90 फीसदी सीपों के खराब होने का खतरा भी बना रहता है।
रंजना को उम्मीद जल्द मुख्य धारा में आए पर्ल फार्मिंग
रंजना खुद तो पर्ल फार्मिंग कर ही रही हैं, दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर रही हैं। इसी का नतीजा है कि पिछले दो वर्षों में वह अपने खेत में 16 कृषि छात्रों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश के हाथरस में 10 किसानों की मदद भी कर चुकी हैं। रंजना को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में मोती की खेती मुख्यधारा में आएगी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.