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गोरखपुर के एक परिवार की तीन अफसर बिटिया

Published - Wed 22, Jan 2020

गोरखपुर की डॉ. निलांजलि सिंह को एम्स दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर तैनाती मिली है और डॉ. स्वाति सिंह ने यूपीपीएसी क्लियर कर डेंटल सर्जन का पद प्राप्त किया है। खूशबू सिंह का नायब तहसीलदार के लिए चयन हुआ है। तीनों बहनों के लिए साल 2019 खुशियां लेकर आया और एक के बाद एक मिली सफलता से त्रिमूर्ति ने दिखा दिया है कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं।

Gorakhpur sisters

उत्तर प्रदेश का गोरखपुर सीएम योगी के लिए तो जाना ही जाता है, लेकिन गोरखनाथ मंदिर के पास मौजूद सूर्य विहार कॉलोनी के डॉक्टर ब्रजनाथ सिंह की तीन होनहार बेटियों की सफलता के कारण भी गोरखपुर का नाम हो रहा है। यहां रहने वाले डॉक्टर ब्रजनाथ सिंह के घर जब एक के बाद एक तीन बेटियां हुईं, तो लोगों ने डॉक्टर साहब को कहना शुरू कर दिया कि अब तो तीन बेटियां हो गई हैं। इनकी शादी कैसे करोगे, बेटियों की परवरिश कैसे होगी। शादी में तो दहेज बहुत देना पड़ेगा आदि। डॉ. ब्रजनाथ सिंह लोगों की ऐसी बातों को अनसुना कर दिया और बेटियों को बेटों की तरह आजादी दी और आज उनकी बेटियां सफलता के आसमान को छू रही हैं।
बड़ी बेटी ने लिखी सफलता की कहानी
जब बेटियां बड़ी हुईं, तो उनकी मां मनोरमा सिंह ने सबसे बड़ी बड़ी बेटी निलांचलि सिंह को समझाया कि देखो, तुम अगर सफल होगी, तो तुम्हें देखकर दोनों बहनों को भी हौसला मिलेगा। मां की इस बात को  गांठ बांधकर निलांचलि  सिंह ने बचपन से ही पूरा ध्यान सफल होने की ओर लगा दिया। आम लड़कियों से अलग हटकर निलांजलि सिंह गंभीर होकर पढ़ने की ओर ध्यान देतीं। खेलती-कूदना भी होता, तो उसका समय निर्धारित था। तीनों बहनें एक दोस्त की तरह रहतीं। निलांजलि ने दसवीं में गोरखपुर टॉप करके मां की उम्मीदों को बनाए रखा। बारहवीं में भी 75 फीसदी अंक हासिल किए और पहले ही प्रयास में प्रयागराज के मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज का एग्जाम क्रैक कर एमबीबीएस में दाखिला लिया। यहां पढ़ाई के दौरान निलांजलि ने अवार्ड पाने में सबसे पीछे छोड़ दिया। 2002 में उन्हें मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड मिला और पढ़ाई के दौरान अलग-अलग उपलब्धियों के लिए नौ बार गोल्ड मेडल से नवाजा गया। अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एमएस की पढ़ाई करने के लिए एग्जाम दिया और पहले ही प्रयास में सफल हुईं। यहां उन्हें 60वां रैंक मिला। यहां पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने यूपीएससी क्लियर कर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में गायनोलॉजिस्ट में असिस्टेंट प्रोफेसर का पद हासिल किया। शादी के बाद उन्हें एक बेटी हुई। उन्होंने मातृत्व अवकाश लिया और छह माह के मातृत्व अवकाश से लौटने के बाद फिर से ज्वाइन कर महिला चिकित्सा के क्षेत्र में जुट गईं। इसी बीच डॉ निलांचलि को पति डॉ. अतुल बत्रा के साथ जो दिल्ली एम्स में कैंसर रोग विशेषज्ञ हैं कनाडा के टॉम बेकर कैंसर सेंटर यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी में एक साल की फैलोशिप मिली है, फिलहाल वो कनाडा में फैलोशिप कर रही हैं। हाल ही में एम्स दिल्ली में उनकी असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर तैनात हुई हैं। अपनी मेहनत और लगन के कारण देश और प्रदेश स्तर पर बीस से भी अधिक अवार्डों से नवाजी जा चुकी निलांजलि सिंह ने 2013 में ताइवन में फेलोशिप की। 2015 में यूरोपियन सोसाइटी ऑफ मेडिकल ऑनक्लॉजी में फेलोशिप ली। उसके बाद 2015 में ही कनाड़ा, 2016 में यूएसए, पुर्तगाल, 2017 में  यूएसए में इंटर्न किया। विदेशों में गेस्ट लेक्चरार के रूप में भी निलांजलि को बुलाया जाता है। वे अब तक कजाकिस्तान, जर्मनी, यूएसए, बर्लिन, कोलंबिया, रसिया,जैसे देशों में लेक्चर दे चुकी हैं। इसके अलावा वे हैदराबाद, दिल्ली, अमेरिका, एशिया फेसफिक में भी कई अहम स्वास्थ्य संगठनों की सदस्य हैं। यूएसए, भारत में उनके कई हेल्थ जनरल प्रकाशित हो चुकेहैं।

