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'गाना' गायन के जरिये इसाइवानी ने पुरुषों के क्षेत्र में दखल दिया

Published - Sat 19, Dec 2020

इसाइवानी का बचपन से ही संगीत से जुड़ाव हो गया था। उनके पिता ने उन्हें सिखाया। जब उन्होंने श्रमिक वर्ग में मशहूर 'गाना' का गायन शुरू किया, तो कई बाधाएं सामने आईं। पर इसाइवानी ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अंतत: लोगों ने उन्हें सुनना शुरू किया।

isaivani

चेन्नई की रहने वाली इसाइवानी ने 'गाना' गायन के जरिए पुरुषों के क्षेत्र में दखल दिया है। 'गाना' चेन्नई के श्रमिक वर्ग की विशेष संगीत शैली है। वहां पर इस गायन शैली को सिर्फ पुरुष ही मंच पर गा सकते हैं। लेकिन इसाइवानी ने अपनी मेहनत के दम पर 'गाना' गायन के क्षेत्र में अपनी अच्छी खासी पहचान बना ली है। 
इसाइवानी अपने पिता को प्रेरणाश्रोत मानती है। उनके पिता खुद से संगीत साधना कर संगीतकार बने। वह की-बोर्ड बजाते हैं और गायन करते हैं। उन्होंने बहुत सारे लाइट म्यूजिक शो किए हैं। इसाइवानी बचपन से ही उनसे प्रभावित थी। उन्होंने छह-सात साल की उम्र में गायन की शुरुआत भी कर दी थी। पापा को भी उनसे काफी उम्मीदें थीं, पर उन्हें वह मौका नहीं मिल पा रहा था जिसके इसाइवानी सपने देख रही थी। करीब चार साल पहले जब इसाइवानी ने 'गाना' गायन शुरू किया, तो इस शैली पर मोहित हो गई। इसका गायन करने वाले कई लोगों ने तुरंत उनसे पूछा कि वह ‘गाना’ गायन कैसे कर सकती हैं, क्योंकि केवल पुरुष ही इसे मंच पर गा सकते थे। पर इसाइवानी ने उन्हें किसी तरह मना लिया। हालांकि इसके बावजूद उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उन्होंने कास्टलेस कलेक्टिव के साथ जुड़ने का फैसला किया। इसके बाद उन्हें लोगों ने प्रेरित किया, जिससे यह भ्रांति टूटी कि 'गाना' सिर्फ पुरुष ही गा सकते हैं। जब इसाइवानी को उनके माता-पिता ने मंच पर देखा, तो वह उनकी प्रतिक्रिया से समझ गई कि उन्होंने मुझे एक गायिका के रूप में स्वीकार कर लिया है। हाल ही में बीबीसी ने इसाइवानी को साल 2020 की 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची में भी जगह दी है। 

अवरोध के पार

शुरुआती दौर में इसाइवानी के सामने कई अवरोध थे। उन्हें अपनी आवाज खोलने का प्रशिक्षण दिया गया। चूंकि सभी गायक मुख्य रूप से श्रमिक-वर्ग की पृष्ठभूमि से आते थे, इसलिए वे समझ गए कि मंच अब आगे बढ़ रहा है। इसाइवानी कहती हैं, गायन करते समय मैं अपनी समस्याओं को भूल जाती हूं और उस क्षण को याद करती हूं, जो मुझे मंच पर मिलता है।

कभी भी सुनिए

भले ही 'गाना' की उत्पत्ति मृतकों की प्रशंसा में गाए गए गीतों के रूप में हुई हो, लेकिन यह अब मुक्त शैली बन गया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप खुश हैं या दुखी हैं, किसी भी समय, किसी भी मूड में आप इन्हें सुन सकते हैं। पिछले 14 वर्षों में, इसाइवानी ने पुडुचेरी, एन्नोर और चेन्नई की झुग्गी बस्तियों में दस हजार से अधिक प्रस्तुतियां दी हैं।

प्रतिदिन बदलाव

वह कहती हैं, मैंने अनुभव किया है कि वर्ष 2020 में दुनिया बहुत बदल गई है। लेकिन, महिलाओं के लिए यह रोज बदलती रहती है। महिलाओं ने विमर्श को बदला है और अपने हक के लिए आवाज उठाई है। यह सिलसिला आने वाली पीढ़ियों में भी जारी रहेगा। लोग मुझसे बहस करते हैं, पर मैंने उन्हें अपनी प्रस्तुतियों से जवाब देती हूं।