अब वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से मास्टर्स ऑफ पब्लिक पॉलिसी की पढ़ाई करेंगी। यूके सरकार की ओर से पूरे विश्व से 1800 और भारत से 50 स्टूडेंट्स को यह स्कॉलरशिप दी गई है।
कानपुर के दबौली की रहने वाली सोनाक्षी बाजपेयी के विदेश में पढ़ने के सपनों को तब पंख लग लए जब उनको यूनाइटेड किंगडम (यूके) सरकार ने 46 लाख रुपये की चीवनिंग स्कॉलरशिप देने की घोषणा की। कानपुर की बेटी सोनाक्षी वाजपेयी ने बेटी पढ़ेगी तो आगे बढ़ेगी... को सार्थक करते हुए शहर का मान बढ़ाया। अब वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से मास्टर्स ऑफ पब्लिक पॉलिसी की पढ़ाई करेंगी। यूके सरकार की ओर से पूरे विश्व से 1800 और भारत से 50 स्टूडेंट्स को यह स्कॉलरशिप दी गई है। स्कॉलरशिप से वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से पब्लिक पॉलिसी से स्नातकोत्तर की पढ़ाई करेंगी, इस पाठ्यक्रम की समयावधि एक वर्ष होगी। दबौली निवासी पिता सुरेंद्र बाजपेई और मां गीतांजलि बाजपेई की बेटी सोनाक्षी ने मरियमपुर से 12वीं तक की पढ़ाई की है। आईएनएस इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने इन्फोसिस में जॉब की। इसके बाद उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुंबई से डिसेबिलिटी एंड सोशल वर्क से मास्टर की डिग्री ली। टाटा स्टील, जमेशदपुर में अर्बन कम्युनिटी में डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव के पद पर काम करने के बाद वह सेंटर फॉर वुमन डेवलपमेंट स्टडीज से जुड़ीं। सोनाक्षी के पति मानस एमबीए करने पेरिस गए हैं।
दिव्यांगों पर किया अध्ययन
सोनाक्षी इन्फोसिस में अच्छी सेलरी पर नौकरी कर रही थी। लेकिन उनका मन नहीं लगा। उनके मन में दिव्यांगों के लिए कुछ करने की इच्छा थी। इसके लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज से समाज कार्य में स्नातकोत्तर किया। इस दौरान उनका विषय दिव्यांग अध्ययन रहा। जिसमें उन्होंने दिव्यांगों और जरूरतमंद लोगों की मदद के बारे में सीखा। उन्होंने बताया कि दिव्यांगों के लिए विभिन्न कंपनियों के साथ काम किया है। उनके पिता सुरेंद्र नारायण बाजपेयी वित्तीय सलाहाकार व मां गीतांजलि बाजपेयी भी कामकाजी महिला हैं। उनकी छोटी बहन कृतिका बाजपेयी इंडिगो में कार्यरत हैं।
पति मानस पेरिस से कर रहे हैं एमबीए
सोनाक्षी के पति मानस भी एमबीए की पढ़ाई करने पेरिस गए हुए हैं। सोनाक्षी ने बताया कि उनको पढ़ाई के समय से ही पीपल विद डिसेबिलिटी और जेंडर इक्वलिटी पर काम करने का बहुत शौक था। उन्होंने कई वर्षों तक इसके लिए काम भी किया है इसी लगन के चलते उन्होंने इस स्कॉलरशिप के लिए प्रयास किए थे जिसमें उनको सफलता मिली। वह भविष्य में भी इन मुद्दों पर काम करना चाहती है और साथ ही अपने शहर में भी इसके लिए रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम चलाने की उनकी ख्वाहिश है।
मां की बीमारी ने कराया दर्द का अहसास
सोनाक्षी मां गीतान्जली को आर्थराइटिस है। इसके चलते उन्हें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सोनाक्षी कहती है कि अपनी मां को देख कर ही उन्हें दिव्यांगों की पीड़ा का अहसास हुआ। सोनाक्षी की मां अपनी बेटी की उपलब्धि पर बहुत खुश हैं। उसका कहना है कि बेटी में समाज और दिव्यांगों की सेवा का जज्बा बचपन से ही है। वहीं अपने बेटी में मदर टेरेसा का अक्स देखती हैं। उनका कहना है कि बेटी को पढ़ाने से समाज सुधरता है।
खुद का रिहैबिलिटेशन खोलने का है सपना
सोनाक्षी को मिली यह स्कॉलरशिप उन लोगों के लिए यह प्रेरणा है जो लोग कुछ करना तो चाहते हैं लेकिन आगे कदम बढ़ाने से डरते हैं। सोनाक्षी जैसी बेटियां हमारे समाज में बेटी पढ़ाओ अभियाना की असली ब्रान्ड एम्बेस्डर हैं। साथ ही उन बेटियों के माता-पिता के लिए एक नजीर है जो अपनी बेटियों को सिर्फ पराया धन समझते हैं। सोनाक्षी विदेश से पढ़ाई कर वापस लौटेगी तो उसे सरकारी एजेंसियों के साथ सलाहकार के रूप में काम करने का मौका मिलेगा। जिसके बाद वह खुद का रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाना चाहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.