बड़ी बहन के नक्शे-कदम पर चल पड़ी छोटी बहनें
निलांचलि सिंह अपनी छोटी बहन स्वाति और खुशबू सिंह के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। बड़ी बहन से प्रेरणा लेकर छोटी बहन स्वाति सिंह ने लखनऊ के केजीएमसीमेडिकल कॉलेज से बीडीएस की पढ़ाई पूरी की और लखनऊ के ही सरस्वती डेंटल कॉलेज लखनऊ में एमडीएस के लिए एडमिशन लिया। डॉ. स्वाति सिंह ने हाल ही में यूपीपीएससी में डेंटल सर्जन का एग्जाम क्लियर किया और डेंटल सर्जन के पद के लिए चयनित हुई हैं। वहीं तीनों बहनों में सबसे छोटी बहन भी दो बड़ी बहनों से प्रेरणा लेकर सफलता के पीछे पड़ गईं। दिल्ली के जानकी देवी मैमोरियल कॉलेज से बीए करने के बाद उन्होंने एडमिस्ट्रेशन सेक्टर में जाने का फैसला किया। खुशबू ने 2015 में यूपीपीएसी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में एग्जाम क्लियर कर दिया। लेकिन यहां किस्मत उनके साथ नहीं थी। इंटरव्यू में वो चूक गईं। खुशबू ने हार नहीं मानी। उन्होंने 2016 में एक बार फिर यूपीपीएसी की परीक्षा दी और सफल हो गईं। लेकिन किस्मत उनका और इम्तेहान लेना चाहती थी। इस बार भी वो इंटरव्यू में विफल हो गईं। खुशबू ने हार नहीं मानी और 2017 में फिर से तैयारी की और सफल हुईं। 2019 में आए फाइनल रिजल्ट में खुशबू का भी नाम था और उनकी चयन नायब तहसीलदार पद के लिए हुआ। खूशबू ने अपनी लगन और मेहनत के बल पर दिखा दिया कि सफलता के पीछे पड़ जाओ तो सफलता आपके सामने झुक ही जाती है।

2019 देता रहा खुशखबरी
तीनों बहनों और उनके परिवार के लिए साल 2019 किसी चमत्कारी साल से कम नहीं है। खासकर साल के अंतिम महीने तो जादुई महीने ही बन गए। सिंतबर में डॉ. निलांचलि सिंह के एम्स दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयनित होने की खुशखबरी मिलते ही परिवार झूम उठा। अभी जश्न का दौर चल ही रहा था कि अक्तूबर में घर की सबसे छोटी बेटी खुशबू सिंह का यूपीपीएससी 2017 का फाइनल रिजल्ट आया और उनका चयन नायब तहसीलदार के पद पर हुआ। जश्न और बधाईयों का दौर चल रही रहा था कि नवंबर में डॉ. स्वाति सिंह का भी यूपीपीएससी का रिजल्ट आ गया और उनका चयन भी डेंटल सर्जन के पद पर हो गया।

पिता ने न समाज की परवाह की न रिश्तेदारी की
डॉ. निलांचलि सिंह, डॉ. स्वाति सिंह, खुशबू सिंह के पिता गोरखपुर में चिकित्सक हैं। उनके परिवार -रिश्तेदारी में अब तक बेटियों को पढ़ने के लिए घर से बाहर नहीं भेजा गया था। समाज और रिश्तेदार तीन बेटियां होने पर तरह-तरह की बात करते थे और जल्दी हाथ पीले करने की सलाह देते थे, लेकिन पिता ने समाज और रिश्तेदारों की सलाह को दरकिनार कर बेटियों का साथ और आजाद दी। बेटियों ने भी पिता के साथ का मान रखा और आज तीनों ही सफलता की ऊचांईयां छू रही हैं।

महिलाओं की मदद में भी आगे हैं तीनों बहनें
शिक्षित और कामयाब होने के बाद तीनों बहनें महिलाओं को प्रेरित करने और मदद करने में पीछे नहीं हटतीं। जब भी समय मिलता है। डॉ. बहनें गांव-देहात के क्षेत्रों में निकलकर वहां महिलाओं को निशुल्क मेडिकल सहायता देती हैं। कैंप लगाती हैं। प्रतियोगी परीक्षा और महिला शिक्षा के बारे में जागरूक करती हैं। अगर कोई गरीब या असहाय महिला उनके पास आ जाए, तो हर तरीके मदद भी करती हैं।

लोग बेटियों को देते हैं उदाहरण
गोरखपुर के लोग तीनों बहनों की सफलता की कहानी सुनाकर अपनी बेटियों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यहां तक की आसपास के स्कूलों में भी सिंह बहनों के बारे में छात्राओं को बताया जाता है।