वंदना के परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। कई बार हालात इतने खराब हो जाते थे कि बाहर ट्रेनिंग करने के लिए उनके पास पैसे ही नहीं होते थे। ऐसे में उनके पापा किसी तरह से उधार पैसे लेकर बेटी को देते थे। तकि उसकी ट्रेनिंग में कोई बाधा न आए। वंदना ने भी निराश नहीं किया।
वंदना कटारिया ने अपने खेल करियर की शुरुआत खो-खो से की थी। लेकिन एक दिन कोच ने मजाक-मजाक में कहा कि तुम्हे हॉकी खेलनी चाहिए। चूंकि वंदना दौड़ती अच्छा थी इसलिए जब हॉकी पकड़ी तो फिर हॉकी को ही अपना करयिर बना लिया। हालांकि घर में कोई नहीं चाहता था कि वह खेल-कूद में आएं और घर से बाहर जाएं। लेकिन उनके पापा ने हमेशा बेटी का सपोर्ट किया। जब वंदना के पापा बेटी का दाखिला लखनऊ स्पोर्ट्स हॉस्टल में कराने आए थे तब यह बात उनकी मां को भी पता नहीं थी। उनके पापा ने कहा कि तुम सिर्फ खेल पर ध्यान दो बाकी मैं संभाल लूंगा। वंदना के परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। कई बार हालात इतने खराब हो जाते थे कि बाहर ट्रेनिंग करने के लिए उनके पास पैसे ही नहीं होते थे। ऐसे में उनके पापा किसी तरह से उधार पैसे लेकर बेटी को देते थे। तकि उसकी ट्रेनिंग में कोई बाधा न आए। वंदना ने भी निराश नहीं किया। दिन-रात मेहनत करके हॉकी की दुनिया में खूब नाम कमाया। वह रियो ओलंपिक में भी टीम का हिस्सा थी और अब टोक्यो ओलंपिक में खेलने जा रही हैं।
वंदना का जन्म उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) में 1992 में हुआ था। उसके पिता नाहर सिंह भेल में नौकरी करते हैं। वंदना ने साल 2005 में यूपी के लिए खेलना शुरू किया। उसके एक साल बाद ही उनका चयन जूनियर टीम में हो गया। 4 साल बाद सीनियर टीम में उनका चयन हुआ। महज 18 साल की उम्र में उनकी प्रतिभा ने चयनकर्ताओं को आकर्षित किया।
वंदना कहती हैं, 'शुरू में जब मैंने हॉकी खेलना शुरू किया तो बहुत जोश था। डर बिल्कुल नहीं था। मैं बस गोल करने के लिए ही मैदान पर उतरी थी। लेकिन बाद में अहसास हुआ कि रणनीति के साथ खेलना बहुत जरूरी है।' साल 2013 में जर्मनी में हुए जूनियर विश्व कप में भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीता। इस टीम का हिस्सा वंदना भी थीं। हॉकी के इस महाकुंभ में उन्होंने चार मैचों में सबसे अधिक पांच गोल दागे थे। इस उपलब्धि को वह अपने करियर का सबसे महत्वपूर्ण पल मानती हैं।
यह वो पल था जब उनके पिता को अपने बेटी पर गर्व था। मीडिया के सामने उनके पिता की आंखों में खुशी के आंसू थे। वह कहती हैं, 'मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती। सच कहूं तो पिता को गर्व महसूस कराना मेरे हॉकी करियर के सबसे अमूल्य पलों में से एक है।'
बड़े होकर देश के लिए खेलना ही वंदना का सपना था। वह देश का नेतृत्व खेलों के महाकुंभ ओलंपिका तक में कर चुकी हैं। अब उनका लक्ष्य ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना ही है। वंदना 13 साल से देश के लिए खेल रही हैं और अब वह अपना अनुभव भी टीम के साथ बांटती है।
वंदना ने अभी तक देश के लिए कुल 218 मुकाबले खेले है। जिसमें 58 गोल किए हैं। भारतीय टीम को एशियन गेम्स वर्ष 2014 में रजत और 2018 में कांस्य पदक जिताने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके अलावा वर्ष 2017 के एशिया कप में टीम चैंपियन बनी उस टीम का भी वह हिस्सा थीं। वंदना को साल 2014 में सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी चुना गया। इस साल वंदना 11 गोल के साथ शीर्ष स्कोरर थीं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.