राजस्थान के छोटे से गांव में जन्मीं भावना जाट टोक्यो ओलंपिक में रेसवॉकिंग में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। भावना दुर्घटनावश इस खेल में आई थीं। उनके रेसवॉकिंग में आने का किस्सा जितना दिलचस्प है, ओलंपिक तक पहुंचने का सफर उतना ही संघर्षपूर्ण है। भावना ने बचपन में गरीबी झेली, गांव वालों के ताने से बचने के लिए तड़के 4 बजे उठकर प्रैक्टिस की। तमाम परेशानियों के बावजूद भावना अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत खेल की दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल रहीं। अब उनका एकमात्र लक्ष्य ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड जीतना है। आइए जानते हैं भावना के फर्श से अर्श तक के सफर के बारे में....
नई दिल्ली। भावना जाट राजस्थान के छोटे से गांव काबड़ा की रहने वाली हैं। उनके पिता शंकर लाल जाट किसान हैं, जबकि मां नोसार देवी गृहिणी हैं। पिता के पास महज दो एकड़ जमीन होने के कारण घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। भावना को बचपन से ही खेलों में रूचि थी। वह बड़े होने पर खेल की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थीं। भावना बचपन से ही एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाली खिलाड़ी रही हैं। हालांकि शुरुआत में उन्हें साफ तौर पर किस दिशा में बढ़ना है इसे लेकर दुविधा थी। साल 2009 में उन्होंने एक राष्ट्रीय स्तर के स्कूल स्पोर्ट्स टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का फैसला लिया। राज्य की टीम का हिस्सा होने के लिए उन्हें पहले जिलास्तर की बाधा पार करना थी। उनके खेल शिक्षक उन्हें ट्रायल के लिए जिलास्तर की प्रतियोगिता में ले गए। वहां जाने पर पता चला कि सिर्फ रेसवॉकिंग में एक जगह खाली बची है। कुछ देर सोचने के बाद भावना ने रेसवॉकिंग में हिस्सा लेने का फैसला किया। इस प्रतियोगिता के बाद भावना ने तय कर लिया कि उन्हें रेसवॉकिंग में ही अपना कॅरियर बनाना है।
संसाधनों का अभाव, फिर भी नहीं बदला फैसला
भावना के पिता परिवार का खर्च चलाने के लिए खेती पर ही निर्भर थे। ऐसे में बेटी की ट्रेनिंग संबंधी जरूरतों को पूरा कर पाना उनके लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। भावना के सामने मूलभूत सुविधाओं के अभाव के साथ रेसवॉकिंग के अभ्यास के लिए मैदान न होना सबसे बड़ी मुश्किल थी। इसके बावजूद भावना ने हार नहीं मानी। वह तड़के 4 बजे उठकर अपने गांव के पास प्रैक्टिस करने लगीं।
गांव वालों के ताने ने बढ़ा दी थी मुश्किल
भावना ने तड़के 4 बजे उठकर प्रैक्टिस करने के पीछे की सबसे मुख्य वजह थी गांव वाले। दरअसल, गांव वाले शॉर्ट्स पहन कर किसी लड़की का यूं प्रैक्टिस करना अच्छा नहीं मानते थे। इसे लेकर भावना और उनके परिवार को कई बार ताने भी झेलने पड़े। गांव वालों की नजरों और तानों से बचने के लिए भावना ने तड़के प्रैक्टिस करना शुरू किया। भावना बताती हैं कि समाज के दबाव के बावजूद उनका परिवार उनके पीछे मजबूती से खड़ा रहा। इस वजह से वह खेल पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकीं।
बहन का सपना पूरा करने के लिए भाई ने छोड़ दी पढ़ाई
घर की माली हालत खराब होने के कारण भावना को खेल के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं। पिता भी बेबस थे। घर की परेशानियों और बहन के कॅरियर को देखते हुए भावना के भाई ने बीच में ही कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी शुरू कर दी। भाई चाहता था कि भावना हर हाल में खेल जारी रखें और अपना मनचाहा मुकाम हासिल करें। भावना ने भी पिता और भाई को निराश नहीं किया। कभी हार नहीं मानने की भावना की प्रवृत्ति ने धीरे-धीरे रंग दिखाना शुरू किया और वो कई स्थानीय व जिलास्तर के प्रतिस्पर्धाओं में जीत दर्ज करने लगीं। इन प्रदर्शनों के बदौलत उन्हें भारतीय रेलवे में खेल कोटे से नौकरी मिल गई।
दिन-ब-दिन निखरता गया प्रदर्शन
भावना ने साल 2019 में ऑल इंडिया रेलवे प्रतियोगिता में 20 किलोमीटर की रेसवॉकिंग में गोल्ड मेडल जीता। 20 किलोमीटर की यह दूरी उन्होंने एक घंटे, 36 मिनट और 17 सेकेंड में पूरी की थी। उनका कहना है कि इस कामयाबी ने उनके आत्मविश्वास को बेहतर प्रदर्शन और ओलंपिक के लिए कोशिश करने की दिशा में बढ़ाया। भावना ने रांची में 2020 में हुए नेशनल चैंपियनशिप में नया रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 20 किलोमीटर की दूरी एक घंटे, 29 मिनट और 54 सेकेंड में पूरा कर टोक्यो ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई किया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.