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अनाज बेचकर खरीदी हॉकी, अब ट्रेनिंग के लिए अमेरिका जाएगी 14 साल की आदिवासी बिटिया पुंडी

Published - Mon 02, Mar 2020

बिहार के 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा। उन्होंने 22 साल तक दिन-रात मेहनत करके 25 फीट ऊंचे पहाड़ को काटकर उसके बीच से रास्ता निकाल दिया था। यह सब संभव हो सका था उनके फौलादी इरादों के कारण। अब झारखंड की एक बेटी भी हौसले, लगन और हिम्मत को लेकर सुर्खियों में है। झारखंड के नक्सल प्रभावित खूंटी जिले के अति पिछड़े हेसल गांव निवासी पुंडी सारू के घर में दो वक्त की रोटी जुटाना भी किसी जंग से कम नहीं है। इसके बावजूद उसने हॉकी खेलने के अपने सपने को टूटने नहीं दिया। पुंडी के पास हॉकी स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। इसके ​लिए उसने अनाज जुटाया और उसे बेचकर हॉकी खरीदी। पुंडी का चयन अमेरिका में ट्रेनिंग के लिए जाने वाली 5 लड़कियों में हो गया है। अप्रैल में वह वहां जाएंगी।

Pundi Saru

नई दिल्ली। बिहार के गया जिले के एक पिछड़े गांव गहलौर में रहने वाले 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा। उन्होंने अपनी पत्नी फाल्गुनी देवी की मौत की वजह बने 25 फीट ऊंचे पहाड़ को अकेले ही काटकर 360 फीट लंबी और 30 फीट चौड़ी सड़क बना डाली थी। इस काम को पूरा करने में उन्हें 22 साल तक दिन-रात मेहनत करनी पड़ी। दशरथ की मेहनत ही थी जिसने अतरी और वजीरगंज ब्लॉक की दूरी 55 किमी से घटकर महज 15 किलोमीटर रह गई। यह सब संभव हो सका था उनके चट्टान जैसे इरादों के कारण। पहाड़ के घमंड को चूर-चूर करने वाले दशरथ लंबे समय तक सुर्खियों में रहे। इन दिनों बिहार से ही अलग कर बनाए गए झारखंड की एक बेटी अपने फौलादी इरादों को लेकर खासी सुर्खियों में है। तमाम परेशानियों के आगे इस छोटी सी बच्ची ने घुटने टेकने की बजाए इनसे मुकाबला करने का फैसला किया और आज वह कारनामा कर दिखाया, जिसे तमाम संसाधनों की उपलब्धता के बाद भी कई सारे लोग नहीं कर पाते। यहां हम बात कर रहे हैं झारखंड के नक्सल प्रभावित खूंटी जिले के अति पिछड़े हेसल गांव निवासी पुंडी सारू की। पुंडी के घर में खाने के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी किसी जंग से कम नहीं है। पूरा परिवार जानवरों को चराकर किसी तरह गुजर बसर कर रहा है। पुंडी भी परिवार के साथ जानवरों को चराती हैं। लेकिन उनमें हॉकी खेलने को लेकर ऐसी लगन है कि तमाम दिक्कतों को दरकिनार कर वह इसकी जीतोड़ प्रैक्टिस करती हैं। इसी का नतीजा है कि पुंडी का चयन अमेरिका में होने वाले प्रशिक्षण शिविर के लिए हुआ है। वह जल्द ही वहां जाने वाली हैं।

पिता के एक्सीडेंट के बाद बिगड़ी आर्थिक स्थिति, भाई को छोड़नी पड़ी पढ़ाई 

पुंडी बताती हैं कि उसके पिता मजदूरी करते थे। वे मजदूरी करने के लिए रोजाना साइकिल से खूंटी जाते थे। 2012 में किसी गाड़ी ने उनकी साइकिल को टक्कर मार दी। इससे उनका हाथ टूट गया।  इलाज के बाद हड्डी तो जुड़ गई, लेकिन वो काम के लायक नहीं बचे। इसके बाद वो मजदूरी करने लगी। पिता के साथ हुए हादसे के बाद पूरे परिवार के सामने आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ। जिस कारण पुंडी के बड़े भाई सहारा को 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। कोई रास्ता नहीं सूझा तो परिवार ने गाय-बकरी, मुर्गा, बैल आदि जानवर पालकर उनके सहारे ही गुजर-बसर करना शुरू कर दिया।  अब इनके सहारे ही उनके घर का चूल्हा जलता है। पुंडी भी जानवर चराती हैं। इस सबके बाद भी पुंडी हॉकी के लिए समय निकालती हैं।

