काफी कठिनाइयों से गुजर कर सिमरनजीत कौर ओलंपिक तक पहुंची हैं, अभी तक कोई बड़ा पदक उनके नाम नहीं है, ऐसे में उन्हें पूरी उम्मीद है कि वो पदक जीतेंगी। वह कल रिंग में उतरेंगी। पंजाब से ओलंपिक का टिकट कटाने वाली वह पहली महिला मुक्केबाज हैं।
नई दिल्ली। 25 साल की मुक्केबाज सिमरनजीत कौर ओलंपिक में कल यानी 30 जुलाई को रिंग में उतरेगी। अब सबकी निगाहें उन पर टिकी हुईं हैं। सिमरन पंजाब की रहने वाली हैं। यहां से ओलंपिक का टिकट कटाने वाली वह पहली महिला मुक्केबाज हैं। सिमरनजीत वूमेंस कैटेगरी के 60 किग्रा भार वर्ग में दो-दो हाथ करते नजर आएंगी। पंजाब के चकर से ताल्लुक रखने वाली सिमरन के परिवार का नाता खेल से जरूर रहा है, लेकिन कोई बड़ा खिलाड़ी अभी तक उनके परिवार से नहीं निकला है। हालांकि, उनके भाई-बहन भी बॉक्सिंग करते हैं और वह भी राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुके हैं, लेकिन सबसे आगे सिमरनजीत कौर हैं, जिनसे सभी को उम्मीद है।
2011 से खेल रही हैं मुक्केबाजी, कोई बड़ा पदक नहीं है नाम
2011 से सिमरनजीत कौर पेशेवर मुक्केबाजी में हैं, लेकिन अभी तक देश के लिए कोई बड़ा पदक उन्होंने नहीं जीता है। ऐसे में इस कलंक को धुलने का उनके पास मौका है। उन्होंने कहा था कि उन्होंने ओलंपिक के लिए खूब तैयारी की है और वे विपक्षी खिलाड़ियों की कमजोरी को तलाशते हुए खुद की कमजोरियों को भी दूर कर रही हैं। इसका परिणाम हमको ओलंपिक के रिंग में देखने को मिल सकता है।
मार्च में हुई थीं चयनित
सिमरन 2018 एआईबीएक वूमेंस वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत चुकी हैं। 64 किलोग्राम भार वर्ग में उन्होंने अहमेट कॉमेर्ट इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीता। 9 मार्च 2021 को उन्हें टोक्यो ओलंपिक का टिकट मिला था, जब उन्होंने एशियन बॉक्सिंग ओलंपिक क्वालीफायर्स टूर्नामेंट में जॉर्डन में फाइनल मुकाबला हारा था, लेकिन सिल्वर मेडल अपने नाम किया था।
काफी कठिनाइयों से गुजरा है जीवन
कौर का जन्म एक निम्नवर्ग परिवार में हुआ। उनकी मां को जीविका चलाने के लिए लोगों के घरों में काम करना पड़ता था। उनके पिता एक छोटी मासिक वेतन के लिए शराब की दुकान पर काम करते थे। बहुत बाधाओं के बावजूद परिवार में मुक्केबाज़ी के प्रति जुनून था, बड़ी बहन और दो भाई भी मुक्केबाज हैं। उनकी मां ने उन्हें भी प्रोत्साहित किया कि वे अपने बड़े भाई-बहनों के नक्शेकदम पे चले और खेल में ही आगे बढ़ें। कौर का सपना एक शिक्षिका बनने का था लेकिन उनकी मां खेल में ही उन्हें आगे बढ़ाना चाहती थीं। वे कौर को उनके गांव के शेर-ए-पंजाब बॉक्सिंग एकेडमी ले गई और अंततः कौर मान गई । कौर और उनके परिवार को जुलाई 2018 में कठिन समय का सामना करना पड़ा, जब उनके पिता गुजर गए। उनके पिता का मानना था कि लोगों के लिए खेल सर्वश्रेष्ठ तरीका है, जिसके माध्यम से लोग अपने आप को गरीबी से निकालकर एक सफल जीवन प्राप्त कर सकते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.