एक किन्नर का जीवन कितना मुश्किल होता है। ये आप जोया थॉमस लोबो का दर्द सुनकर जान जाएंगे।
नई दिल्ली। जोया थॉमस लोबो एक ट्रांसजेंडर हैं लेकिन उनकी यही सच्चाई उनके लिए मुसीबत बन गई। जब उनकी यौनिक पहचान जाहिर हुई तो उसके बाद उन्हें अनेकों परेशानियों से जूझना पड़ा। जोया की मानें तो मुझे भीख तक मांगनी पड़ी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। अपनी बचत से मैंने एक कैमरा खरीदा, जो अब मेरी आजीविका और पहचान का आधार बन गया है।
जोया मुंबई से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता एक सोसाइटी में चौकीदार थे। उन्होंने पांचवीं तक एक कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाई की। उनकी मानें तो उस समय मेरी उम्र बहुत कम थी, जब मेरे पिता की मौत हो गई। इसके बाद मां ने ही मुझे और मेरी बहन को पाला। पिता की मृत्यु के बाद हमें अपना घर भी छोड़ना पड़ा। फिर मैंने एक बेकरी में नौकरी कर ली। उम्र बढ़ने के साथ मेरे शरीर में बदलाव आने लगे, लेकिन मैं किसी से भी अपनी यौनिकता पर बात नहीं कर पाती थी। जब मेरी यौनिकता सबके सामने आ गई, तब जीवन कठिन हो गया। तकरीबन 17 वर्ष की उम्र में मैं अपने गुरु से मिली, जिन्होंने बतौर ट्रांसजेंडर मुझे अपने समूह से मिलवाया। मुझे समुदाय की भाषा और ताली बजाना सिखाया गया। फिर मैं भी उनके साथ ट्रेनों में भीख मांगने लगी, पर मुझे कुछ और करना था। मैंने रुपये इकट्ठा किए और कैमरा खरीदकर फोटोग्राफी करने लगी, जो अब मेरी पहचान बन गई है। मैं इस क्षेत्र में अधिक से अधिक सीखने की कोशिश कर रही हूं।
मां की चिंता रहती है
मेरी मां को जब पता चला कि मैं एक समूह में शामिल हो गई हूं, तो वह बहुत चिंतित हुईं कि मैं कही यौन कर्म के दलदल में न फंस जाऊं। पर मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि आजीविका के लिए भीख मांग लूंगी, पर खुद को नहीं बेचूंगी। शुरुआती दिनों में उन्हें दिक्कत हुई, लेकिन बाद में उन्होंने मेरे काम को स्वीकार कर लिया और साथ जाना बंद कर दिया। फिर मां का निधन हो गया और मैंने भी समूह के साथ जाना बंद कर दिया।
ऐसे बदल गई जिंदगी
मैंने अपनी बचत से एक डिजिटल कैमरा खरीदा और फोटो खींचने की शुरुआत की। मैं उसकी बारीकियां सीख ही रही थी कि इसी बीच मुझे एक डाक्यूमेंटरी फिल्म में काम करने का मौका मिला। इसके लिए मुझे सम्मानित किया गया। वहीं एक अखबार के मालिक ने मुझसे फ्रीलांस काम करने के लिए कहा, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। काम के दौरान ही मैंने फोटो जर्नलिज्म के बारे में सीखा।
मिला सम्मान
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने मेरी तस्वीरों को जगह दी है, पर अब भी मैं पूर्णकालिक फोटो जर्नलिस्ट की नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रही हूं। मेरा जुनून ही अब मेरी पहचान और जीविका का आधार है। वर्तमान में मैं स्वतंत्र रूप से काम कर रही हूं, जिसकी एवज में मुझे पर्याप्त धनराशि मिलती है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.