अगर हौसले बुलंद हों तो किसी भी मंजिल को हासिल करना मुश्किल नहीं होती। यह बात एकदम सटीक बैठती है पद्मिनी नारायण पर। पद्मिनी प्रेग्नेंट होने के बावजूद अपनी फुल टाइम सरकारी नौकरी करती रहीं। दिनभर की भाग-दौड़ और शारीरिक-मानसिक थकान के बावजूद उन्होंने आईएएस बनने के अपने सपने से समझौता नहीं किया। वह सुबह ड्यूटी पर जाने से पहले और रात में घर का काम निपटाने के बाद जो समय बचता उसमें तैयारी करतीं। इसमें परिवार ने भी उनका साथ दिया। प्रेग्नेंसी के कारण कई शारीरिक बाधाएं भी आईं, लेकिन उन्होंने न तो तैयारी छोड़ी न ही उम्मीद का दामन छोड़ा। आखिरकार पद्मिनी की मेहनत रंग लाई और यूपीएससी में 152वीं रैंक हासिल कर आईएएस बन गईं। आइए जानते हैं इस बहादुर महिला के बारे में...
नई दिल्ली। द्वारका सेक्टर 13 स्थित गुलिस्तां अपार्टमेंट में पति व सास- ससुर के साथ रहने वाली पद्मिनी की शादी को चार वर्ष बीत चुके हैं। अभी ये केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय में अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। इनकी सास सुदेश सहरावत दक्षिणी दिल्ली नगर निगम प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य हैं। वहीं, ससुर प्रेम सिंह सहरावत शारीरिक शिक्षा में व्याख्याता के पद से सेवानिवृत्त हैं। पद्मिनी के पति नवीन सहरावत रियल एस्टेट कारोबारी हैं। परीक्षा से जुड़ी तैयारी के बारे में पद्मिनी बताती हैं कि पहले दो प्रयास के दौरान इन्होंने दूसरों की सलाह को काफी महत्व दिया। मैंने वैकल्पिक विषय के तौर पर कॉमर्स एंड अकाउंटेंसी रखा। कोचिग संस्थान का भी सहारा लिया, लेकिन कड़ी मेहनत के बावजूद न तो संतुष्टि मिलती थी और न ही सफलता हासिल हुई। तब रणनीति बदलते हुए चुनिंदा किताबों पर अपना ध्यान लगाया। अब भटकाव के बीच कई कई घंटे पढ़ाई के बजाय इन्होंने सीमित घंटे, लेकिन गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई पर ध्यान दिया। कार्यालय से लौटने के बाद रोजाना करीब चार घंटे पढ़ाई करती थीं। पढ़ाई में निरंतरता बनी रहे इसका पूरा ख्याल रखती थीं।
पहले दो प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा भी नहीं कर सकीं पास
पद्मिनी पिछले कई सालों से यूपीएससी की तैयारी कर रही थीं। पहले दो प्रयास में वह सिविल सर्विसेज परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा भी नहीं पास कर पाईं, लेकिन हताश नहीं हुईं। तीसरे साल तैयारी के दौरान उन्होंने पढ़ाई के तरीके को बदला और अपने मजबूत इरादे के दम पर 152वां स्थान प्राप्त किया है। इस सफलता का श्रेय ये अपने स्वजनों के साथ अपनी उस नन्हीं बेटी को देती हैं जिन्हें इन्होंने तीन महीने पहले ही जन्म दिया है। एक ओर गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य से जुड़े सरोकार, दूसरी ओर सरकारी नौकरी वहीं, तीसरी ओर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी, इन तीनों के बीच बेहतरीन सामंजस्य स्थापित कर इन्हें मिली यह सफलता कई मामलों में दूसरों के लिए प्रेरणादायी है।
थकान होने पर पति पढ़ते थे किताब
पद्मिनी के मुताबिक परीक्षा की तैयारी के दौरान परिवार का भरपूर सहयोग मिला। वह बताती हैं कि गर्भावस्था के कारण कुछ समस्याएं भी आईं। लगातार किताब पढ़ने में जब मुझे दिक्कत होती थी तब मेरे पति मुझे किताब पढ़कर सुनाते थे। यदि कोई पंक्ति मैं ठीक से सुन नहीं पाती थी तो वे इसे दोबारा पढ़कर सुनाते थे। प्रारंभिक परीक्षा से लेकर मुख्य परीक्षा और फिर साक्षात्कार तक की अवधि के दौरान घर के सदस्य हमेशा मुझे बेहतर करने को प्रेरित करते थे। मेरे उपर किसी प्रकार का कोई बोझ नहीं था।
टाइम मैनेजमेंट ने सफलता में निभाई अहम भूमिका
पद्मिनी ने हर विषय की तैयारी के लिए बस एक किताब रखीं थीं। जब तैयारी पूरी हो गई तो मॉक टेस्ट दिए और आंसर राइटिंग की प्रैक्टिस भी की। उनके मुताबिक प्री के लिए मॉक टेस्ट्स और रिवीजन बहुत जरूरी हैं। पद्मिनी के मुताबिक उन्हें जब भी समय मिलता था वह उस समय का उपयोग पढ़ाई के लिए करती थीं। ऑफिस जाते हुए, ब्रेक में वो जी लगाकर पढ़ा करती थीं। करेंट अफेयर्स के लिए रास्ते में न्यूज पेपर पढ़ा करती थीं ।
सुबह 9 बजे ही पहुंच जाती थीं लाइब्रेरी
पद्मिनी ने बताया कि वो सुबह 9 बजे तक लाइब्रेरी चली जाती थीं, ताकि उन्हें कोई डिस्टर्ब ना करे। प्रेग्नेंट होने की वजह से उन्हें अपनी सेहत का भी बहुत ख्याल रखना पड़ता था। वॉक के साथ, वो अपने खाने-पीने का भी खास ख्याल रखती थीं। पद्मिनी के मुताबिक परीक्षा पास करने के लिए फिजिकली फिट होने के साथ मेंटली फिट होना भी बहुत जरूरी हैं। इसके मुताबिक अगर आप त्याग और मेहनत करने को तैयार हैं, तो कोई आपको सफल होने से नहीं रोक सकता। बस जरूरत है तो कड़ी मेहनत की।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.