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समाज ने मुंह मोड़ा पर मैंने कथक से नाता नहीं तोड़ा : इला

Published - Sun 09, Jun 2019

अमर उजाला के अपराजिता अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम में बोलीं प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना इला पंत

रेनू सकलानी

देहरादून। एक दौर में जहां नृत्य को समाज में खास तवज्जो नहीं दी जाती थी, वहीं आज बेटियां इसे अपने कॅरिअर के रूप में चुन रही हैं। हालांकि आज भी कई परिवार ऐसे हैं, जहां बेटियों को नृत्य सीखने या करने की आजादी नहीं है। मैंने भी अपने इस शौक को सालों तक दबाए रखा, लेकिन नृत्य के प्रति मेरा जुनून अधिक समय तक मुझे रोक नहीं पाया और एक समय ऐसा आया जब मैंने कथक नृत्यांगना के रूप में अपनी पहचान बनाई। उक्त बातें अमर उजाला अपराजिता अभियान के तहत आयोजित नृत्य कार्यशाला में प्रसिद्ध नृत्यांगना इला पंत ने कही। सुपरहिट फिल्म देवदास में अपने नृत्य से सभी की नजरों में आई इला ने उसके बाद जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मूल रूप से ऋषिकेश निवासी सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना इला पंत ने कथक के प्रति अपने जुनून व सामने आई चुनौतियों से जुड़े अनुभव साझा किए। चार बहनों में सबसे छोटी इला के लिए कथक नृत्य शुरू करने से लेकर कथक नृत्यांगना के रूप में अपनी पहचान बनाना आसान नहीं था। सात साल की उम्र में इला के मन में कथक सीखने की इच्छा हुई। परिवार में इस संबंध में बात भी कि, लेकिन पिता नहीं माने। बहनों ने भी इसके लिए हामी नहीं भरी। इसी बीच इला के सिर से मां का साया भी उठ गया। तब इला कक्षा सात में पढ़ रही थी। ऐसे में इला का कथक सीखने का शौक बचपन में ही दब गया, लेकिन फिर सालों बाद ग्रेजुएशन के दौरान इला ने फिर कथक सीखने की ठानी, लेकिन इस बार इला के पांव रुकने वाले नहीं थे। उन्होंने अपने पिता से बात की और इस बार पिता के साथ ही उन्हें अपनी बहनों का भी सहयोग मिला। दरअसल, इला के पिता शिक्षक थे और माता शिक्षिका। जबकि बहनें भी माता-पिता की ही राह चली और अध्यापन के क्षेत्र में कॅरिअर बनाया, लेकिन इला को तो कुछ और ही करना था। जिद करके इला दिल्ली पहुंची और श्रीराम भारतीय कला केंद्र में एडमिशन लिया।

देवदास से आया जिंदगी में नया मोड़
इला
की जिंदगी में नया मोड़ तब आया जब उन्हें सुपरहिट फिल्म देवदास के ऑडिशन के लिए बुलाया गया, लेकिन यहां भी इला के सामने चुनौती थी। पिता ने ऑडिशन के लिए मुंबई जाने से साफ इनकार कर दिया। इला की गुरु के मनाने के बाद इला के पिता मान गए। मुंबई ऑडिशन इला के लिए शानदार रहा। फिल्म में चयन के बाद इला ने फिर कई बड़े प्लेटफॉर्म अपना नाम दर्ज किया। आज वह कथक नृत्यांगना के रूप में अपनी एक अलग पहचान रखती है। बतौर इला, एक वक्त में उन्हें कथक सीखने के लिए घर परिवार में सभी को मनाना पड़ा, समाज की सोच से लड़ना पड़ा और आज भी उनके पास सीखने के लिए आने वाली कई बेटियां उन्हीं की तरह विषम परिस्थितियों में भी कथक सीखने के अपने शौक को जीवित रखे हुए हैं। इला कहती है कि कथक से प्यारा कोई नृत्य नहीं है। यह तो स्वयं भगवान को समर्पित है। इला के पास वर्तमान में लगभग 60 बच्चे हैं, जिन्हें वह कथक का प्रशिक्षण दे रही हैं। कहती हैं कि कई बार नृत्य को शौक के तौर पर करने के लिए परिवार से इजाजत तो मिल जाती है, लेकिन जब इसी क्षेत्र में कॅ​रिअर बनाने की बात आए तो न परिजन और न समाज इसकी स्वीकृति देता है। आज यह नृत्य कॅरिअर का भी एक बेहतर जरिया है। इसलिए माता-पिता बच्चे की ख्वाहिश को न दबाएं। उसे सहयोग करें।

जिंदगी के खूबसूरत सफर में मिला पति-बहन व गुरुओं का साथ
इला पंत कहती हैं कि उतार-चढ़ाव के साथ ही जिंदगी का अब तक का सफर बेहद खूबसूरत रहा है और इस सफर में उन्हें अपनी बहन मंजला मिश्रा, पति अमित कुमार यादव व गुरु रानी खानम जी का साथ मिला। मां के जाने बाद पिता का भी प्यार मेरे लिए और ज्यादा बढ़ गया। इला कहती हैं कि यदि विषम परिस्थितियों में अपनों का प्यार व सहयोग मिले तो राह आसान हो जाती है।