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बुलबुल ने अकेले मिग-21 उड़ाकर रचा इतिहास

Published - Sun 19, May 2019

चाह हो तो राह बन ही जाती है। इसमें न तो यह मायने रखता है कि आप कहां रहते ​हैं और न ही यह कि आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है। बचपन में एक ऐसा ही सपना देखा मध्यप्रदेश के सतना जिले के कोथिकंचन गांव की निवासी 23 वर्षीय अवनी चतुर्वेदी (बुलबुल) ने।

नई दिल्ली। चाह हो तो राह बन ही जाती है। इसमें न तो यह मायने रखता है कि आप कहां रहते ​हैं और न ही यह कि आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है।  बचपन में एक ऐसा ही सपना देखा मध्यप्रदेश के सतना जिले के कोथिकंचन गांव की निवासी 23 वर्षीय अवनी चतुर्वेदी ने। बाणसागर परियोजना के गंगाकछार ऑफिस में इंजीनियर पिता दिनकर चतुर्वेदी ने बचपन में बुलबुल (अवनी के घर का नाम) को  खेलने के लिए एक फाइटर प्लेन लाकर दिया। इस ​​खिलौने से खेलते-खेलते अवनि के मन में पायलट बनने की ऐसी ललक जागी ​कि उसने इसे पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। बुलबुल (अवनी) भारतीय वायुसेना में भर्ती हुई तो उसके सपनों को पंख लग गए। 2016 में अवनि के साथ मोहना सिंह और भावना कंठ को वायु सेना में कमीशन किया गया था। भारतीय वायु सेना में फ्लाइंग ऑफिसर अवनि चतुर्वेदी ने 19 फरवरी 2018 की सुबह गुजरात के जाम नगर एयरबेस से मिग-21 'बाइसन' लड़ाकू विमान को अकेले उड़ाकर इतिहास रच दिया। इसी के साथ वह अकेले लड़ाकू विमान उड़ाने वाली भारत की पहली महिला भी बन गईं। अवनी की इस सफलता से उनके पिता दिनकर चतुर्वेदी और मां सविता चतुर्वेदी दोनों काफी खुश हैं। बेेटी की सफलता के बारे में बातते हुए माता-पिता कहते हैं हमें मालूम ही नहीं चला कि कब घर की बुलबुल फाइटर प्लेन उड़ाने लगी।

 भाई कैप्टन, मामा हैं रिटायर्ड कर्नल
अवनी के बड़े भाई नीरभ्र चतुर्वेदी नई दिल्ली में कैप्टन हैं। मामा प्रेम प्रकाश शर्मा कर्नल के पद से रिटायर हो चुके हैं। मां सविता बताती हैं कि कल्पना चावला की दुर्घटना में मौत हो गई थी। हम लोग घर में बैठकर चर्चा कर रहे थे। उस समय अवनी महज 10-11 साल की थी। चर्चा के दौरान उसने अचानक ही बोला था कि मां चिंता मत करो, मैं भी कल्पना की तरह देश में नाम कमाऊंगी। वह एयरफोर्स में पायलट बनेगी, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। नेशनल डिफेंस सर्विस (एनडीए) में उसका ​​सिलेक्शन होना किसी आश्चर्य से कम नहीं था।

रनिंग के लिए जा रही थी और आ गया प्लेन उड़ाने का मैसेज
अवनी के अकेले ही ​​मिग-21 उड़ाने का किस्सा भी काफी दिलचस्प है। वह बताती हैं कि 19 फरवरी की  सुबह सोकर उठी थी और मैं रनिंग के लिए तैयार हो रही थी। उसी समय मुझे बताया गया कि आपको फाइटर प्लेन उड़ाना है। उस समय मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आज के दिन मैं वो काम करने जा रही हूं जो कि भारतीय इतिहास में किसी महिला ने नहीं किया था। मन में डर भी था। लेकिन मैंने प्लेन उड़ाने के पहले अपने पिता इंजीनियर दिनकर चतुर्वेदी से बात की। उन्होंने कहा डरो मत, खुद पर भरोसा रखो... तुम बहुत बेहतर कर सकती हो, बस क्या था पिताजी से बात करने के बाद मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मैंने फाइटर प्लेन उड़ाया और उसकी शानदार तरीके से लैडिंग भी कराई।