बॉलीवुड में एक फिल्म बन रही है, जिसका नाम है 'छपाक'। बॉलीवुड की यह कहानी वास्तविक जीवन पर आधारित है और इसकी वास्तविक हीरोइन हैं लक्ष्मी अग्रवाल। जी हां, वो रियल जिंदगी की हीरोइन इसलिए हैं क्योंकि उनके साहस की कहानी देश-दुनिया की लाखों महिलाओं को प्रेरित करती है।
वह 22 अप्रैल 2005 का दिन था, जब लक्ष्मी के चेहरे पर तेजाब फेंका गया था। दिल्ली के खान मार्केट में लक्ष्मी पर उनके ही जानने वालों गुड्डू और राखी ने हमला किया था। उस समय लक्ष्मी की उम्र 15 साल थी। यह एक तरफा प्यार का मामला था। लक्ष्मी की एक दोस्त का भाई जो उससे दुगनी से भी ज्यादा उम्र का था, उससे शादी करना चाहता था, लेकिन लक्ष्मी ने साफ इनकार कर दिया, वो पढ़ाई करना चाहती थी। एक दिन लक्ष्मी हाथ में किताबें थामें ट्यूशन सेंटर से घर की ओर जा रही थी। तभी उस पर उसकी दोस्त राखी और उसके भाई गुड्डू ने उसके ऊपर तेजाब फेंका। छपाक से हुए इस तेजाबी हमले में लक्ष्मी का चेहरा, गला और शरीर के कई अंग चपेट में आ गए। वो जोर से चिल्लाई, आप-पास से गुजरने वाले लोग कुछ समझ पाते लक्ष्मी के शरीर और उसकी आत्मा को झुलसाने वाला वहां से भाग खड़ा हुआ था। जिस तरह से कोई प्लास्टिक पिघलता है उसी तरह से लक्ष्मी की चमड़ी पिघल रही थी। सड़क पर चलती हुई गाडियों से टकरा रही थी। किसी तरह उसे अस्पताल में पहुंचाया गया। लक्ष्मी कहती हैं, मैं अपने पिता से लिपट कर रोनी लगी। मेरे गले लगने की वजह से मेरे पिता की शर्ट जल गई थी। वो मंजर बहुत भयानक था। जब मुझ पर हमला हुआ तो मैं समझ नहीं पाई कि यह अचानक क्या हो गया। मैं बेहद दर्द में थी, तनाव में, सदमे में थी। महीनों तक, मैं कोई कपड़ा पहनने में असमर्थ थी। बस एक कंबल के नीचे पड़ी हर समय सुबकती रहती थी और खुद से ही सवाल पूछती थी कि मेरा क्या कसूर।
मां-बाप ने दी हिम्मत
लक्ष्मी कहती हैं, अस्पताल में मैं शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद टूट चुकी थी। अहसनीय दर्द था। मां-बाप सामने आते थे तो उनकी हालत देखकर मन करता था कि आत्महत्या कर लूं और मामला यहीं खत्म कर लूं पर फिर यह सोचकर कि वह ऐसा करने पर अपने माता-पिता को और भी दर्द दे जाऊंगी, वे जिएंगे कैसे..आत्महत्या के विचारों को खत्म करने का फैसला किया। लक्ष्मी कहती हैं, समाज क्रूर है। यहां एक सामान्य चमड़ी वाले व्यक्ति को भी ताना मारा जाता है, तो फिर मैं कौन थी? मैं पीड़ित थी, लेकिन मेरे लिए इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं थी। मैंने फैसला किया कि मैं अपने लिए खेद महसूस नहीं करूंगी और इसके बजाय अपने परिवार के लिए खुद को आगे बढ़ाऊंगी। मैं दुनिया को अपनी कहानी बताने के लिए जिंदा रहूंगी ताकि किसी और को भी इस तरह की स्थिति का सामना न करना पड़े या अपने समुदाय द्वारा रिजेक्ट किए जाने पर आत्महत्या के बारे में सोचना न पड़ा।
100 दिन बाद देखा शीशा
