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दसवीं फेल होने के बावजूद बनीं सौर इंजीनियर, गांवों को कर रहीं रोशन

Published - Tue 08, Dec 2020

विज्ञान में उच्च शिक्षा हासिल करने की चाहत रखने वाली लद्दाख की रहने वाली गुरमेट दसवीं में फेल हो गईं। इसके बाद उनकी पढ़ाई छूट गई लेकिन उन्होंने इंजीनियर बनने का सपना नहीं छोड़ा। जब उन्हें मौका मिला तो वह सौर इंजीनियर बन गईं। अब वह अपने गांव के अलावा अन्य गांवों को भी रोशन कर रही हैं।

नई दिल्ली। गुरमेट अंग्मो लद्दाख की रहने वाली हैं। बचपन में उनका पूरा दिन सूरज की रोशनी के साथ ही शुरू और खत्म होता था। बचपन में एक बार जब वह लेह गई, तब पहली बार बिजली का बल्ब देखा। गुरमेट की मानें तो मैं हमेशा सोचती थी कि बड़ी होकर अपने गांव में फैला अंधेरा दूर करने का प्रयास करूंगी, पर घर के आसपास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना कठिन था। इसलिए मैं बेहतर शिक्षा के लिए लेह चली गई। वहां मैं दसवीं की परीक्षा में विफल हो गई और इसके साथ ही मेरा उच्च शिक्षा का सपना भी टूट गया। मैं विज्ञान में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहती थी, पर मैट्रिक में विफलता के बाद पढ़ाई जारी न रख सकी। इसके बाद मैं पर्यटन क्षेत्र में रोजगार के विकल्प खोजने लगी। इस बीच, मेरी शादी हुई। मेरे एक भाई ग्लोबल हिमालयन एक्सपेडिशन (जीएचई) में काम करते थे। उन्होंने मुझे छह महीने के सौर इंजीनियरिंग प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में हिस्सा लेने का सुझाव दिया। मैंने प्रवेश लेकर ऑफ-ग्रिड प्रशिक्षण पूरा किया और गांवों में सौर ऊर्जा प्रणालियों का निर्माण, स्थापना, रख-रखाव और मरम्मत करना सीखा। इसके बाद मैंने जीएचई के सहयोग से अपने गांव, घर के पास सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए, जिससे वहां का अंधेरा मिट सका। कुछ प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद लोग मेरे काम को प्रोत्साहित करने लगे  और यही मेरी आजीविका का भी आधार बन गया।

मिला प्रोत्साहन

छह महीने का कोर्स पूरा कर लद्दाख लौटने के बाद मैंने पहले सुमदा चुन मठ का विद्युतीकरण किया। इसके बाद लिंगशेड गांव का विद्युतीकरण किया। हमने गांव के करीब सौ परिवारों को पहली बार बल्ब की रोशनी दी। लोगों ने खुशी जाहिर करते हुए हमें अच्छी प्रतिक्रिया दी। इससे मुझे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिला।

महिलाओं को प्रेरणा मिली

लद्दाख में हमारे काम के बारे में पता चलने के बाद हमें मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स के गांवों में सौर विद्युतीकरण करने का मौका मिला। हमने वहां चार गांवों का विद्युतीकरण करने के साथ महिलाओं को प्रशिक्षित भी किया। मैंने उन्हें अन्य गांवों में ऐसी पहल करने के लिए प्रेरित किया।

आत्मनिर्भरता का एहसास

अब मैं बतौर सौर इंजीनियर लद्दाख में काम कर रही हूं। जीएचई ने मुझे अच्छा भुगतान किया है। मैंने अपनी कमाई से एक घर बनाया है, साथ ही सोलर लाइट की एक दुकान भी खोली है। इससे मुझे आत्मनिर्भर होने का एहसास हुआ है। वे मुझे जितने दिन काम देते हैं, उसके आधार पर भुगतान करते हैं।