जमुना ने 25 महिलाओं के साथ मिलकर तीर-धनुष और भाले से जंगल की किलेबंदी करनी शुरू कर दी। काम निपटाकर के बाद सभी जंगलों में गश्त लगाती थीं। बाद में उनको पुरुषों और वन विभाग का भी सहयोग मिला।
पद्मश्री से सम्मानित जमुना टुडू वह महिला हैं जिन्होंने पेड़-पौधों को बचाने के लिए अपना जीवन भी दांव पर लगा दिया। जुमना का जन्म ओडिशा में हुआ। उन्हें बचपन से ही पेड़ पौधों से बेहद लगाव था। हालांकि, जिस गांव में उनका जन्म हुआ उसके आसपास पेड़-पौधे बेहद कम थे। इसलिए उन्हें इनके महत्व के बारे में पता था। वह रक्षाबंधन पर पेड़-पौधों को राखी बांधती बांधा करती थीं। जब वह दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर रही थीं तभी उनका विवाह हो गया। विवाह के बाद वह झारखंड आ गई। उनके ससुराल में पेड़-पौधों की बहुलता थी। जिसे देखकर वह मन ही मन बहुत खुश हुई। लेकिन अभी ससुराल में कुछ ही दिन हुए थे उनके सामने ही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई शुरू हो गई। यह सब देख जमुना को बहुत दुख हुआ और उन्होंने ठान लिया कि वह लंगल बनाने के लिए कुछ भी करेंगी। जंगल को बचाने के लिए वह खुलकर सामने आ गई तो पूरे गांव में बहस छिड़ गई। अवैध वन कटाई का विरोध करने के बजाय जीवन यापन के लिए जंगल की लकड़ी काटने को सही ठहराया जाने लगा। असल में लोग 'वन माफिया' का विरोध करने से डर रहे थे। तब जमुना ने कुछ महिलाओं से बात की, लेकिन वे खतरे का सामना करने के लिए तैयार नहीं थीं। जमुना ने उन्हें विश्वास दिलाया कि यदि वे भी माफिया के खिलाफ खड़ी नहीं होंगी, तो भविष्य खतरे में चला जाएगा। उन्होंने उन महिलाओं को समझाया कि पेड़ों को अवैध तरीके से काटना कानूनन अपराध है। शुरुआत में जमुना को काफी विरोध का सामना करना पड़ा। माफिया के खिलाफ जाने का मतलब गांव के उन पुरुषों के खिलाफ जाना था, जिन्होंने आतंक का माहौल तैयार किया था। पर जमुना कहां हार माने वाली थी। अंततः वह 25 महिलाओं का समूह बनाने में कामयाब हो गई
जंगल में गश्त
जमुना ने महिलाओं के साथ वन सुरक्षा समिति का गठन किया। जंगल के दुश्मनों से निपटने के लिए उन लोगों ने तीर-धनुष और भाले के साथ किलेबंदी करनी शुरू कर दी। घर के काम निपटाकर वह सभी जंगलों में गश्त लगाती थीं, ताकि वन माफिया को भगाया जा सके। जब उन महिलाओं की इस मेहनत और दिलेरी का असर लोगों को दिखने लगा तो धीरे-धीरे पुरुष भी उनकी इस मुहिम में शामिल हो गए।
हमले भी हुए
हालांकि यह सफर आसान नहीं रहा। लगभग हर रोज माफिया गिरोह द्वारा उन महिलाओं के समूह पर घात लगाकर हमले किए जाते थे। धमकी और हाथापाई से शुरू हुए इस विवाद ने धीरे-धीरे हिंसक मोड़ लेना शुरू किया। ऐसी ही कई घटनाओं में जमुना और उनके पति कई बार घायल भी हुए। लेकिन उन लोगों ने अपना मिशन नहीं छोड़ा।
वन विभाग का साथ
जमुना की समिति की संख्या अब तीन सौ से ज्यादा हो गई है, जिससे करीब छह हजार सदस्य जुड़े हुए हैं। पिछले बीस वर्ष में इन समितियों ने आसपास के इलाके में लाखों पेड़ लगाए। अंतत: उनकी इस सारी कोशिशों का फल उन्हें वन विभाग के सहियोग के रूप में मिला। अब वन विभाग भी उनकी समितियों के साथ है। जिससे गांव में स्कूल और पानी का कनेक्शन संभव हो पाया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.