अपने चेहरे की खूबसूरती निहारने के लिए हम हर रोज ना जाने कितनी बार शीशे के सामने जा खड़े होते हैं। लेकिन लक्ष्मी के जीवन में एक वक्त ऐसा आया कि उसे अपना चेहरा शीशे को निहारने में डर लगता था। लक्ष्मी कहती हैं, एसिड अटैक के कारण होने वाली शारीरिक विकृति के बारे में मैं जानती थी, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी कि मैं अपने उस रूप को शीशे में देखूं। मां के काफी समझाने के बाद मैं अपने झुलस चुके चेहरे को देखने के लिए तैयार हुई। मैंने अपना चेहरा घटना के 100 दिन बाद आइने में देखा। पहले डरी, सहम गई, रोई भी, चिल्लाई भी, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता परिवार और डॉक्टरों के साथ से इस सदमे से उभरने को तैयार हो गई। सात साल के दौरान सात सर्जरी हुईं और इसका खर्चा लगभग 20 लाख रुपये आया। उस समय पिता की बचत और उनकी कंपनी ने परिवार को आर्थिक मदद दी।
दोषियों को सजा दिलाई
लक्ष्मी ने हर हालत में जीने का प्रण लिया और साथ ही फैसला किया कि वह अपने मामले को अदालत में ले जाएंगी। चार साल तक मुकदमा चला और दोषी गुड्डू को 10 साल की जेल हुई और राखी को सात साल की।
अंधेरे से खुद को उबार लिया
धीरे-धीरे अपने माता-पिता के समर्थन से लक्ष्मी ने आत्मविश्वास हासिल किया और अपने आगे की पढ़ाई के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग, दिल्ली में व्यावसायिक प्रशिक्षण में डिप्लोमा में दाखिला लिया। उन दिनों को याद करते हुए लक्ष्मी कहती हैं, एक दिन, मैंने फिर खुद को आईने में देखा और देर तक खुद को निहारा। मुस्कुराई और फिर खुद से कहा कि, अगर मुझे अपना चेहरा ढककर ही रखना है तो फिर इस सौंदर्यीकरण और टेलरिंग कोर्स करने का क्या फायदा? मुझे इसमें कुछ भी शर्म करने की कोई जरूरत नहीं है। तब मैंने चेहरे से दुपट्टे को हटा दिया और चलने लगी फ्री होकर। लक्ष्मी कहती हैं, मेरे इस कदम का उनके संस्थान की लड़कियों ने काफी प्रतिरोध किया। वे कहती थीं कि मैं अपना बदसूरत चेहरा ढक लूं। पर मैंने अपने भीतर के सौंदर्य को समझ लिया थ और मैं बेफिक्र थी। मेरे टीचर और संस्थान ने मुझे सहयोग किया और मैंने डिप्लोमा पूरा किया।
पीड़ितों की मदद को बनाया फाउंडेशन
2013 में लक्ष्मी एसिड अटैक आंदोलन का एक हिस्सा बन गईं। आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला द्वारा 'स्टॉप एसिड अटैक्स’ अभियान शुरू करने के एक महीने बाद, उनका ये प्रयास 2014 में छांव फाउंडेशन में बदल गया। उन्होंने आक्रामक तरीके से अभियान चलाया और देश में एसिड हिंसा के बारे में चर्चा शुरू की। आगे, फाउंडेशन के माध्यम से, लक्ष्मी सैकड़ों पीड़ितों तक पहुंची और उन्हें उपचार, कानूनी सहायता और पुनर्वास के लिए सहायता करना शुरू की। वह कहती हैं, जब मैं अपने जैसे और सर्वाइवर्स से मिली, तो उनकी कहानियों ने मुझे काफी रुलाया। कई ऐसे पीड़ित थे जिन्हें माता-पिता का समर्थन नहीं मिला। उन्हें पैसे और नौकरी के अवसरों की आवश्यकता थी। समाज ने उन्हें किनारे कर दिया था। लक्ष्मी ने एसिड अटैक पीड़ितों के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने शीरोज नाम के एक कैफे की शुरुआत की। ये कैफे तीन राज्यों में चल रहा है। अपनी फाउंडेशन के माध्यम स, लक्ष्मी रोगियों को हमले के मामले में फॉलो करने के लिए सही प्रक्रियाओं के बारे में बताती हैं। यहां तक कि पब्लिक को स्किन डोनेट करने के लिए भी प्रोत्साहित करती हैं।
