रजनी शुरू में वॉलीबॉल खेलती थीं। जब कक्षा 8वीं में थी उनके स्कूल की टीम को एक गोलकीपर की जरूरत थी। चूंकि रजनी की लंबाई अच्छी थी तो स्पोर्ट टीचर ने उन्हें गोलकीपर चुन लिया। यहीं से रजनी ने हॉकी की दुनिया में कदम रखा। लेकिन यह राह आसान नहीं थी।
भारतीय हॉकी टीम की स्टार गोलकीपर रजनी एतिमरपू आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के एक छोटे से गांव एनुमुलावरिपल्ली से ताल्लुक रखती हैं। वह बहुत ही साधार परिवार से आती हैं। खेल के शुरुआती दिनों में उन्होंने खूब संघर्ष किया, लेकिन धैर्य और दृढ़ संकल्प के दम पर वह आज जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। वह शुरू में वॉलीबॉल खेलती थीं। जब कक्षा 8वीं में थी उनके स्कूल की टीम को एक गोलकीपर की जरूरत थी। चूंकि रजनी की लंबाई अच्छी थी तो स्पोर्ट टीचर ने उन्हें गोलकीपर चुन लिया। यहीं से रजनी ने हॉकी की दुनिया में कदम रखा। लेकिन यह राह आसान नहीं थी। उनके पिता बढ़ई का काम करते थे। वह अपनी बेटी के लिए हॉकी किट नहीं खरीद सकते थे। रजनी याद करते हुए कहती हैं, ‘मैंने अपना पहला दौरा बेहद बेसिक हॉकी किट के साथ किया था। जब उस किट को मेरे सीनियर और कोच ने देखा तो उन्होंने हमें नई किट खरीदने में मदद की।’ रजनी मां को अपनी प्रेरणा मानती हैं वह कहती हैं 'मेरी मां मेरी आवाज से ही मेरी खुशी और मेरे गम पहचान लेती है। रियो आलंपिक का हिस्सा रह चुकी रजनी टोक्यो ओलंपिक में भी भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा हैं।
रजनी ने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो पूरी जान लगा दी। सुबह-सुबह ही हॉकी की प्रैक्टिस के लिए मैदान पर पहुंच जाती थीं। फिर स्कूल जाती थीं और स्कूल से वापस आने के बाद फिर से प्रैक्टिस के लिए मैदान पर पहुंच जाती थीं। इसी का नतीजा रहा कि साल 2007 में उन्हें साई में दाखिला मिल गया। उसी साल, रजनी ने आंध्र प्रदेश के लिए जूनियर नेशनल चैंपियनशिप खेली और क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई। टूर्नामेंट में उनके प्रदर्शन ने उन्हें पहली बार 2008 में जूनियर इंडिया कैंप के लिए प्रेरित किया।
रजनी तीन बार जूनियर नेशनल कैंप का हिस्सा रहीं लेकिन टीम के लिए खेलने का मौका कभी नहीं मिला। संशय में और निराश होकर, रजनी अपनी परीक्षा देने के लिए हैदराबाद चली गई, इसी दौरान उन्हें बंगलूरू में सीनियर इंडिया कैंप के लिए खुले चयन के बारे में एक ईमेल आई। मेल देखते ही इसमें हिस्सा लेने के लिए वह बंगलूरू वापस आ गई। उनकी कड़ी मेहनत का फल यहां पर मिला, उन्हें शिविर के लिए चुन लिया गया, और बाद में भारतीय राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बन गईं। साल 2009 में उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट न्यूजीलैंड में मेजबानों के खिलाफ खेला।
उसके बाद, उन्होंने एशियन चैंपियनशिप ट्रॉफी, कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन कप और समर गेम्स में खेला। वह 2014 में चोटिल हो गया थी लेकिन 2015 में वापस फिर वापसी की और रियो ओलंपिक 2016 में टीम का हिस्सा रहीं। रियो ओलंपिक का अनुभव टोक्यो ओलंपिक में भी बहुत काम आने वाला है।
टीम में गोलकीपर का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। वह कहती हैं, 'गोलकीपर पर अतिरिक्त जिम्मेदारी और ज्यादा दबाव रहता है। एक गलती और नतीजा सीधे गोल होता है। पूरी टीम तो उस गलती को भूल सकती है लेकिन एक गोलकीपर के लिए उस गलती को भूलना आसान नहीं होता।'
रजनी एतिमरपू भविष्य में एक हॉकी अकॉदमी खोलना चाहती हैं। जो कि ग्रामीण क्षेत्र में उभरते हुए खिलाड़ियों को आगे लाने का काम करेगी। एक ग्रामीण क्षेत्र से होने के नाते वह जानती है कि एक खिलाड़ी को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ाता है। इसलिए वह भविष्य में ग्रामीण क्षेत्र के उभरते खिलाड़ियों की मदद आपनी अकॉदमी के माध्यम से करना चाहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.