'आग में तपकर ही सोना खरा होता है।' यह बात एकदम सटीक बैठती है यूपी कैडर की आईएएस किंजल सिंह पर। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म की तरह है। किंजल ने अपने पुलिस अफसर पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बचपन से जवानी तक न केवल हर कदम पर मां का साथ दिया, बल्कि जिला एवं सत्र न्यायालय से लेकर सीबीआई कोर्ट तक लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ीं। मां का सपना पूरा करने के लिए वह खुद तो यूपीएससी की परीक्षा क्लीयर कर आईएएस बनीं ही, छोटी बहन को भी पढ़ा-लिखाकर आईआरएस बनाया। आईएएस बनने के बाद भी पिता के हत्यारे पुलिस कर्मियों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष करती रहीं और उन्हें उनके मुकाम तक पहुंचा कर ही दम लिया। आइए जानते हैं आईएएस किंजल सिंह के सफर के बारे में...
नई दिल्ली। आईएएस किंजल सिंह का जन्म 5 जनवरी 1982 को यूपी के बलिया में हुआ था। इनके पिता केपी सिंह यूपी पुलिस में डिप्टी एसपी थे। केपी सिंह तेज-तर्रार पुलिस अफसर थे। किंजल जब महज छह महीने की थीं तभी एक ऐसी घटना घटी जिससे उनकी और उनके परिवार की जिंदगी बदल गई। यह घटना 12 मार्च 1982 की है। उस समय किंजल के पिता केपी सिंह गोंडा जिले में तैनात थे। उन्हें एक गांव में कुछ अपराधियों के छिपे होने की सूचना मिली। उन्होंने पुलिस टीम के साथ गांव में घेराबंदी की। दोनों ओर से गोलियां चलीं। गोलीबारी में किंजल के पिता डीएसपी केपी सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। वह अस्पताल पहुंच पाते इससे पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया। बाद में खुलासा हुआ कि केपी सिंह के अधीनस्थों की अपराधियों से साठगांठ थी। इस कारण मुठभेड़ के दौरान उनके साथ रहे पुलिसकर्मियों ने ही उन्हें गोली मार दी थी। पोस्टमार्टम में भी ऐसे ही सुबूत मिलने के बाद इस मामले को सीबीआई (CBI) को ट्रांसफर कर दिया गया।
पिता की मौत के समय गर्भवती थीं किंजल की मां
पिता की मौत के समय किंजल की मां विभा सिंह गर्भवती थीं। उन्होंने 6 माह बाद एक और बेटी को जन्म दिया। जिसका नाम प्रांजल रखा गया। पिता की मौत के बाद किंजल के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। सरकार ने डीएसपी केपी सिंह की मौत के बाद उनकी पत्नी विभा सिंह को वाराणसी के ट्रेजरी ऑफिस में नौकरी दे दी। विभा भी पति की तरह बेहद साहसी और निर्भीक थीं। उन्होंने पति के हत्यारों को उनके मुकाम तक पहुंचाने की ठान ली थी। वह किंजल और प्रांजल को गोद में लेकर बलिया से सीबीआई कोर्ट दिल्ली का सफर तय करती थीं।
बेटियों को आईएएस बनाने की बात कहने पर मां पर हंसते थे लोग
विभा सिंह जब लोगों से कहती थीं कि वे अपनी दोनों बेटियों को आईएएस बनाएंगी तो लोग उन पर हंसते थे। विभा सिंह के वेतन का बड़ा हिस्सा उस मुकदमे की फीस और अन्य खर्च में चला जाता था जिसे जीतना उनकी जिंदगी का मकसद बन चुका था। धीरे-धीरे किंजल और प्रांजल दोनों बहनें बड़ी हुईं। शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद किंजल ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन मुसीबतों और बदकिश्मती ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा। किंजल जब ग्रेजुएशन के पहले सेमेस्टर में थीं तभी पता चला कि उनकी मां को कैंसर हो गया है। मां की बीमारी का पता लगने से किंजल पूरी तरह टूट गईं, लेकिन उनकी मां ने हौसले का दामन नहीं छोड़ा। वह बीमारी से लड़ने के साथ ही बेटियों के भविष्य और पति के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष करती रहीं।
किंजल ने मां से वादा किया, खुद भी बनेंगी अफसर और बहन को भी बनाएंगी
समय बीतने के साथ विभा सिंह की तबीयत और खराब होने लगी। किंजल ने जब देखा कि उनकी मां की तबीयत तेजी से बिगड़ रही है, तो उन्होंने उनसे वादा किया कि वह खुद तो प्रशासनिक अफसर बनेंगी ही, बहन को भी पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बनाएंगी। किंजल के इस वादे से उनकी मां को काफी सुकून मिला। इसके कुछ समय बाद ही वह कोमा में चली गईं और साल 2004 में उन्होंने दम तोड़ दिया।
छोटी बहन के लिए पिता और मां दोनों का फर्ज निभाया
मां की मौत के बाद छोटी बहन प्रांजल की पूरी जिम्मेदारी किंजल के कंधों पर आ गई। लेकिन किंजल ने हार नहीं मानी। मां की मौत के दो दिन बाद ही उन्हें दिल्ली लौटना पड़ा। उसी साल किंजल सिंह ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। इसके बाद किंजल ने छोटी बहन प्रांजल को भी दिल्ली बुला लिया। दोनों बहनें मुखर्जी नगर में किराए के फ्लैट में अपने माता-पिता का सपना पूरा करने में जुट गईं। अब इनके जीवन का एक ही ध्येय था, किसी भी तरह आईएएस बनना। दोनों बहनों ने अकेलेपन को अपनी कमजोरी की बजाय ताकत बनाया। दोनों बहनें 18-18 घंटे पढ़ती थीं। जब कभी इनका ध्यान भटकने लगता वे अपने माता-पिता और उनके सपने को याद कर दोगुने उत्साह से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने लगतीं।
साल 2008 में ही दोनों बहनों को मिली सफलता
साल 2008 में दूसरे प्रयास में किंजल यूपीएससी क्लीयर कर आईएएस (IAS) के लिए सिलेक्ट हो गईं। इसी साल उनकी छोटी बहन प्रांजल भी आईआरएस (IRS) के लिए सिलेक्ट हुईं। दोनों बहनों ने अपने माता-पिता का सपना पूरा कर दिया था। अब समय था उस सपने को पूरा करने का जो उनकी मां ने देखा था। पिता के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए दोनों बहनें जी-जान से जुट गईं। किंजल ने मजबूती से सीबीआई कोर्ट में पिता की हत्या का मुकदमा लड़ा और उसमें उनकी जीत हुई।
पांच जून 2013 को पिता को मिला न्याय
पांच जून 2013 को लखनऊ सीबीआई की विशेष कोर्ट ने डीएसपी केपी सिंह की हत्या में 18 पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए सजा सुनाई। उस समय किंजल सिंह बहराइच की डीएम थीं। लड़ाई के बाद आए इस फैसले को सुनने के बाद दोनों बहनों की आंखें भर आईं। लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि वे अपने माता-पिता के सपने के साथ मां की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने में सफल रहीं। आईएएस किंजल की गिनती यूपी के तेज-तर्रार आईएएस अफसरों में होती है। वह अपनी कार्यप्रणाली को लेकर अक्सर सुर्खियों में बनी रहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.