32 वर्षीय हंपी ने चीन की टिंगजी को टाईब्रेकर में हराकर पहला विश्व खिताब जीता। उनसे पहले विश्वनाथन आनंद ने 2017 में यह खिताब जीता था।
शतरंज की ग्रैंडमास्टर खिलाडी कोनेरू हंपी ने हाल ही में वर्ल्ड रैपिड शतरंज चैंपियनशिप का खिताब जीतकर शतरंज की दुनिया में भारत को एक नई पहचान दिलाई। उनसे पहले विश्वनाथन आनंद ने 2017 में यह खिताब जीता था। 32 वर्षीय कोनेरू हंपी चीन की लेई टिंगजी को टाईब्रेकर की सीरीज (आर्मेगेडोन मुकाबले) में हराकर पहली बार विश्व चैंपियन बनीं। हंपी ने 12 दौर में प्रत्येक में नौ अंक जुटाए जिससे वह टिंगजी के साथ बराबरी पर थीं। दोनों के बीच फिर आर्मेगेडोन गेम से विजेता का फैसला हुआ। हंपी ने कहा,‘जब मैंने तीसरे दिन अपना पहला गेम शुरू किया तो मैंने नहीं सोचा था कि मैं शीर्ष पर रहूंगी। मैं शीर्ष-3 में रहने की उम्मीद कर रही थी। मैंने टाई-ब्रेक गेम खेलने की उम्मीद नहीं की थी। मैंने पहला गेम गंवा दिया लेकिन दूसरे गेम में वापसी की। यह गेम बहुत जोखिम भरा रहा लेकिन मैंने इसमें जीत हासिल की। अंतिम गेम में मैं बेहतर स्थिति में थी और फिर मैंने आसान जीत हासिल की।’ दिग्गज भारतीय शतरंज खिलाड़ी और पूर्व वर्ल्ड चैंपियन विश्वनाथन आनंद ने उन्हें बधाई दी। आनंद ने ट्विटर पर लिखा, 'कोनेरू को बधाई। शानदार प्रदर्शन और रैपिड में वर्ल्ड चैंपियन।
आनंद के बाद हंपी : दूसरी भारतीय खिलाड़ी हैं हंपी मौजूदा प्रारूप में यह खिताब जीतने वाली। उनसे पहले विश्वनाथन आनंद ने 2017 में यह खिताब जीता था।
मां बनने के दो साल बाद की वापसी : आंध्र प्रदेश की हंपी ने मां बनने के बाद वापसी की और अपना पहला विश्व खिताब जीत लिया। वह 2016-2018 तक खेल से दूर रहीं।
जैसा नाम वैसा काम : कोनेरू हंपी के पिता अशोक एक प्रोफेसर थे। वह भी शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे। विजयी होने का मतलब उन्हें अच्छे से पता था। जब उनके घर में बेटी ने जन्म लिया तो उन्होंने उसका नाम हंपी रखा। क्योंकि हंपी का मतलब ही विजयी होता है। पिता के द्वारा दिए गए इस नाम को हंपी ने अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। महज नौ वर्ष की उम्र से ही उन्होंने चैंपियनशिप जीतनी शुरू कर दी थी।
पहली पुरुष ग्रेडस्लेम विजेता : शतरंज की तरफ हंपी का झुकाव बचपन से ही था। महज छह वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता से सतरंज के दावपेंच सीखने शुरू कर दिए थे। उनका एक ही लक्ष्य रहता था पिता जी को शतरंज में हराना। पिता अशोक ने भी अपनी बेटी को परफेक्ट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह एक प्रोफेसर थे और जब उन्हें लगा कि वह अपनी बेटी को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं तो उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और हंपी को ट्रेनिंग देने लगे। इसका नतीजा यह रहा कि महज 9 वर्ष की आयु में ही हंपी ने शतरंज में 3 राष्ट्रीय स्तर के गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिए थे। यही प्रतिभावान महिला खिलाड़ी आगे जाकर देश की पहली पुरुष ग्रेडस्लेम विजेता बनी।
चैंपियन बनना उनकी फितरत है : हंपी को पहली बार चैंपियन नहीं बनी हैं। बचपन से ही उन्होंने न जाने कितनी चैंपियनशिप जीती हैं। 1997 में वर्ल्ड अंडर-10 चैंपियन और अंडर-12 चैंपियन, 1999 में एशिया की सबसे युवा महिला इंटरनेशनल मास्टर। 2000 में एशियन गर्ल्स अंडर-20 चैंपियन, 2001 में वर्ल्ड गर्ल्स अंडर-14 चैंपियन, 2001 में वर्ल्ड गर्ल्स अंडर-20 ईयर चैंपियन, 2000 में ब्रिटिश लेडी टाइटल चैंपियनशिप जीतने वाली सबसे युवा खिलाड़ी रहीं। 2002 में एक बार फिर ब्रिटिश लेडीस टाइटल, 2001 में एशिया की सबसे युवा महिला ग्रैंडमास्टर, 2002 में 15 साल 1 महीने और 27 दिन की उम्र में सबसे युवा ग्रैंडमास्टर चैंपियन का खिताब जीता।
इसके अलावा उनकी उपलब्धियों को भारत सरकार ने भी सराहा। भारत सरकार ने 2003 में अर्जुन अवॉर्ड और 2007 में पद्मश्री से सम्मानित किया। अब 2019 में वर्ल्ड रैपिड चैंपियन को जीतकर न सिर्फ अपने नाम को रोशन किया बल्कि पूरे देश को गर्व करने का मौका दिया।
Story by- Rohit Pal
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.