प्रियंका दीवान इंटलेक्चुअल डिसएबिलिटी नाम के मानसिक रोग से पीड़ित हैं। उसके बावजूद उन्होंने रोलर स्केटिंग में कई अवार्ड जीते हैं। अपने इस सफलता का श्रेय वह अपनी मां को देती हैं, जिन्होंने सिंगल मदर के तौर पर अकेले उन्हें पाला-पोसा।
नई दिल्ली। 20 साल की प्रियंका दीवान रोलर स्केटिंग क्वीन हैं। वह दिल्ली की रहने वाली हैं। उन्होंने स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स 2019 में रोलर स्केटिंग में तीन मेडल जीते। वह जन्म से ही मैं बौद्धिक अक्षमता (इंटलेक्चुअल डिसएबिलिटी) नाम के मानसिक रोग से पीड़ित हैं। प्रियंका की मानें तो मेरे माता-पिता बचपन में अलग हो गए, इसलिए मेरा पालन-पोषण नाना के घर पर हुआ। मेरे जन्म के एक या डेढ़ वर्ष बाद मेरी अस्पष्ट बोलचाल से ही मां को एहसास हो गया था कि मुझे विशेष देखभाल की जरूरत है। समय के साथ स्कूल में अन्य बच्चों के साथ तालमेल बनाना मेरे लिए कठिन हो गया। एक समय ऐसा भी आया, जब स्कूल में मैं अपमानित महसूस करने लगी और लोगों का सामना करने से डरते हुए स्कूल जाने से इन्कार कर दिया। फिर मेरी मां ने मेरा दाखिला एक मनोविकास स्कूल में करवाया। वहां मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा। इसके बाद मैंने खुद को खेलों की ओर मोड़ा। परिवार के प्रत्येक सदस्य ने मुझे प्रोत्साहित किया। कुछ समय बाद मैं सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगी। मां ने मुझे स्केटिंग के लिए प्रोत्साहित किया। कुछ ही दिन बाद मैंने मां से कहा- एक दिन मैं देश के लिए खेलूंगी।
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए चुनी गईं
मैंने टीवी पर रोलर स्केटिंग के कई आयोजन देखे। धीरे-धीरे वे मुझे पसंद आने लगे और मैंने मां से इसका प्रशिक्षण दिलाने के लिए कहा। टीवी पर रोलर स्केटिंग देखकर मैं गर्व महसूस करती थी। स्कूल में अभ्यास शिविरों के बाद मैंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की स्केटिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया और अपने बेहतर प्रदर्शन के चलते अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए चुनी गई।
स्वर्ण पदक जीता
वर्ष 2007 में मैं स्कूल में विशेष ओलंपिक भारत खेल कार्यक्रम में शामिल हुई। कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के बाद अबू धाबी में वर्ष 2019 में आयोजित विशेष ओलंपिक विश्व ग्रीष्मकालीन खेलों के लिए मैंने अभ्यास शुरू किया। इसके लिए मैं घर के पास स्थित एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में रोजाना अभ्यास करने जाने लगी। इस प्रतियोगिता में मैंने एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीता।
मुश्किलें भी थीं
मैं अपनी सफलता का श्रेय मां को देती हूं। उनके साथ के बगैर स्केटिंग करना संभव नहीं था। तलाक के बाद मेरी मां अनुरिता दीवान के कंधे पर जिम्मेदारियां बहुत थीं, पर उन्होंने सबकुछ संभालते हुए मेरी और मेरी बहन की पढ़ाई-लिखाई अच्छे से की। उन्होंने लक्ष्य से कोई समझौता नहीं किया। मेरी मां ने सुनिश्चित किया कि सीमित संसाधनों में सबकी जरूरतों का ध्यान कैसे रखा जाना है। तलाकशुदा और गृहिणी होने के बावजूद मेरी मां ने हार नहीं मानी। उन्होंने मुझमें आत्मविश्वास जगाया, जिसके चलते मैंने रोलर स्केटिंग का अभ्यास शुरू किया। रोलर स्केटिंग ने मुझे प्रशंसा व सम्मान दिलाया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.