9 वर्ष की उम्र में शादी, 14 वर्ष की उम्र में आनंदीबाई जोशी बन गईं थी मां, जन्म के महज 10 दिन बाद ही बच्चे की मौत ने उन्हें पूरी तरह से हिला दिया। अमेरिका में पढ़कर 21 साल की उम्र में बनी डॉक्टर
नई दिल्ली। जिस समय भारत अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उस दौरान महिला शिक्षा की स्थिति कैसी रही होगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। लेकिन उसी दौर में आनंदीबाई जोशी ने देश की पहली महिला डॉक्टर बनकर न सिर्फ महिला शिक्षा को बढ़ावा देने का संदेश दिया था, बल्कि आज भी उनका संघर्ष याद किया जाता है। आनंदीबाई का जन्म 31 मार्च 1865 में पुणे में हुआ था। महज 9 वर्ष की उम्र में उनका विवाह उनसे उम्र में करीब 20 साल बड़े गोपालराव से कर दिया गया था। आनंदीबाई 14 वर्ष की उम्र में मां बनीं, लेकिन उनका बच्चा सिर्फ 10 दिन ही जी सका। इस घटना ने आनंदीबाई को झकझोर दिया था। वे इस सदमें से उबरी जरूर लेकिन एक नई दिशा को साथ लेकर। उन्होंने उसी समय सोच लिया कि वे एक डॉक्टर बनेंगी और लोगों को बेहतर उपचार देंगी ताकि किसी की मौत न हो। आनंदीबेन के इस सपने को पूरा करने में उनके पति गोपालराव ने भी पूरा साथ दिया।
आलोचनाओं की परवाह किए बिना आगे बढ़ीं
आनंदीबाई जोशी अपने प्रण को पूरा करने के लिए अड़िग थीं। उस दौर में महिला शिक्षा के साथ ही महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां थीं। आनंदीबाई को लेकर कई तरह की बातें हुईं और उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उन आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए आनंदीबाई आगे बढ़ती गईं। एक शादीशुदा हिंदू स्त्री होते हुए उन्होंने अमेरिका के पेनिसिल्वेनिया जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की। 1886 में 21 साल की उम्र में आनंदीबाई ने एमडी की डिग्री पाने के साथ पहली भारतीय महिला डॉक्टर बन मिसाल कायम की। विदेश से लौटने के बाद आनंदीबाई अपने सपने को आगे नहीं जी सकीं। आनंदीबाई देश वापस लौटीं लेकिन उन्हें टीबी की बीमारी ने जकड़ लिया। इसके बाद उनकी सेहत में सुधार नहीं हो पाया और 26 फरवरी 1887 में महज 22 साल की उम्र में आनंदीबाई का निधन हो गया। उनके जीवन पर कैरोलिन वेलस ने 1888 में बायोग्राफी लिखी। इस पर एक सीरियल बना जिसका नाम था 'आनंदी गोपाल', जिसका प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया। 31 मार्च 2018 को, गूगल ने उनकी 153वीं जयंती के उपलक्ष्य में उन्हें गूगल डूडल के साथ सम्मानित किया। वर्ष 2019 में मराठी में उनके जीवन पर एक फिल्म आनंदी गोपाल नाम से बनाई गई।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.