गुरजीत कहती हैं, 'मुझे नहीं पता था कि यह खेल क्या है, लेकिन यह मजेदार लग रहा था।' कुछ ही दिनों में यही मजा जुनून में बदल गया। यह जुनून ही था कि उन्होंने जल्द ही स्कॉलरशिप हासिल कर ली। इसके बाद उनका रहना, खाना और पढ़ाई सब फ्री हो गया।
गुरजीत कौर के पिता सतनाम सिंह के लिए हॉकी नहीं बल्कि शिक्षा सबसे पहले थी। अपनी बेटियों (गुरजीत और प्रदीप) को अच्छी शिक्षा देने के लिए उन्होंने अपनी बेटियों को कैरॉन के बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया। यहीं पर वह हॉकी से परिचित हुई। वह बस कुछ नया करना चाहती थी और हॉकी खेलने लगीं। वह कहती हैं, 'मुझे नहीं पता था कि यह खेल क्या है, लेकिन यह मजेदार लग रहा था।' कुछ ही दिनों में यही मजा जुनून में बदल गया। यह जुनून ही था कि उन दोनों ने जल्द ही स्कॉलरशिप हासिल कर ली। इसके बाद उनका रहना, खाना और पढ़ाई सब फ्री हो गया। स्कॉलरशिप मिलने से घर वाले भी खुश हो गए। ग्राउंड पर भी वह कुछ हटकर करना चाहती थी। ऐसे में उन्होंने ड्रैग फ्लिक खेलने का ट्राई किया। वह वीडियो देख-देखकर सीखती थी और उसी को ग्राउंड पर कॉपी करने का कोशशि करती थी। लेकिन ड्रैग फ्लिक की मूल बातें और उसकी तकनीक के बारे में सीखने का मौका राष्ट्रीय शिविर में मिला। इसके बाद गुरजीत ने इसे अपना एक्स-फैक्टर बना लिया। आज वह भारतीय टीम में ड्रैग फ्लिकर की एकलौती शानदार खिलाड़ी है। उनकी प्रतिभा ही है जिसके दम पर अब वह टोक्यों ओलंपिक में खेलने जा रही भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा हैं। उनका सपना ओलंपिक में टीम को पदक दिलाना है। जिसके लिए वह दिन-रात कड़ी मेहनत कर रही हैं।
अपने करियर के टर्निंग प्वांट के बारे में गुरजीत कौर का कहना है कि फ्लिक करने की कला सीखना उनके करियर का 'टर्निंग प्वाइंट' रहा क्योंकि इससे उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने में सफलता हासिल हुई। 2018 में भारतीय टीम ने एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था, गुरजीत उस टीम का हिस्सा था। उन्होंने पिछले साल महिला एफआईएच सीरीज फाइनल्स में भारत के विजय अभियान में सर्वाधिक गोल किए थे।
आज की हॉकी बहुत तेज हो गई है और ड्रैग फ्लिक उसका बहुत ही अहम हिस्सा बन गया है। इसमें मेहनत भी बहुत लगती है। वह गेंद को स्कूप करते हुए फ्लिक करके 130 किलो मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दिशा देती हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों के पास 3 से 4 ड्रैग फ्लिक खेलने वाले खिलाड़ी हैं। लेकिन महिलाओं की भारतीय हॉकी टीम के अंदर गुरजीत कौर लंबे समय से अकेली योद्धा हैं जो इस जिम्मेदारी को निभा रही हैं।
गुरजीता को शुरुआती दिनों में ड्रैग फ्लिक के बारे में बहुत अधिक नहीं जानकारी नहीं थी। वह स्कूल और कॉलेज के दिनों में वीडियो देख-देखकर उसी की नकल करने की कोशिश करती रहती थी। लेकिन राष्ट्रीय शिविर से जुड़ने के बाद उन्हें मूल बातें, तकनीकें सीखने का मौका मिला। गुरजीत पहले हल्की हॉकी से खेलती थीं जिसकी वजह से ड्रैग फ्लिक में कम पॉवर जनरेट हो पाती थी। तब कोच ने उन्हें भारी हॉकी से खेलने की सलाह दी। उनको ड्रैग फ्लिक सिखाने में कोच टून सीपमैन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने ही इस तकनीक के बारे में विस्तार से सिखाया। जैसे खड़े होने के तरीका या उनका फुटवर्क या फ्लिक करने से पहले जिस तरह से वह अपनी कमर को मोड़ती थी... उन्होंने बस उसमें थोड़े बदलाव करने को कहा और परिणाम पूरी तरह बदल गए।
गुरजीत कौर को देश के लिए खेलने का पहला मौका 2014 में सीनियर नेशनल कैंप मिला था। हालांकि, वह टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पायीं। यह केवल एकमात्र महिला खिलाड़ी है जो 2017 में भारतीय महिला हॉकी टीम की स्थायी सदस्य बनीं। उन्होंने मार्च 2017 में कनाडा में टेस्ट सीरीज भी खेली, अप्रैल 2017 में हॉकी वर्ल्ड लीग राउंड 2 और जुलाई 2017 में हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में भी टीम का हिस्सा रहीं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.