लक्ष्य से समझौता न करने वाले ही मनमाफिक मुकाम हासिल करते हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं मध्य प्रदेश के खरगोन की गरिमा अग्रवाल। पहले से तय मुकाम को हासिल करने के लिए गरिमा ने देश की सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी को एक बार नहीं, बल्कि दो बार क्लियर किया। पहली बार यूपीएससी क्लियर करने पर उन्हें रैंक के मुताबिक आईपीएस बनने का मौका मिला, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं हुईं। उन्हें आईएएस बनने का अपना सपना साकार करना था। इसे पूरा करने के लिए वह आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान भी परीक्षा की तैयारी करती रहीं और दूसरी बार यूपीएससी में 40वीं रैंक हासिल कर अपने सपने का पूरा कर डाला। आइए जानते हैं गरिमा के आईपीएस से आईएएस बनने के सफर के बारे में....
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के छोटे से जिले खरगोन के कल्याण अग्रवाल व्यवसायी और समाजसेवी हैं। उनकी पत्नी मां किरण अग्रवाल गृहिणी हैं। कल्याण अग्रवाल की छोटी बेटी गरिमा पढ़ने में बचपन से ही काफी होशियार हैं। गरिमा का बचपन से ही सपना था कि वह आईएएस अफसर बने और किसी जिले की कमान संभालें। अपने इस सपने में रंग भरने के लिए उन्होंने यूपीएससी की तैयारी का फैसला किया। यह उनकी कड़ी मेहनत ही थी कि पहली बार 2017 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और 241वीं रैंक हासिल की। रैंक के कारण पर उन्हें आईपीएस मिला। लेकिन गरिमा को खाकी की रौंबदार नौकरी रास नहीं आई। वह आईएएस बनने के अपने सपने का पूरा करने के लिए फिर से तैयारी में जुट गईं। दूसरी बार 2018 में फिर यूपीएससी की परीक्षा दी और 40वीं रैंक हासिल कर आईएएस बन गईं।
हिंदी मीडियम से की पढ़ाई, बड़ी बहन से मिली प्रेरणा
सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वालों के मुंह से अपने अक्सर यह बात सुनी होगी कि हिंदी पट्टी का होने के कारण वह सफल नहीं हो सके। हिंद मीडियम से पढ़ाई के कारण वे करियर के उस मुकाम को हासिल नहीं कर सके, जिसकी उन्हें चाह थी। ऐसा कहने या ये बातें सुनकर हतोत्साहित होने वाले लोगों के लिए गरिमा बड़ी प्रेरणा हैं। गरिमा ने अपने स्कूल की पढ़ाई हिंदी मीडियम से की है। उन्होंने ग्रेजुएशन भी हिंदी में ही किया है, लेकिन कभी भी भाषा की दीवार उनकी सफलता के रास्ते में नहीं आई। गरिमा ने 10वीं में 92 प्रतिशत और 12वीं में 89 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। इस वजह से उन्हें रोटरी इंटरनेशनल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत एक साल की हायर सेकंडरी एजुकेशन मिनेसोटा, अमेरिका में पूरी करने का मौका भी मिला था। गरिमा की प्रेरणास्रोत उनकी बड़ी बहन प्रीती अग्रवाल हैं। प्रीती ने भी साल 2013 में यूपीएससी की परीक्षा पास किया था। वह वर्तमान में इंडियन पोस्टल सर्विस में कार्यरत हैं। उनके पति शेखर गिरिडीह भी आईआरएस ऑफिसर हैं। गरिमा को उनकी बड़ी बहन हर कदम पर सहयोग देती रहीं और हौसला बढ़ती रहीं। गरिमा बताती हैं कि आपका पारिवारिक बैकग्राउंड भले ही कितना अच्छा क्यों न हो, लेकिन इससे आपका संघर्ष कम नहीं हो जाता। पढ़ना तो आपको ही पड़ता है, मेहनत आप ही करते हैं। दिन-रात एक करने के बाद ही आप अपना सौ प्रतिशत दे सकते हैं।
सिविल सेवा के लिए, विदेश में नौकरी का ऑफर नकारा
स्कूल की शिक्षा के बाद गरिमा ने जेईई करने का मन बनाया और सेलेक्ट भी हो गईं। उन्होंने आईआईटी हैदराबाद से ग्रेजुएशन किया। इस दौरान उन्हें जर्मनी से इंटर्नशिप मिल गई। गरिमा की लगन देख उन्हें जर्मनी में ही मोटी सैलरी पर नौकरी का ऑफर मिला, लेकिन पहले से ही सिविल सेवा में जाने का फैसला कर चुकी गरिमा ने इस ऑफर को नकार दिया। जर्मनी से देश लौटने के बाद गरिमा यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी में जुट गईं। करीब डेढ़ साल परीक्षा की तैयारी करके साल 2017 में पहली बार यूपीएससी परीक्षा दी और पहली ही बार में सफल हो गईं। लेकिन रैंक के आधार पर उन्हें आईपीएस सर्विस मिली। गरिमा अपनी सफलता से संतुष्ट थीं पर कलेक्टर बनने का सपना अब भी उनसे दूर था। घरवालों से चर्चा के बाद गरिमा ने आईपीएस की ट्रेनिंग ज्वॉइन कर ली, लेकिन यूपीएससी की तैयारी जारी रखी। 2018 में न केवल यूपीएससी परीक्षा पास की बल्कि 40वीं रैंक लाकर टॉप भी किया। इसी के साथ उनका बचपन का सपना पूरा हो गया।
सोशल मीडिया से किया किनारा
गरिमा के लगातार दो साल में दो बार यूपीएससी की परीक्षा पास करने को लेकर कुछ लोग भाग्य से भी जोड़कर देखते हैं। लेकिन भाग्य से ज्यादा उनकी कड़ी मेहनत और त्याग इसके पीछे की मुख्य वजह है। हिंदी मीडियम की गरिमा के लिए अंग्रेजी में परीक्षा देना और अखबार पढ़ना आसान नहीं था। गरिमा बताती हैं कि शुरू में उन्हें केवल अखबार पढ़ने में ही तीन घंटे लग जाते थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। हिंदी मीडियम से होने के बावजूद इंग्लिश में परीक्षा देना चुना। इसके पीछे वजह यह थी कि हिंदी में स्टडी मैटेरियल जैसा वे चाह रही थीं वह नहीं मिल रहा था। यूपीएससी मेंस में प्रभावी उत्तर लिखना गरिमा के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। इस समस्या से निपटने के लिए गरिमा ने उत्तर लिखने की रोजाना घंटों तक प्रैक्टिस की। डेढ़ साल तक कहीं भी आना-जाना बंद कर दिया। सिर्फ पढ़ाई पर ही फोकस किया। तैयारी से ध्यान न भटके इसके लिए दो साल तक सोशल मीडिया के सभी अकाउंट डिलीट कर दिए थे। टीवी भी काफी कम देखती थीं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.