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पढ़ने-लिखने की उम्र में हो गई शादी, ससुराल वालों ने प्रताड़ित किया तो ऑटो चलाना सीख आसान की जिंदगी की राह

Published - Thu 19, Sep 2019

उत्तर भारत की पहली महिला ऑटो चालक के रूप में विख्यात सुनीता चौधरी का विवाह बचपन में ही कर दिया गया। ससुराल वालों ने इतना प्रताड़ित किया कि उन्हें घर से भागना पड़ा। दिल्ली जैसे महानगर में बिना किसी सहारे के पेट पालने के लिए सुनीता को घरों में झाड़ू-पोंछा और बर्तन तक मांजना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और ऑटो रिक्शा चलाने का फैसला लिया। इससे पहले महिलाओं के लिए ऐसा करना किसी आश्चर्य से कम नहीं था।

नई दिल्ली। महिलाएं चाहें तो क्या नहीं कर सकतीं। चाहे वक्त बुरा हो या अच्छा वो हर मुसीबत को झेलती हुई कामयाबी की इबारत लिखती हैं। ऐसी ही इबारत उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर की रहने वाली सुनीता चौधरी ने भी लिखी है। सुनीता ने कड़ी मेहनत और लगन के बल पर परेशानियों से मुक्ति भी पाई और उन्होंने अपना नाम विश्व की सौ प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शुमार भी करवाया।
सुनीता के नाम-शोहरत और कामयाबी के पीछे भी कड़ा परिश्रम और दुख भरी दास्तां है। उत्तर भारत की पहली महिला ऑटो चालक के रूप में विख्यात सुनीता चौधरी का विवाह बचपन में ही कर दिया गया। जो उम्र उनकी पढ़ने-खेलने की थी, उस उम्र में सुनीता विवाह के बंधन में बंध चुकी थीं और जिम्मेदारियों का बोझ उनके कंधों पर आ पड़ा था।

दहेज के लिए ससुराल वालों ने पीट-पीटकर कर दिया था अधमरा

शादी के कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा, लेकिन उसके बाद ससुराल वालों ने दहेज के लिए सुनीता को परेशान करना शुरू कर दिया। हरियाणा में उनकी ससुराल थी। एक दिन ससुराल में उनको इतना मारा-पीटा गया कि वो अधमरी हो गई। होश आने पर सुनीता मौका पाकर भाग निकलीं और दिल्ली आ गईं। एक अनजान शहर में न कोई अपना परिचित न घर न पास में पैसे और पेट की आग से सुनीता का सामना हुआ।

घरों में झाड़ू-पोंछा कर काटे दिन

दिल्ली में पेट भरने के लिए सुनीता ने लोगों के घर में झाड़ू-पोंछा किया, बर्तन मांजे और भी बहुत से काम किए। एक दिन सुनीता के मन में ख्याल आया कि क्यों न ऑटो चलाया जाए। इसी के चलते उन्होंने ऑटो चलाने का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने 2004 में ऑटो चलाना शुरू कर दिया। सुनीता, आज वह सुकून की जिंदगी जी रही हैं।  उनका कहना है यदि महिलाएं मजबूत होंगी, तो समाज में बराबरी का महौल अपने आप पैदा हो जाएगा। ऑटो रिक्शा चलाकर वह प्रतिदिन 500 रुपये कमाती हैं। साथ ही वह बाल-विवाह और शारीरिक शोषण पर लोगों को जागरूक भी करती हैं।

राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

सुनीता को साल 2017 में भारत की 100 शिखर महिलाओं में से एक होने का गौरव हासिल हुआ था, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया।  सुनीता उन लोगों के लिए एक नजीर हैं, जो जरा सी परेशानियों पर हार मान लेती हैं।