आईएएस प्रियंका शुक्ला इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहती हैं। कारण है लोगों को कोरोना के प्रति जागरुक करना, वह लोगों को फील्ड पर जितना जागरुक करती हैं, उतना ही सोशल मीडिया पर भी करती हैं।
कोरोना ने पूरे देश को नहीं बल्कि पूरी दुनिया को परेशान कर रखा है। इस संकट की घड़ी में हमारे कोरोना वारियर्स देश को बचाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। अस्पताल में डॉक्टर तो सड़क पर अधिकारी। ऐसे में महिला अधिकारी भी किसी से पीछे नहीं हैं बल्कि चार कदम आगे निकल कर वह लोगों की सेवा में जुटी हैं।
ऐसी ही एक महिला अधिकारी हैं छत्तीसगढ़ की आईएएस डॉक्टर प्रियंका शुक्ला। प्रियंका इस दिनों सोशल मीडिया पर भी खूब एक्टिव रहती हैं। कारण है जागरुकता फैलाना, वह लोगों को जितना जागरुक फील्ड पर करती हैं, उतना ही सोशल मीडिया पर भी करती हैं।
डॉक्टर प्रियंका से आईएएस प्रियंका तक का सफर
प्रियंका शुक्ला कभी डॉक्टर हुआ करती थीं। अपने काम से काफी खुश भी थी। हालांकि उनके माता-पिता उन्हें आईएएस अफसर बनाना चाहते थे लेकिन प्रियंका को तो मेडिकल ही पसंद था। लेकिन कहते हैं न कि एक घटना आपकी जिंदगी बदल देती है। कुछ ऐसा ही प्रियंका के साथ भी हुआ। प्रियंका ने लखनऊ के किंग्स जॉर्ज मेडिकज कॉलेज से अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की है। उसके बाद इंटर्नशिप किया। इस दौरान उन्हें स्लम एरिया में गरीबों का इजाल करने के लिए जाना होता था।
तुम कहीं की कलेक्टर हो क्या?
झुग्गी-झोपड़ी में चेकअप के दौरान उनकी मुलाकात एक गरीब महिला से हुई जो खुद तो गंदा पानी पी ही रही थी साथ ही अपने बच्चे को भी वहीं पानी पिला रही थी। जब प्रियंका ने यह देखा तो उन्होंने उस पानी को पीने से मना किया। तो उस महिला ने जवाब दिया तुम कहीं की कलेक्टर हो क्या? जो तुम्हारी बात मान लें। बस यही बात प्रियंका के मन में घर कर गई और प्रियंका ने ठान लिया कि अब कलेक्टर तो बनना ही है।
2009 कैडर की आईएएस अफसर हैं प्रियंका
प्रियंका ने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। 2008 में पहले प्रयास में हालांकि वह सफल नहीं हो सकीं। लेकिन दूसरे प्रयास में उन्होंने अपने उस सपने को हकीकत में बदल दिया। दरअसल, प्रियंका जब उन गरबों के बीच जाती थी, तो उनकी झुग्गी झोपड़ी देखकर वह अंदर ही अंदर परेशान हो जाती थी और उनकी जागरुकता के लिए वह कुछ करना चाहती है। बचपन से ही गरीबों के प्रति वह काफी दयावान थी। जब वह उन लोगों के बीच में गई तो उन्हें लगा कि वह मेडिकल में रहते हुए उन गरीबों की उतनी सेवा कभी नहीं कर पाएंगी जितना कि आईएएस के पद पर रहकर वह कर सकती हैं।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी है प्रियंका
प्रियंका मूल रूप से हरिद्वार की रहने वाली हैं। हरिद्वार में ही उनका जन्म हुआ और वहीं पर वह पली-बढ़ी हैं। प्रियंका एक आईएएस अधिकारी होने के साथ-साथ कई कला में माहिर है। वह एक अच्छी लेखक है। इसके अलावा कंटेम्पररी डांस में भी पारंगत हैं। वह अच्छी सिंगर होने के साथ-साथ एक अच्छी पेंटर भी हैं। इन सभी कलाओं से वह सोशल मीडिया पर अपने फैंस के परिचित कराती रहती है।
बेटियों को आगे लाना चाहती हैं
हमारे देश में महिलाएं काफी पिछड़ी है और प्रियंका उनको आगे लाने का प्रयास कर रही हैं। पिछले साल की ही बात है अगस्त के महीने में जशपुर जिले के कंसबेल शहर में लड़कियों को अपनी बेकरी खोलने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका प्रोत्साहन काम आया 20 लड़कियों के एक समूह ने 'बेटी जिंदाबाद' नाम से एक बेकरी खेल दी। प्रियंका काफी विनम्र अधिकारी हैं। उन्हें बच्चे और गरीबों से बहुत प्यार है। यही कारण है कि जब प्रियंका निकलती हैं तो लोग डरते नहीं बल्कि स्माइल के साथ सैल्यूट करते हैं।
दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार से हो चुकी हैं सम्मानित
प्रियंको को अधिकरी उनकी काबिलियत के लिए पहचानते हैं। उन्होंने समाज में बदलाव के लिए लीक से हटकर जिस तरह काम किया उसका ही नतीजा है कि उन्हें दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। प्रियंका को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सेंसस 2011 में बेहतरीन काम के लिए 'सेंसस सिल्वर मेडल' से सम्मानित किया था। इसके अलावा साक्षरता के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य के लिए राष्ट्रपति के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही प्रशासनिक अधिकारी के रूप में वह कई और बार भी सम्मानित हो चुकी हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.