जिस उम्र में बच्चे पढ़-लिखकर अपना भविष्य संवारने के सपने देखते हैं, उस उम्र में एक बेटी के कंधे पर पूरे परिवार को पालने की जिम्मेदारी आ गई। परिवार के पास आय का कोई साधन न होने के कारण मजबूरी में उत्तराखंड की इस बेटी को खेतों का रुख करना पड़ा। उसने बिना किसी झिझक और शर्म के खेती को ही परिवार के पालन-पोषण का जरिया बनाने की ठानी। इसके लिए उसे महज 13 साल की उम्र में ही खेतों में हल चलाना पड़ा। उत्तराखंड की इस बेटी ने पारंपरिक खेती से हटकर सब्जियां उगाने की ठानी और कुछ ही सालों में खेती को लाभ का व्यवसाय बना डाला।
नई दिल्ली। जिस उम्र में बच्चे पढ़-लिखकर अपना भविष्य संवारने के सपने देखते हैं, उस उम्र में एक बेटी के कंधे पर पूरे परिवार को पालने की जिम्मेदारी आ गई। परिवार के पास आय का कोई साधन न होने के कारण मजबूरी में उत्तराखंड की इस बेटी को खेतों का रुख करना पड़ा। उसने बिना किसी झिझक और शर्म के खेती को ही परिवार के पालन-पोषण का जरिया बनाने की ठानी। इसके लिए उसे महज 13 साल की उम्र में ही खेतों में हल चलाना पड़ा। उत्तराखंड की इस बेटी ने पारंपरिक खेती से हटकर सब्जियां उगाने की ठानी और कुछ ही सालों में खेती को लाभ का व्यवसाय बना डाला। हम यहां बात कर रहे हैं रूद्रप्रयाग जिले के उमरौला सौड़ की बबीता रावत के बारे में। यह बेटी आज जिले के साथ पूरे प्रदेश के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है। युवाओं में स्वरोजगार की अलख जगाने के लिए हाल ही में बबीता को रूद्रप्रयाग जिले की डीएम वंदना सिंह ने सम्मानित भी किया है। बबीता को तीलू रौतेली सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।
मशरूम का उत्पादन कर परिवार को दी मजबूती
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के उमरौला सौड़ निवासी बबीता रावत मशरूम के साथ मटर, भिंडी, शिमला मिर्च, बैंगन, गोभी समेत कई तरह की सब्जियों का उत्पादन कर रही हैं। मशरूम का उत्पादन बबीता की प्राथमिकता में है। इसी की बदौलत वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में जुटी हैं। मशरूम के उत्पादन से बबीता हर साल लाखों रुपये की कमाई कर रही हैं। बबीता प्रदेश के युवाओं को जागरूक करने में भी जुटी हैं। आज उनसे प्रभावित हो दर्जनों युवा बड़े शहरों में नौकरी करने का सपना छोड़ पारंपरिक खेती कर रहे हैं। बबीता युवाओं को खेती की मदद से स्वरोजगार के लिए प्रेरित भी कर रही हैं।
पिता के निधन के बाद बबीता के ऊपर आई परिवार की जिम्मेदारी
बबीता की सफलता आज जितनी चमकदार लगती है, उसके पीछे उतना ही कड़ा संघर्ष रहा है। सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी बबीता का संघर्ष महज 13 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था। बबीता कक्षा 6 में पढ़ती थीं। इसी दौरान अचानक उनके पिता की तबीयत खराब हो गई। परिवार ने किसी तरह उनका इलाज कराया, लेकिन कुछ ही दिनों में उनका निधन हो गया। इसके बाद परिवार का सारा भार बबीता के कंधों पर आ गया। परिवार के पास खेती को छोड़कर आय का कोई दूसरा साधन नहीं था। परिवार पूरी तरह परेशान था, लेकिन बबीता ने हिम्मत नहीं हारी और खेती करने का फैसला किया। छोटी बच्ची ने अपने कोमल हाथों में हल थाम लिया और बंजर मानी जाने वाली जमीन को खेती के लिए तैयार कर डाला। बबीता सुबह-शाम को खेतों में पसीना बहाती और दिन में पढ़ने के लिए स्कूल में जाती। बबीता ने अपनी पढ़ाई का क्रम भी नहीं टूटने दिया। यह बबीता की मेहनत ही थी कि उन्होंने खेती से कमाई कर न केवल परिवार को पालन-पोषण किया, बल्कि अपने भाई-बहनों को पढ़ा-लिखाकर उनका घर भी बसाया।
कार्यशाला से आया मशरूम उत्पादन का आइडिया
बबीता के मुताबिक 2016 में जब वह अगस्तयमुनि में बीए कर रही थीं तो उन्होंने देखा कि गांव के लोग मेहनत तो बहुत करते हैं, लेकिन पारंपरिक खेती का जो तरीका है उससे उन्हें उतना मुनाफा नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए। इसी दौरान स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की तरफ से बबीता के गांव में मशरूम पर 10 दिन की कार्यशाला और प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसमें कृषि अधिकारियों और उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने मशरूम उत्पादन की जानकारी और प्रशिक्षण दिया। इस कार्यशाला में बबीता ने भी हिस्सा लिया और घर के एक कमरे में मशरूम का काम शुरू किया। धीरे-धीरे मशरूम में सफलता मिलनी शुरू हुई।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.