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देश की पहली महिला लेफ्टिनेंट जनरल और नेवी की पहली महिला वाइस एडमिरल हैं पुनीता

Published - Fri 07, Jun 2019

विभाजन के समय महज एक ​गिलास और कंबल के साथ भारत आया था सिख परिवार, देश की सेवा में लगी पुनीता अरोड़ा

नई दिल्ली। देश की सेवा करने वाले सेना के जवानों के युद्ध के दौरान के किस्से सुनकर हर किसी की भुजाएं फड़कने लगती हैं। खुद को भी वह किसी सैनिक से कम नहीं समझता और  मातृभूमि की रक्षा के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार तक कर लेता है। देश की सेवा में लगे सैनिकों में पुरुषों का जितना योगदान है, उतना ही महिलाओं का भी है। आज सेना की वजह से ही हमारा देश सुरक्षित है और हम चैन की नींद सो पा रहे हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इंडियन आर्मी का मतलब या फौज की किसी भी विंग का मतलब कि सिर्फ पुरुष ही है, इसमें देश की महिलाओं का भी उतना ही योगदान है। सालों पहले भारतीय महिलाओं ने भी सेना में शामिल होने की रुचि दिखा दी थी। इनमें से एक पुनीता अरोड़ा ने देश की पहली महिला लेफ्टिनेंट जनरल और नेवी की पहली महिला वाइस एडमिरल बनने का का गौरव प्राप्त किया।

12 साल की उम्र में देखा था विभाजन
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय पुनीता अरोड़ा महज 12 साल की थी। यह परिवार पाकिस्तान के लाहौर से भारत आया था और उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में बस गया। विभाजन के बंटवारे में परिवार को सिर्फ एक गिलास और कंबल के साथ पाकिस्तान से भारत आना पड़ा। पुनीता ने सहारनपुर के सोफिया स्कूल में 8वीं तक पढ़ाई की। इसके बाद वर्ष 1963 में पुणे के आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। उस दौरान एएफएमसी का दूसरा बैच था। पुनीता ने भी मन लगाकर पढ़ाई की और टॉपर रही। पुनीता बताती हैं कि हालात बहुत अलग थे। घर में संयुक्त परिवार था। जो जितना भी कमाकर खाने पीने का इंतजाम करता, उसे पूरे परिवार के बीच खर्चे के लिए बराबर-बराबर बांटा जाता। इससे मुझे तभी से बहुत कुछ सीखने को मिला। आर्मी में आने के बाद भी मुझे इसका बहुत फायदा मिला। परिवार ने मेहनत करके खुद को फिर से खड़ा किया था।

डॉक्टर बनने का सपना पूरा कर सेना में हुई भर्ती
पुनीता का सपना डॉक्टर बनने का था। पिता ने भी उसका सपना पूरा करने में सहयोग किया, लेकिन वर्ष 1960 के आसपास मेडिकल कॉलेज में लड़कियों का एडमिशन होना आसान नहीं था। मेडिकल कॉलेज वाले लड़कियों को आसानी से नहीं लेना चाहते थे। उन्होंने सहारनपुर के मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने का प्रयास किया तो वहां से जवाब मिला कि वे सिर्फ लड़कों को ही एडमिशन दे सकते हैं। पुनीता काफी घूमी, पर हर जगह से मना ही मिला। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आखिर कॉलेज ने यह कह दिया कि तीन और लड़कियों को लेकर आओ तो एडमिशन दे सकते हैं। पुनीता ने यह कर दिया और उन्हें भी एडमिशन मिल गया। यहां से एमबीबीएस पूरा करने के बाद उन्होंने आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया और इसके बाद वे आर्मी में ऑफिसर बन गईं। इसी कॉलेज में उन्हें पढ़ाने का काम भी मिल गया।

राष्ट्रपति ने दिया विशिष्ट सेवा मेडल
कॉलेज में पढ़ाने के बाद उनकी पोस्टिंग कानपुर के पास फतेहगढ़ में हो गई। बताया जाता है कि उस दौरान वह इलाका डाकुओं का हुआ करता था, लेकिन पुनीता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ वहां पर लोगों की सेवा की। यहां से जम्मू कश्मीर भेजा गया। यहां एक बार सेना की बस पर हमला हो गया था। उस दौरान घायलों के इलाज में लगी रहीं। इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति की ओर से विशिष्ट सेवा मेडल दिया गया। पुनीता ने अपनी ड्यूटी का काफी वक्त पंजाब में भी गुजारा। घर में इनका बेटा भी डॉक्टर है। इनके पति भी आर्मी से ब्रिगेडियर की पोस्ट से रिटायर हुए। वो भी डॉक्टर ही थे। इनकी बेटी भी आर्मी में डॉक्टर हैं।

36 साल की सेवा में मिले 15 पदक

पुनीता अरोड़ा को अपनी 36 साल की सेवा में 15 पदक मिले। आर्म्ड फोर्सेस के अस्पतालों में इन्होंने ही महिलाओं के लिए स्पेशल गायनी-एंडोस्कोपी जैसी सुविधाएं शुरू करवाई थी। जिसके लिए इन्हें सेना मेडल दिया गया था।