मथुरा की चंचल का सपना हिंदी की प्रोफेसर बनने का है। अपने सपने को पूरा करने के लिए चंचल कितनी शिद्दत से मेहनत कर रही हैं , इसका नजारा डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के 85वें दीक्षांत समारोह में देखने को मिला जब मथुरा की चंचल को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने पांच गोल्ड मेडल से नवाजा। पूरे प्रदेश में सर्वाधिक गोल्ड प्राप्त करने वाली चंचल ने संसाधनों के आभाव में इस मुकाम को पाया है।
मथुरा। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा। यहां हर घर एक मंदिर है। आध्यात्मिक संस्कृति को अपने में समेटे मथुरा में आस्था और भक्ति के कई रंग देखने को मिलते हैं। यहां हर साल लाखों लोग प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शन करने पहुंचते हैं। इसी मथुरा की बेटी चंचल ने मथुरा का नाम पूरे देश में एक बार फिर रोशन किया है। चंचल को डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के 85वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने एक ने दो नहीं पूरे पांच गोल्ड मेडल से नवाजा। जब राज्यपाल ने उनकी मेहनत और लगन की दास्तां सुनी, तो उन्होंने भी उनकी लगन को सराहा और कहा, बेटियां किसी से कम नहीं होती। चंचल को दो गोल्ड मेडल यूनिवर्सिटी टॉप करने के, दो गोल्ड मेडल एमए फाइनल में सर्वाधिक अंक लाने के और एक गोल्ड मेडल छात्राओं में सर्वाधिक अंक लाने का मिला है। मथुरा के जगन्नाथपुरी की रहने वाली चंचल ने केआरपीजी कॉलेज से एम.ए हिंदी किया है। वह इस समय बीएड की पढ़ाई कर रही हैं और आगे हिंदी की प्रोफेसर बनने की तैयारी में हैं। चंचल की शुरुआती शिक्षा मथुरा से ही हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा भी मथुरा से ही पूरी की। बचपन से ही कुछ कर गुजरने की ठानने वाली चंचल के पिता मथुरा में ही एक फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं और आठ हजार रुपये मासिक का मामूली वेतन पाते हैं। लेकिन ज्यादा आमदनी न होने के बाद भी उन्होंने अपनी बेटियों को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। ये पिता का ही हौसला था कि उन्होंने बेटियों को आजादी दी कि खूब पढ़ो और आगे बढ़ो। सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी से परिवार और पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा था। लेकिन पिता ने बड़ी बहन को पोस्ट ग्रेजुएशन कराया उनको भी पढ़ाई के लिए छूट दे दी। बेटियों की पढ़ाई बीच में न छूट जाए, इसके लिए वह दिन-रात एक कर देते, लेकिन कभी इसका उन्होंने अहसास नहीं होने दिया। बस, यही कहते बेटी तुम कुछ बन जाओगी तो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। चंचल की माता गृहणी हैं और एक बहन संगीता भी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है। भाई हिमांशु घर में सहयोग करने के लिए प्राइवेट नौकरी करता है। चंचल को बचपन से ही आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन कभी उन्होंने हार नहीं मानी। स्कूल, कॉलेज से आने के बाद चंचल घर में मन लगाकर पढ़तीं। पढ़ाई को लेकर उनकी लगन को देखकर कई बार सहयोगी छात्राएं उन्हें चिढ़ाया भी करतीं कि इतना पढ़-पढ़कर दिमाग घूम जाएगा, लेकिन चंचल ने कभी उनका बुरा नहीं माना और आज जब चंचल ने दीक्षांत समारोह में प्रदेश में सर्वाधिक पांच गोल्ड मेडल जीत लिए हैं, तो सभी उनकी कामयाबी से बेहद खुश हैं। माता-पिता बेटी की तरक्की पर फूले नहीं समा रहे, वहीं आस-पड़ोसी भी चंचल की इस उपलब्धि पर खासा खुश हैं। इस कामयाबी को लेकर चंचल कहती हैं कि बेटियों को कभी खुद को किसी से कम नहीं समझना चाहिए। जो बेटे कर सकते हैं बेटियां उससे ज्यादा कर सकती हैं। हौसला और हिम्मत रखकर अगर सपने का पीछा किया जाए, तो सपने जरूर पूरे होते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.