हरियाणा की अंशु मलिक जब महज 11 साल की थीं तो एक दिन भाई को कुश्ती लड़ते देख खुद भी अखाड़े में उतरने की इच्छा जताई। लाड़ली की इच्छा का पिता ने भी सम्मान किया, लेकिन एक शर्ते रखी कि पहले वह भाई के साथ कुश्ती कर अपना दखखम दिखाए। पिता ने कहा, 'छोरी जा म्यारो को लगा कि तू लड़ सके है, तो ही तू अखाड़े में डटी रह सके है।' अंशु ने पिता को निराश नहीं किया और अखाड़े में उतरते ही ऐसी फुर्ती दिखाई की सभी हैरान रह गए। उसी वक्त पिता ने कहा था कि 'म्यारी छोरी एक दिन ओलंपिक में गोल्ड जीतेगी।' अब ओलंपिक का कोटा मिलने के बाद महज 19 साल की अंशु मलिक दिन-रात पसीना बहा रही हैं, ताकि पिता का सपना सच कर सकें।
नई दिल्ली। हरियाणा के निदानी गांव की रहने वालीं अंशु मलिक को पहलवानी विरासत में मिली है। उनके पिता धर्मवीर, चाचा पवन और भाई शुभम नामी पहलवान हैं। बचपन से ही घर में कुश्ती का माहौल देख अंशु ने भी अखाड़े में उतरने का मन बनाया। जब वह 11 साल की थीं तो एक दिन भाई शुभम को अखाड़े में कुश्ती लड़ते देख खुद भी ऐसा करने की इच्छा जताई। पिता ने भी बेटी का साथ दिया और उसका उत्साह बढ़ाया। एक बार अखाड़े में उतरने के बाद अंशु ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह महज 19 साल की उम्र में टोक्यो ओलंपिक का टिकट हासिल कर चुकी हैं। उनका सपना ओलंपिक में गोल्ड हासिल कर देश का मान बढ़ाना है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अंशु घर में ही रहकर दिन-रात प्रैक्टिस करती रहीं। अंशु ने लॉकडाउन के दौरान घर पर और खेल स्कूल निडानी में लगातार अभ्यास किया। कोच जगदीश श्योराण और दलीप सिंह मलिक ने दांव-पेच सिखाए।
नामी पहलवानों को पस्त कर हासिल किया ओलंपिक का कोटा
एशियन ओलंपिक क्वॉलिफायर्स के 57 किलोग्राम भार वर्ग के फाइनल में पहुंचकर अंशु मलिक ने ओलिंपिक कोटा हासिल किया। क्वॉलिफायर्स में अंशु ने साउथ कोरिया की ओलंपिक पहलवान जिउन उन को 10-0 से हराया और कजाकिस्तान की एमा तिसिना को भी 10-0 से मात दी। इसके बाद सेमीफाइनल में उज्बेकिस्तान की शोखिदा अखमेदोवा को 12-2 से हराकर टोक्यो ओलंपिक का टिकट हासिल किया। हालांकि फाइनल में उन्हें मंगोलिया की पहलवान खोगोरजुल बोल्डसाइखान ने हाथों 7-4 से हार का सामना करना पड़ा।
चाचा साउथ एशिएन गेम्स में जीत चुके हैं गोल्ड
अंशु के पिता भारतीय जूनियर रेसलिंग टीम का हिस्सा रह चुके हैं। वहीं, चाचा पवन साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। अंशु के पिता का सपना था कि उनकी बेटी ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करे और अब अंशु ऐसा करने के करीब पहुंच चुकी है। अंशु के पिता ने एक अंग्रेजी अखबार से कहा था 'जिस दिन अंशु ने रेसलिंग शुरू की मेरा सपना था कि वह ओलंपिक में खेले। यह ओलंपिक मेडल जीतने की राह का एक पड़ाव है।'
अंशु की उपलब्धियां
अंशु ने साल 2020 में वर्ल्ड कप में सिल्वर मेडल, एशियन चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल। वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप में तीन मेडल (एक गोल्ड, दो ब्रॉन्ज) जीते हैं। इसके साथ ही एशियन जूनियर चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल और वर्ल्ड जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल भी अपने नाम किया है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.