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नींद नहीं आए इसलिए भीषण गर्मी में भी कूलर से रही दूर, आईएएस बनकर ही मानी

Published - Thu 09, May 2019

आईएएस बनना सिर्फ सपना ही नहीं, एक जिद थी, जुनून था वंदना के लिए। जिस तरह अर्जुन ने मछली की आंख को निशाना बनाया और उस दौरान उन्हें िर्फ आंख ही दिखाई दी, उसी तरह वंदना के लिए भी आईएएस बनना एक मछली की आंख की तरह ही था। वंदना ने इसके लिए अपने सभी ऐशो-आराम छोड़ दिए। यहां तक कि भीषण गर्मी में कूलर इसलिए नहीं लगवाया कि कहीं उसे नींद न आ जाए। घर से बाहर निकलना बंद कर दिया और 12 से 14 घंटे रोजाना पढ़ाई करके आखिरकार उस लक्ष्य को पा ही लिया, जिसे वो जी रही थी। वंदना ने 24 साल की उम्र में यह मुकाम हासिल किया। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा 2012 में उन्होंने आठवां स्थान और हिंदी माध्यम से पहला स्थान प्राप्त किया। यह रिजल्ट वंदना के लिए किसी बड़े तोहफे से कम नहीं था। उन्होंने पहली ही कोशिश में यह कारनामा कर दिखाया, जबकि उन्होंने न तो कोचिंग की और न ही उसे कोई पढ़ाने और मार्गदर्शन करने वाला था। इसके बावजूद वंदना ने यह कर दिखाया।

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बस यही मेरी मंजिल थी...
वंदना पूरी शिद्दत के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही थी, इसके लिए उन्होंने खुद को इस तरह से बना लिया कि वो घर पर है ही नहीं। एक साल तक अपने कमरे में रहकर केवल किताबें पढ़तीं रहीं। किताबें खरीदने भी वे कभी बाहर नहीं गईं। अपने घर का रास्ता और मोहल्ले की गलियां तक वंदना को ठीक से मालूम नहीं हैं। वंदना कहती हैं, ‘बस, यही थी मेरी मंजिल।’

विरोध के बावजूद लिया फैसला
वंदना का जन्म हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके घर में लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था।  वंदना की शुरुआती पढ़ाई भी गांव के सरकारी स्कूल में हुई। पिता महिपाल सिंह चौहान ने बताया कि गांव में स्कूल अच्छा नहीं था तो बेटे को बाहर पढ़ने भेजा, उसी दिन से वंदना भी रट लगा बैठी। मना करने पर वंदना ने लड़की होने पर पढ़ने नहीं भेजने का कहा तो यह बात पिता को चुभ गई और परिवार के सभी पुरुषों के विरोध के बाद भी उन्होंने वंदना को छठी क्लास में मुरादाबाद के पास लड़कियों के एक गुरुकुल में पढऩे भेज दिया। वहां के नियम बड़े कठोर थे, जिनका वंदना ने पूरा पालन किया।

दसवीं के बाद से ही तैयारी
दसवीं के बाद ही वंदना ने अपनी मंजिल सोच ली थी। इसके लिए वे प्रतियोगी पत्रिकाएं और किताबें पढ़ने लगी। मैग्जीन में टॉपर्स के इंटरव्यू पढ़ती और उसकी कटिंग अपने पास रखतीं। किताबों की लिस्ट बनाती और उन्हें मंगवाती रहतीं। 12वीं के बाद उन्होंने घर पर रहकर ही लॉ की पढ़ाई की। इसके बाद घर पर 12 से 14 घंटे पढ़ाई करने लगी। नींद आने लगती तो चलते-चलते पढ़ती। एक साल तक घर के लोगों को भी उसके होने का आभास नहीं था। मानो वह घर में हो ही नहीं। किसी को भी उसे डिस्टर्ब करने की इजाजत नहीं थी। बड़े भाई की तीन साल की बेटी से भी नहीं मिल​ती। इसी का नतीजा यह रहा कि वह आज आईएएस हैं। अब वही लोग जो लड़की को पढ़ाने का विरोध करते थे, अब उसकी सफलता पर गर्व करते हैं।