हौसले को मिली उड़ान
अपने हौसले की वजह से आज लक्ष्मी दुनिया भर में जानी जाती हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा ने लक्ष्मी से मुलाकात की थी। उन्हें 2014 में इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवार्ड मिला था। इसके अलावा वो लंदन फैशन वीक में भी हिस्सा ले चुकी हैं। लक्ष्मी के जीवन पर बॉलीवुड में फिल्म बन रही है, जिसका नाम है छपाक। इसमें दीपिका पादुकोण तेजाब पीड़िता का रोल निभा रही हैं।
एक बेटी की मां बनीं
लक्ष्मी ने निजी जिंगी में काफी बोल्ड फैसले लिए। 2014 में उन्हें एसिड अटैक के लिए अभियान चला रहे आलोक दीक्षित के साथ प्यार हुआ। इसके बाद दोनों ने शादी करने की बजाय लिव-इन में रहने का फैसला किया। इन दोनों की एक बच्ची भी है, लेकिन तीन साल पहले दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया।
एसिड पीड़ितों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी
भारत में एसिड अटैक सर्वाइवर्स को अब विकलांग जनों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत अधिकार दिए गए हैं। 2006 में लक्ष्मी की रिट याचिका के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में, उन आदेशों को पारित किया, जिनके चलते एसिड की बिक्री को लेकर, पीड़ितों के लिए मुआवजा, देखभाल और सर्वाइवर्स के लिए पुनर्वास, सरकार से सीमित मुआवजा, शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण, और नौकरियों तक आसान पहुंच को लेकर रेगुलेशन बने।
कॉर्नेल लॉ स्कूल - द्वारा प्रकाशित 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश, भारत, और कंबोडिया में दुनिया में सबसे अधिक एसिड अटैक हुए हैं। इसका एक बड़ा कारण एसिड की सस्ती और आसान उपलब्धता है। आज, एसिड को काउंटर पर मात्र 30 रुपये से कम में बेचा जाता है। इसी स्टडी में कहा गया है कि 2002 से 2010 तक, भारत में एसिड अटैक अपराधियों में 88 प्रतिशत पुरुष थे और 72 प्रतिशत पीड़ित महिलाएं थीं।
लक्ष्मी की सीख
लक्ष्मी कहती हैं, वो मुझे आते-जाते हुए छेड़ता था, रास्ता रोकता था, लेकिन मैं अपने पापा मम्मी से कुछ नहीं बोल सकी मन में डर था कहीं ना कहीं कि अगर कहा तो मुझे ही गलत बोलेंगे और बस उस चुप्पी का फायदा क्रिमिनल ने उठाया। लक्ष्मी कहती हैं, मैं अपनी कहानी माता-पिता और पीड़ितों को आशा देने के लिए सुनाती हूं। अपनी कहानी के माध्यम से, मैं सभी महिलाओं को एक-दूसरे का समर्थन करने, हमारी ताकत बनने और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के इस खतरे से लड़ने में मदद करना चाहती हूं। यह किसी के साथ भी हो सकता है और हम इसे रोक सकते हैं अगर हम एक साथ लड़ें और बच्चों को महिलाओं का सम्मान करने के बारे में शिक्षित करें। वह कहती हैं, मां बाप को अपने बच्चों के साथ दोस्ती करनी चाहिए, ताकि जब भी कोई परेशानी हो तो बच्चे खुलकर, बिना डरे अपने मन की बात पेरेंट्स को बता सकें। याद रहे अटैक सिर्फ एक शख्स पर नहीं, पूरे परिवार पर होता है।
Story by- Sunita kapoor
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.