बहन की खुदकुशी के बाद पूरी तरह टूट गई थीं पुंडी

पुंडी सारू (14) खूंटी जिले के हेसल गांव की रहने वाली हैं। यह आदिवासी गांव बेहद पिछड़ा हुआ है। पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर की पुंडी कक्षा 9वीं की छात्रा हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है। परिवार को दो जून की रोटी के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। इन सब परेशानियों के बीच दो साल पहले पुंडी के बड़ी बहन ने 10वीं में फेल होने के बाद हताशा में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। पहले से आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार के लिए यह घटना किसी त्रासदी से कम नहीं थी। इस घटना ने पुंडी को बेहद मायूस कर दिया, लेकिन उसने खुद को संभाला। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के कारण वह तकरीबन 2 महीने तक हॉकी से दूर रहीं।

नहीं थी पैसे, अनाज बेचकर खरीदी हॉकी

पुंडी बताती हैं कि तीन साल पहले जब उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया, तो उसकी आंखों में बड़े सपने थे, लेकिन हॉकी स्टिक नहीं थी। इसे खरीदने के लिए घर में पैसे भी नहीं थे। ऐसे में खाने का मड़ुआ (एक तरह का अनाज) बेचकर और छात्रवृत्ति में मिले 1500 रुपए को मिलाकर किसी तरह एक हॉकी स्टिक खरीदी।  बता दें कि बिहार और झारखंड के ग्रामीण इलाकों में मड़ुआ का आटा खूब इस्तेमाल किया जाता है। शहरों में इसे रागी के नाम से जाना पहचाना जाता है, वहां भी लोग इससे बने आटा व बिस्किट का इस्तेमाल करते हैं।

रोजाना 8 किलोमीटर साइकिल चलाकर खेलने जाती हैं हॉकी

पुंडी रोजाना साइकिल से आने गांव से 8 किमी दूर खूंटी के बिरसा मैदान में हॉकी खेलने जाती हैं। वह कई पदक जीत चुकी हैं। अमेरिका जाने के सवाल पर पुंडी कहती है कि हॉकी स्टिक खरीदने से लेकर मैदान में खेलने तक उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। अमेरिका जाना ही सिर्फ लक्ष्य नहीं, बल्कि निक्की प्रधान की तरह देश के लिए हॉकी खेलना है। पापा खेलने के लिए रोकते थे, लेकिन मां ने हमेशा साथ दिया।

अमेरिका के मिडलबरी कॉलेज में होगी ट्रेनिंग

यूएस कंसोलेट(कोलकाता) और एक एनजीओ 'शक्तिवाहिनी' ने रांची में रांची, खूंटी, लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा जिले की 107 बच्चियों को रांची में 'हॉकी कम लीडरशिप कैम्प' में ट्रेनिंग दी थी। 7 दिन चले इस कैम्प से 5 बच्चियों को अमेरिका में ट्रेनिंग के लिए चुना गया है। इनमें पुंडी भी शामिल हैं। अब इन खिलाड़ियों को अमेरिका के मिडलबरी कॉलेज, वरमोंट में हॉकी का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यूएस स्टेट की सांस्कृतिक विभाग (असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ यूएस, डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट, फॉर एजुकेशनल एंड कल्चरल अफेयर) की सहायक सचिव मैरी रोईस ने मीडिया को बताया कि चयनित सभी लड़कियां 12 अप्रैल को अमेरिका के लिए रवाना होंगी। वहां मिडलबरी कॉलेज, वरमोंट में ट्रेनिंग होगी। इन लड़कियों को वहां 21 से 25 दिनों की ट्रेनिंग दी जाएगी।

बेटी के चयन की खबर सुन पिता के छलक पड़े आंसू

पुंडी सारू की सफलता से उनका पूरा परिवार काफी खुश है। खासकर उनके पिता। पुंडी के पिता एतवा उरांव को जब बेटी के चयन और अमेरिका जाने की सूचना मिली तो वह भावुक हो गए और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। पुंडी पेलोल उत्क्रमित उच्च विद्यालय की छात्रा हैं। उनके साथ पढ़ने वाली कक्षा 10वीं की छात्रा जूही कुमारी का भी चयन अमेरिका जाने वाली महिला खिलाड़ियों में हुआ है। जूही के पिता मछुआरा हैं। दोनों बच्चियों की प्रतिभा पर स्कूल के शिक्षकों को गर्व है।