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यूपीएससी की परीक्षा पास करने के लिए मासूम बेटे से होना पड़ा दूर, पहले ही प्रयास में बनीं आईएएस

Published - Tue 29, Dec 2020

सिविल सेवा में महिलाओं की दिलचस्पी और सफलता का आंकड़ा बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। हालांकि देश की सबसे जटिल परीक्षाओं में से एक यूपीएससी को क्रैक करने के लिए इन महिलाओं को बहुत से समझौते और संघर्ष करने पड़े हैं। हाल में आए यूपीपीएसी परीक्षा 2019 के परिणाम में सफलता हासिल करने वाली कई ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने इसके लिए कई त्याग किए। ऐसी ही महिलाओं में शामिल हैं डॉक्टर अनुपमा सिंह। डॉ. अनुपमा को परीक्षा की तैयारी के लिए अपने तीन साल के मासूम बेटे से एक साल तक दूर रहना पड़ा। बेटा बार-बार मिलने की जिद करता, वीडियो कॉलिंग करने पर रोता, डॉ. अनुपमा भी इससे परेशान हो जातीं, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला। नतीजा यह हुआ कि पहले ही प्रयास में वह आईएएस बन गईं।

नई दिल्ली। पटना के कंकरभांग की रहने वालीं डॉ. अनुपमा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना से ही पूरी की है। उन्होंने 2002 में माउंट कार्मेल हाईस्कूल से कक्षा 10वीं की पढ़ाई पूरी की। 2011 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया और 2014 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ सर्जरी (एमएस) किया। इन सफलताओं के बाद अधिकांश लोग शादी कर घर-गृहस्थी में उलझ जाते हैं। लेकिन डॉ. अनुपमा ने प्रैक्टिस के दौरान देखा कि स्वास्थ्य सेवाओं में वृहद स्तर पर सुधार की जरूरत है। उन्होंने यह भी महसूस किया कि वह एक मेडिकल सर्जन रहते इस व्यवस्था में बदलाव नहीं ला सकती हैं। गरीबों की मदद वह उस तरह नहीं कर सकतीं, जैसा जिले का एक कलेक्टर कर सकता है। इन्हीं बातों ने डॉ. अनुपमा को यूपीएससी परीक्षा को पास करने के लिए प्रेरित किया और वह जुट गईं तैयारी करने में।   

दिल्ली में रहकर की तैयारी, तीन साल के बेटे से बनाई दूरी

32 वर्षीय डॉ. अनुपमा ने साल 2013 में रवींद्र कुमार से शादी की। वह भी पेशे से डॉक्टर हैं। डॉ. अनुपमा के मुताबिक जब उन्होंने यूपीएससी की तैयारी का फैसला किया तो उनका बेटा अनय महज 3 साल का था। इतने छोटे बच्चे से दूर रहकर तैयारी करने का फैसला करना मुश्किल था। मैं काफी उलझन में थी। इस बारे में मैंने अपने पति से बात की और दिल्ली जाकर तैयारी करने की इच्छा जाहिर की तो वह तैयार हो गए। डॉ. अनुपमा के मुताबिक पति ने उनका न केवल हौसला बढ़ाया, बल्कि बच्चे की चिंता न करने और पूरी तरह देखभाल का आश्वासन भी दिया। परिवार के अन्य सदस्यों ने भी ऐसी ही बात कही, जिस कारण मैं निश्चिंत होकर दिल्ली आ सकी और तैयारी की। डॉ. अनुपमा ने पहले ही प्रयास में सफलता हासिल करते हुए सिविल सेवा 2019 की परीक्षा में 90वीं रैंक हासिल की।

बेटे से जल्द मिलने की इच्छा ने तैयारी में की मदद

डॉ. अनुपमा ने साल 2018 में दिल्ली पहुंच एक कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया। वह बताती हैं, जब मैं करोल बाग में अकेली रह रही थी, तो मैंने अपना पूरा ध्यान केवल पढ़ाई पर ही केंद्रीत कर रखा था। कोचिंग से लौटने के बाद मैं किताबें, समाचार पत्र, पत्रिकाएं पढ़ती थी। खुद से ही नोट्स तैयार करती थी। मैं अपने बेटे के साथ वीडियो कॉल पर बातचीत करती थी। मैं यह बात अच्छे से जानती थी कि बेटे के बचपन का एक अहम हिस्सा मिस कर रही हूं, लेकिन कुछ पाने के लिए बहुत सारे समझौते करने पड़ते हैं। खुद को समझाना पड़ता है। कई बार फोन पर बात करते हुए बेटा रोता और मिलने की जिद करता, तो मैं भी टूट जाती। कई बार लगा कि तैयारी बीच में छोड़कर बेटे के पास लौट जाऊं, लेकिन फिर सोचा इस तरह लौटना ठीक नहीं होगा। फिर मैंने तय किया कि यदि मुझे जल्द से जल्द घर वापस लौटना है, तो सफलता भी जल्द ही हासिल करनी होगी। बेटे से जल्द मिलने की इच्छा ने मुझे पढ़ाई पर और ज्यादा केंद्रीत होने का इरादा दिया। शायद यही कारण था कि मैंने पहले प्रयास में परीक्षा पास कर ली।